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प्रभात खबर इंपैक्ट : शहीद तेलंगा खड़िया के घाघरा गांव पहुंचा गुमला प्रशासन, सरकारी लाभ देने की प्रक्रिया शुरू

गुमला में शहीद तेलंगा खड़िया के वंशज और ग्रामीणों की दयनीय स्थिति की खबर प्रभात खबर में प्रकाशित होने के बाद प्रशासन हरकत में आया. शुक्रवार को घाघरा गांव में जाकर ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं से जोड़ने की प्रक्रिया की शुरुआत की.

Jharkhand News (दुर्जय पासवान, गुमला) : शहीद तेलंगा खड़िया के वंशजों की दयनीय स्थिति का खबर छपने के बाद गुमला जिला अंतर्गत घाघरा गांव के विकास के लिए जिला प्रशासन ने काम करना शुरू कर दिया है. गुमला डीसी शिशिर कुमार सिन्हा की दिशा-निर्देश पर गांव के लोगों को सरकारी योजना का लाभ देने की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है. प्रशासन ने इस गांव को गोद भी ले लिया है. गांव के विकास व लोगों को सरकारी योजनाओं से जोड़ने के लिए गुरुवार को परियोजना निदेशक सांकेतिक जनजातीय विकास प्राधिकरण के निर्देश पर प्रखंड प्रशासन ने घाघरा गांव में शिविर लगाकर शहीद तेलंगा खड़िया के वंशजों एवं ग्रामीणों को सरकार द्वारा संचालित विभिन्न विकास योजनाओं का लाभ दिलाने के लिए आवेदन लिया गया.

शिविर में वृद्धा पेंशन के लिए 16, चिकित्सा अनुदान के लिए एक, राशन कार्ड के लिए 51 सहित जन्म व मृत्यु प्रमाण पत्र, KCC ऋण, सुकन्या योजना का आवेदन लिया गया. वहीं, स्वास्थ्य विभाग द्वारा 77 ग्रामीणों का कोरोना जांच का सैंपल लिया गया.

शिविर में घाघरा, बिरकेरा लावागाई में निवास करने वाले शहीद के वंशजों द्वारा अलग-अलग वंशावली लेकर पहुंचने पर बीडीओ सुनीला खलखो ने सभी से आपसी सहमति बनाकर एक वंशावली लाने का निर्देश दिया. मौके पर सीओ अरुणिमा एक्का, बीइइओ रुथ अनिता जीवन, सीडीपीओ सुनीता केरकेट्टा, एमो गुलाम रब्बानी, नर्मदा कुमारी, बाकुल सरकार, आशा कुमारी, अजीत महतो सहित शहीद के परिजन एवं वंशज मौजूद थे.

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शहीद के गांव घाघरा का नहीं हुआ विकास

अंग्रेजों से लोहा लिया. देश के लिए अपनी जान दे दी. ऐसे वीर शहीद तेलंगा खड़िया आज भी गुमनाम हैं. परिवार भी गरीबी में जी रहा. गुमला जिले के सिसई प्रखंड स्थित मुरगू गांव के वीर शहीद तेलंगा खड़िया का जन्म हुआ था. लेकिन, तेलंगा के शहीद होने के बाद जमींदारों का अत्याचार बढ़ गया, तो शहीद के वंशज मुरगू गांव से भागकर घाघरा गांव के पहाड़ इलाका में आकर बस गये. परिजनों के अनुसार, सरकारी सुविधा के नाम पर शहीद आवास मिला है. वह भी अधूरा है. शौचालय बना. वह भी अधूरा है. राशन कार्ड बना. लेकिन, राशन लाने के लिए 4 किमी पैदल चलनी पड़ती है. शहीद के किसी भी परिवार को सरकारी नौकरी नहीं मिली है. न ही बच्चों की पढ़ाई के लिए किसी प्रकार की मदद की गयी है.

9 फरवरी, 1806 ईस्वी को तेलंगा का जन्म हुआ था. तेलंगा बचपन से ही वीर व साहसी थे. कुछ भी बोलने से पीछे नहीं रहते थे. वे बचपन से ही अंग्रेजों के जुल्मों-सितम की कहानी अपने माता-पिता से सुन चुके थे. इसलिए अंग्रेजों को वे फूटी कोड़ी भी देखना पसंद नहीं करते थे. यही वजह है कि वे युवा काल से ही अंग्रेजों के खिलाफ हो गये और लुकछिप कर अंग्रेजों को नुकसान पहुंचाते रहते थे. 40 वर्ष की आयु में तेलंगा की शादी रतनी खड़िया से हुई. तेलंगा का एक पुत्र जोगिया खड़िया हुआ. इस दौरान अंग्रेजों का जुल्म बढ़ गया. तेलंगा ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन की बिगुल फूंक दी. तेलंगा गांव-गांव घूमकर लोगों को एकजुट करने लगा.

इसी दौरान बसिया प्रखंड में जूरी पंचायत के गठन के समय कुछ लोगों के सहयोग से अंग्रेजों ने तेलंगा के पकड़ लिया. दो वर्ष तक तेलंगा जेल में रहे. जेल से छूटने के बाद तेलंगा मुरगू गांव वापस लौटे. मुरगू आने के बाद वो दोबारा जमींदारी प्रथा के खिलाफ लोगों को एकित्रत करने लगे. इसी दौरान 23 अप्रैल, 1880 ईस्वी को अंग्रेजों का एक दलाल ने तेलंगा को गोली मार दी. जिससे उसकी मौत हो गयी. वीर शहीद तेलंगा की याद में आज भी खड़िया समाज में तेलंगा संवत की प्रथा प्रचलित है.

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गुमला शहर से 3 किमी दूर चंदाली में उनका समाधि स्थल बनाया गया है. वहीं, पैतृक गांव मुरगू में तेलंगा की प्रतिमा स्थापित की गयी है. जबकि तेलंगा के वंशज आज भी मुरगू से कुछ दूरी पर स्थित घाघरा गांव में रहते हैं. घाघरा गांव में भी तेलंगा की प्रतिमा स्थापित की गयी है. जहां हर वर्ष 9 फरवरी को मेला लगता है.

शहीद के वंशज उपेक्षित हैं

खड़िया जाति के लोग अपने को तेलंगा के वंशज मानते हैं और तेलंगा को ईश्वर की तरह पूजते हैं. लेकिन, सरकार की ओर से शहीद को अभी तक जो सम्मान मिलना चाहिए वह नहीं मिला है. इतिहास की पुस्तकों में जरूरी दो तीन पंक्तियों में शहीद का नाम जुड़ा हुआ है. लेकिन, आज भी वीर शहीद तेलंगा गुमनाम है. आज भी गुमला जिले के खड़िया समुदाय के लोग अपने ईश्वर तुल्य शहीद तेलंगा खड़िया के नाम से एक भव्य छात्रावास बनाने की मांग कर रहे हैं. शहीद के परपोता जोगिया खड़िया ने कहा कि तेलंगा के वंशज जो घाघरा गांव में निवास करते हैं. इनकी दुर्दशा कुछ खास ठीक नहीं है. आवास मिला है, लेकिन पूर्ण नहीं हुआ है. कई घरों में शौचालय अधूरा है. शहीद के वंशजों को पीने के पानी के लिए भी तरसना पड़ता है क्योंकि गांव में पेयजल की समुचित व्यवस्था नहीं है.

16 परिवार मुरगू से भागकर घाघरा गांव में बस गये

शहीद के वंशज सोमरा खड़िया ने कहा कि वीर स्वतंत्रता सेनानी शहीद तेलंगा खड़िया ने देश के लिए अपनी जान दी. लेकिन, आज शहीद के वंशज अपने हाल पर जी रहे हैं. प्रशासन मदद के लिए आगे नहीं आता है. खड़िया समुदाय के लोग मुरगू गांव में रहते थे. लेकिन, जब तेलंगा ने अंग्रेजों के जुल्मों-सितम व जमींदारी प्रथा के खिलाफ आवाज बुलंद किया, तो मुरगू क्षेत्र में रहने वाले जमींदारों ने खड़िया समुदाय को गांव से निकाल दिया. तेलंगा सहित खड़िया जाति की जितनी जमीन मुरगू गांव में थी. उसपर मुरगू क्षेत्र के जमींदारों ने कब्जा कर लिया. तेलंगा जब अंग्रेज व जमींदारों के खिलाफ बगावत पर उतरे, तो उन्हें जंगलों में शरण लेनी पड़ी.

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शहीद के पोता व पोती ने कहा

स्वतंत्रता सेनानी शहीद तेलंगा खड़िया के परपोता जोगिया खड़िया व परपोती पुनी देवी ने कहा कि गांव के विकास के लिए हर समय अधिकारी वादा कर मुकर जाते हैं. अभी खेतीबारी का समय है. सभी लोग खेती-बारी करते हैं. धान की जो उपज होती है. उसे सुखाकर घर के कमरे में रखने के बाद शहीद के अधिकांश वंशज मजदूरी करने के लिए दूसरे राज्य के ईंट भट्टे में काम करने के लिए पलायन कर जाते हैं.

Posted By : Samir Ranjan.

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