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Navratri 2021: दुर्गोत्सव में श्रद्धा का रंग भरते ‘ढाक के ताल’, माता के आगमन से प्रस्थान तक बजते रहते हैं ढाक

दुर्गोत्सव में ढाक की अलग ही महता है. माता के आगमन से प्रस्थान तक ढाक बजते हैं. वहीं, नवरात्र के हर दिन पूजा अनुष्ठान ढाक के अलग-अलग ताल पर की जाती है.

Navratri 2021, Jharkhand News (अभिषेक रॉय, रांची) : संगीत को भगवान से जुड़ने का सबसे सरल माध्यम माना जाता है. संगीतकारों की मानें, तो ईश्वरीय प्रेम और श्रद्धा संगीत के बिना अधूरे हैं. पंडित रामदेव कहते हैं कि पूजा-पाठ में संगीत को विशेष महत्व दिया गया है. संगीत ‘आदि’ से जुड़ा हुआ है. मान्यता है कि भगवान शिव के डमरू बजाने से 14 सूत्र निकले. संगीत इन्हीं में से एक है.

विभिन्न देवी-देवताओं की उपासना के लिए विभिन्न वाद्ययंत्र समर्पित हैं. इसी के तहत दुर्गोत्सव के दौरान मां दुर्गा की उपासना के लिए विशेष अनुष्ठान के दौरान ढाक बजाया जाता है. नवरात्र के 9 दिन विभिन्न चरणों में पूजा अनुष्ठान होंगे और पारंपरिक वाद्ययंत्र ‘ढाक’ के ताल इस उत्सव में श्रद्धा के रंग भरेंगे.

इसके लिए बंगाल से ढाकी टीम विभिन्न मंडपों में पहुंचने लगे हैं. मां का आह्वान ढाक के विभिन्न ताल पर होगा और उनके प्रस्थान तक ये लगातार बजते रहेंगे. खास बात यह है कि ढाकी एक वर्ष तक नियमित ढाक के ताल को लयबद्ध करने का अभ्यास करते हैं. मां दुर्गा शक्ति का प्रतीक है. इसलिए ढाक वादक यानी ‘ढाकी’ अपनी पूरी शारीरिक क्षमता के साथ इस वाद्ययंत्र को बजाते हैं और भक्त ढाक की धुन पर मां का स्वागत करते हैं.

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हर दिन बदल जाते हैं ढाक के ताल

नवरात्र के हर दिन पूजा अनुष्ठान ढाक के अलग-अलग ताल पर की जाती है. दुर्गापूजा की शुरुआत आगमनी पूजा अनुष्ठान से होती है. इसमें मां का स्वागत किया जाता है. इसके बाद विभिन्न दिनों में शारदीय, नवपत्रिका, वरण, बोधन, संधि पूजा, नवमी, उधाव और विसर्जन जैसे अनुष्ठान होते हैं.

ढाकी शंभु ने बताया कि इन सभी पूजा अनुष्ठान में ढाक के अलग-अलग ताल बजाये जाते हैं. ढाक के ताल उत्सव, भक्ति और एकजुट होने की प्रेरणा देते हैं. यही कारण है कि ढाकी पूजा से पहले मिलनेवाले खाली समय में जमकर ढाक बजाने का अभ्यास करते हैं. उन्होंने कहा कि पूजा की तिथि से तीन माह पहले से ढाक बजाने का अभ्यास शुरू होता है.

पश्चिम बंगाल से आते हैं कलाकार

रांची शहर में करीब 180 दुर्गापूजा मंडप तैयार होते हैं. इन सभी पूजा मंडप में ढाकी खासतौर पर बंगाल से बुलाये जाते हैं. ऐसे में पश्चिम बंगाल के मिदनापुर, बांकुड़ा, गंगाजल घाट, विष्णुपुर, जॉल्दापारा, आनाड़ा व पुरुलिया से प्रशिक्षण प्राप्त ढाकी रांची शहर में पहुंचते हैं. वहीं, झारखंड के सिल्ली से भी कई ढाकी रांची शहर के विभिन्न पूजा मंडप में ढाक वादन के लिए बुलाये जाते हैं. 4 से 5 दिन के पूजा अनुष्ठान के दौरान ढाक बजाने के लिए एक ढाकी को पूजा समितियां 7500 से 8000 रुपये देती है.

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ढाक के बारे में जानें

ढाक एक तालवद्य यंत्र है जो लकड़ी से बना एक विशाल दृपृष्ठीय ढोल है. इसके दोनों पृष्ठ में बनी चाट चमड़ी की होती है. इस वाद्ययंत्रों को अधिकतर उत्सवों में, विशेष रूप से दुर्गापूजा में बजाया जाता है. पश्चिम बंगाल में इसे ‘जय ढाक’ के नाम से भी जाना जाता है. ढाक बजाते समय इसे कंधे से एक तरफ झुकी हुई अवस्था में लटकाया जाता है. इसके केवल एक ही पृष्ठ को दो मुड़ी हुई डंडियों से बजाया जाता है.

सोशल मीडिया पर छायी है ढाक की धुन

नवरात्र शुरू होते ही ढाक की ताल बंग समुदाय और पूजा मंडप में गुंजने लगती है. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म यूट्यूब व इंस्टाग्राम में दुर्गापूजा के आगमन को लेकर विभिन्न ताल व धुन का इस्तेमाल किया जा रहा है. इसके अलावा विभिन्न म्यूजिक एलबम प्लेटफॉर्म में ढाक के विभिन्न धुन के कलेक्शन उपलब्ध करा दिये गये हैं.

पूजा अनुष्ठान में ढाक के ताल

आगमनी पूजा व बोधन (कहड़वा ताल) : कलश स्थापना की पूजा ही आगमनी पूजा के नाम से जाना जाता है. यह मां दुर्गा के स्वागत का अवसर है. इसलिए ढाकी ढाक पर कहड़वा ताल से मां के आगमन का उत्सव मनाते हैं. इस ताल को बोधन पूजा के दौरान भी बजाया जाता है.

शारदीय (8 मात्रा) : 9 दिनों तक दुर्गोत्सव की नियमित पूजा शारदीय पूजा कहलाती है. सुबह-शाम होनेवाली नियमित पूजा के दौरान ढाक के 8 मात्रा बजायी जाती है.

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वरण (8 मात्रा) : षष्ठी के दिन मां दुर्गा के मायके पहुंचने के उत्सव को ढाक की 8 मात्रा थाप पर किया जाता है. बेटी स्वरूप मां दुर्गा की पूजा बेल वृक्ष के नीचे षष्ठी स्वरूप में की जाती है.

नवपत्रिका (आद्या ताल) : सप्तमी के दिन कलश स्थापना की प्राण प्रतिष्ठा कर देवी दुर्गा का आह्वान किया जाता है. यह अवसर मां दुर्गा को भक्ति से याद करने का है. ढाकी आद्या ताल से अपनी भक्ति का परिचय देते हैं.

संधि पूजा व नवमी (3 ताल) : शारदीय नवरात्र में संधि पूजा अष्टमी और नवमी दो तिथि के मिलन पर किया जाता है. पूजा अष्टमी तिथि के आखिरी 24 मिनट और नवमी तिथि शुरू होने के 24 मिनट बाद तक की जाती है. ढाकी तीन ताल की थाप पर एक तिथि के खत्म होने और दूसरे के आगमन को पेश करते हैं.

उधाव (भीम ताल) : दशमी और शारदीय नवरात्रि के अंतिम दिन विधि विधान के साथ कलश को उठाया जाता है. पूजा के इस अंतिम पहर को उधाव पूजन भी कहा गया है. इस समय भीम ताल से मां दुर्गा का आह्वान कर उनके वापस लौटने की कामना करते हैं.

विसर्जन (आद्या व भीम ताल) : 9 दिनों के दुर्गोत्सव का सबसे अंतिम कार्यक्रम विसर्जन है. श्रद्धालु मां दुर्गा की विदाई उत्सवी अंदाज में करते हैं. ढाकी भक्ति में लीन होकर आद्या व भीम ताल की थाप बचाते हैं जिसपर धुनुची नाच किया जाता है.

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Posted By : Samir Ranjan.

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