112 सालों से भाई-बहन का रिश्ता निभा रहे हैं दो गांव के लोग
गुमला के चुंदरी व लोहरदगा के आर्या गांव के ग्रामीण एक-दूसरे गांव की लड़कियों को बहन मान नहीं करते शादी
घाघरा.
गुमला जिले के घाघरा प्रखंड के चुंदरी व लोहरदगा जिले के आर्या दो ऐसे गांव हैं, जो 112 वर्षों से भाई व बहन का रिश्ता निभा रहे हैं. दोनों गांव के लोग एक-दूसरे के गांव की लड़कियों को बहन मान कर शादी नहीं करते हैं. इस रिश्ते के पीछे की कहानी काफी दिलचस्प है. 112 वर्षों से यह रिश्ता निभा रहे हैं और जन्मों जन्मांतर तक चलेगा. इसके पीछे की कहानी गांव के विष्णु पहान, रामकुमार भगत व सनिया उरांव ने बताया कि वर्ष 1911 में चुंदरी गांव के तीन से चार परिवार कोलकाता के मुनगाटोली में मजदूरी का काम करने गये थे. उसी जगह पर लोहरदगा जिले के आर्या गांव से भी चार-पांच परिवार मजदूरी का काम करते थे. दोनों गांव के लोगों की मुलाकात हुई. इसके बाद सभी ने मिल-जुल कर भाईचारगी के साथ कुछ दिन काम किया. इस दौरान एक परिवार के घर में नमक खत्म हो गया था, तो उक्त घर के लोग दूसरे घर से नमक मांग कर खाना बनाये. इसके बाद लोगों के मन में यह इच्छा जगी की हम एक-दूसरे का नमक खाये हैं, तो नमक का फर्ज निभायेंगे. इसके बाद से भाई व बहन की तरह सभी रहने लगे. 1912 में दोनों गांव के लोग वापस अपने-अपने गांव पहुंचे. इसके बाद इस रिश्ता को बरकरार रखने के लिए पड़हा व्यवस्था के अंतर्गत आर्या गांव के लोग चुंदरी गांव के लोगों को आने का निमंत्रण भेजा. सर्वप्रथम 1912 में आर्या गांव के लोग चुंदरी के लोगों को बुलाया. इसके बाद से प्रत्येक 12 वर्ष में बारी-बारी कर गांव के लोग एक-दूसरे के गांव आते-जाते हैं. 1966 में अकाल पड़ गया था. इस दौरान कुछ वर्षों के लिए आवागमन बंद हो गया था. जब स्थिति में सुधार हुआ, तो 1991 से पुनः यह सिलसिला शुरू हुआ. 2021 में कोरोना के कारण कार्यक्रम को स्थगित कर 2023 में किया गया था.सभी समुदाय निभा रहे हैं रिश्ते : आदित्य
पूर्व मुखिया आदित्य भगत ने बताया कि यह भाई-बहन का रिश्ता चुंदरी गांव व आर्या गांव के किसी एक समुदाय के लिए नहीं है. बल्कि गांव में रहने वाले सभी जाति वर्ग के लोग इस भाई बहन के रिश्ता को निभाते हैं. जब 12 साल में एक-दूसरे के गांव जाते हैं, तब सभी समुदाय का अलग-अलग बैरिकेडिंग किया जाता है, जिसमें अपने-अपने समुदाय के लोग रहते हैं और अपने-अपने समुदाय के लोगों को ले जाकर सेवा सत्कार करते हैं. विदाई के दौरान सभी को कपड़े या कुछ उपहार के तौर पर दिया जाता है. मान-सम्मान काफी बेहतर तरीके से किया जाता है.खर्च होते हैं लाखों रुपये : मुनेश्वर
मुनेश्वर उरांव ने बताया कि 2007 में जब आर्या गांव के लोग चुंदरी गांव आये थे, तब काफी बेहतर तरीके से उनलोगों का स्वागत किया गया था. इस दौरान लगभग 10 लाख रुपये का खर्च हुआ था. अब 2035 में पुनः आर्या गांव के लोग चुंदरी गांव आयेंगे. महंगाई को देखते हुए उस समय लगभग 20 से 25 लाख रुपये खर्च होने का अनुमान लगाया जा रहा है. पूरे कार्यक्रम को करने के लिए गांव के लोग काफी उत्साहित रहते हैं और अधिक से अधिक अपने स्वेच्छा से सहयोग करते हैं.पैदल जाते हैं एक गांव से दूसरे गांव:
परंपरा के अनुसार दोनों गांव के लोग एक-दूसरे गांव में पैदल आते जाते हैं. 2023 में चुंदरी के लोग पैदल आर्या गांव गये थे. अब 12 वर्ष के बाद आर्या गांव के लोग पैदल चल कर चुंदरी गांव आयेंगे और प्राचीन परंपरा को निभायेंगे. इस दौरान वाहनों का उपयोग पूरी तरह वर्जित रहता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है