Coronavirus in Jharkhand (दुर्जय पासवान, गुमला) : अब कोरोना वायरस संक्रमण की तीसरी लहर का डर है. कहा जा रहा है कि इस लहर का सबसे अधिक असर बच्चों पर होगा. इसलिए कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर से बच्चों को बचाना जरूरी है. हालांकि, कोरोना वायरस से बच्चों को बचाने के लिए सरकार व प्रशासन ने काम शुरू कर दिया है. लेकिन, डर उन 335 कुपोषित बच्चों का है, जिनका इलाज चल रहा है. इसके अलावा 7 माह से 3 वर्ष के 60 हजार 136 बच्चे को पौष्टिक आहार नहीं मिल रहा है.
समाज कल्याण विभाग की रिपोर्ट की मुताबिक, जिले में 335 बच्चे कुपोषित हैं. हालांकि, इन बच्चों पर प्रशासन की नजर है. लेकिन, इन बच्चों के घर तक पौष्टिक आहार नहीं पहुंच रहा है. विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, टेक होम राशन के तहत JSLPS द्वारा 7 माह से 3 वर्ष तक के बच्चों को घर पहुंचा कर पौष्टिक आहार देना है. यहां तक कि गर्भवती एवं धातृ महिलाओं को भी JSLPS द्वारा पौष्टिक आहार की व्यवस्था करना है. लेकिन, कई दिनों से इन्हें पौष्टिक आहार नहीं मिल रहा है. जिससे इस कोरोना में ये बच्चे कैसे जंग लड़ेंगे. यह डर बना है. वहीं, दूसरी तरफ समाज कल्याण विभाग द्वारा हॉट कूक मील योजना के तहत 3 वर्ष से 6 वर्ष तक के बच्चों को पौष्टिक आहार दिया जा रहा है. सेविका द्वारा बच्चों के घरों तक पौष्टिक आहार पहुंचाया जा रहा है.
गुमला जिले में 1670 आंगनबाड़ी केंद्र है. जिसमें 7 माह से 3 वर्ष के 60 हजार 136 बच्चे हैं. जबकि 3 साल से 6 वर्ष तक के 49 हजार 503 बच्चे हैं. इस प्रकार पूरे जिले में 6 माह से लेकर 6 वर्ष तक के एक लाख नौ हजार 639 बच्चे हैं. इसमें 335 बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. कोरोना महामारी की तीसरी लहर में आंगनबाड़ी केंद्र के इन बच्चों के स्वास्थ्य पर फोकस करना जरूरी है क्योंकि ये सभी बच्चे ग्रामीण परिवेश से आते हैं.
फिलहाल ग्रामीण इलाकों में बड़े लोग टीका लेने व जांच कराने से डर हैं. ऐसे में अगर तीसरी लहर से बच्चे प्रभावित होते हैं और ग्रामीण भ्रम में आकर बच्चों की अगर जांच नहीं कराते हैं, तो इसका असर प्रतिकूल पड़ सकता है. इसलिए प्रशासन ने माता-पिता को अपने बच्चों को सावधानी पूर्वक रखने व बीमार होने पर डॉक्टर से इलाज कराने की अपील की है.
सदर अस्पताल, गुमला में SNCU (Special New Born Care Unit) है. जहां शून्य से 28 दिन के कुपोषित बच्चों का इलाज होता है. अभी SNCU में 10 शिशु है. जिसका इलाज डॉक्टरों की निगरानी में चल रहा है. ये सभी बच्चे कुपोषित हैं. इनकी देखभाल जरूरी है. इस कोरोना संकट में डॉ राहुल देव उरांव व नर्सों द्वारा सभी 10 बच्चों का इलाज किया जा रहा है.
शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ राहुल देव उरांव ने कोरोना महामारी की तीसरी लहर में बच्चों में होने वाले असर के संबंध में कहा कि 2 से 15 वर्ष के बच्चे चाइल्ड के रूप में आते हैं. वर्तमान में सदर अस्पताल में SNCU के अलावा कोई व्यवस्था नहीं है. वहीं, 2 से 15 वर्ष के बच्चों के लिए PICU (Pediatric Intensive Care Unit) का संचालन सदर अस्पताल में नहीं होता है. यह बना हीं नहीं है.
अगर बच्चों की संक्रमण की बात करें, तो कोरोना वायरस अपना म्यूटेशन बदल रहा है. सिर्फ सर्दी, खांसी, बुखार, सांस लेने में दिक्कत ही सिर्फ कोरोना वायरस के लक्षण नहीं है. जिस प्रकार कोरोना वायरस अपना म्यूटेशन बदल रहा है. हो सकता है कि बच्चों में भूख नहीं लगना, उल्टी होना, दस्त होना यह सभी लक्षण कोरोना वायरस के हो सकते हैं.
उन्होंने बताया कि वर्तमान में चिकित्सीय कार्य करते हुए कई बच्चों की कोरोना जांच के लिए उन्होंने लिखा था. लेकिन अभिभावकों ने जांच नहीं कराया. लोगों से अपील है कि बच्चों में कुछ भी कमी नजर आये. डॉक्टर से सलाह लें. अगर कोई जांच लिखा जाता है, तो उसे जरूर करायें.
उन्होंने बताया कि युव वर्ग में स्पाइक प्रोटीन होता है, लेकिन स्पाइक प्रोटीन बच्चों में काफी कम मात्रा में होता है. जिससे वे संक्रमित होने से बच सकते हैं. उन्होंने अभिभावकों से अपील किया कि जिनके घर में छोटे बच्चे हैं. वे अपने बच्चों को प्रयोग किये गये तौलिया में ने लपेटे न ही बच्चों को उस तौलिया को उपयोग करने के लिए दें. बच्चों के सामने नहीं छींके.
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Posted By : Samir Ranjan.