घाघरा प्रखंड के देवाकी गांव के दर्जनों परिवार प्यास बुझाने के लिए नदी पार करते हैं. इसके बाद खेत में स्थित दाड़ी कुआं से पानी भरते हैं. वहीं, जब नदी में पानी भर जाती है तो लोग प्यास बुझाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालते हैं. सरकारी पैसे के दुरुपयोग से गांव में पानी की टंकी तो बन गयी, लेकिन लोगों को पानी नहीं मिल रहा है. गांव में पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं है. किस प्रकार लोग पानी के लिए संकट झेल रहे हैं. पढ़ें, घाघरा से कुलदीप कुमार की रिपोर्ट…
Also Read: दुमका और बेरमो विधानसभा सीटों के लिए पांच जुलाई के बाद होंगे उपचुनाव
देवाकी गांव में लगे पानी टंकी व जलमीनार हाथी का दांत साबित हो रहा है. ग्रामीण नदी पार करके दाड़ी का पानी पीने के लिए मजबूर हैं. यहां बता दें कि देवाकी गांव में एक पानी का टंकी बना हुआ है. साथ ही 14वें वित्त आयोग से लगभग 20 सोलर जल मीनार लगे हैं. परंतु इसका लाभ ग्रामीणों को नहीं मिल रहा है. सभी जल मीनार खराब पड़े हैं. किसी का सोलर टूट हुआ है तो किसी का मशीन खराब है. कहीं पानी ही नहीं है.
ग्रामीण नदी पार करके दाड़ी का पानी पीने के लिए उपयोग कर रहे हैं. प्रत्येक दिन ग्रामीण महिला व पुरुष सुबह उठते ही दाड़ी में पानी लाने के लिए पहुंच जाते हैं. जिसके बाद ही अपनी दिनचर्या के काम में लगते हैं. ग्रामीणों का कहना है. ऐसे जगहों पर जलमीनार लगाया गया है जो लगते के साथ खराब हो गया. हम लोगों के द्वारा इसका विरोध भी शुरुआत में किया गया था. लेकिन मुखिया व पंचायत सचिव के द्वारा एक भी बात नहीं माना गया.
जलमीनार बनाने में पैसों का बंदरबांट किया गया है. नदी पार कर पानी लाने का सिलसिला कोई नया नहीं है. यह लगभग बीते 20 साल से चल रहा है. कुछ लोग पानी लाने के लिए मुख्य मार्ग स्थित चापानल जो लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित है. वहां जाते हैं. वहां से पानी ढोकर लाते हैं.
गर्मी के दिनों में तो नदी पार कर लोग दाड़ी का पानी पी लेते हैं. परंतु दिक्कत बरसात में होती है. जब नदी में पानी भर जाता है. लोगों को पानी लाने के लिए काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. बरसात के दिनों में पानी के लिए ग्रामीणों को एक किमी अतिरिक्त दूरी तय करनी पड़ती है.
राधा देवी ने कहा हम लोग प्रत्येक दिन पानी लाने के लिए आते हैं. चापाकल हमारे घर के पास ही है. पर वह वर्षों से खराब पड़ा है. कई बार हम ग्रामीणों ने खुद चंदा कर चापाकल की मरम्मत करायी है. जिसके बाद फिर से खराब हो गया. लोग दोबारा चंदा देने में असमर्थ हैं. मुखिया को भी कई बार चापाकल बनवाने के लिए कहा गया है. पर मुखिया इस दिशा में कोई पहल ही नहीं करते हैं.
Posted By: Amlesh Nandan Sinha