बिशुनपुर प्रखंड के गुरदरी पंचायत में पोलपोल पाट गांव है. यहां बहुतायत में असुर जनजाति के लोग रहते हैं लेकिन यह जनजाति अब विलुप्त होने के कगार पर है लेकिन झारखंड सरकार इस गांव में रहने वाले असुर जनजाति के संरक्षण व सरकारी सुविधा देने में नाकाम साबित हो रही है.
पोलपोट पाट गांव पहाड़ पर बसा है. यहां रहने वाले विलुप्त प्राय: असुर जनजाति के लोग पहाड़ का पझरा पानी पीने को विवश हैं. असुर जनजाति उसी पानी को बर्तन में जमा करते हैं और इसके बाद घरेलू काम के अलावा पीने में भी उसी पानी का उपयोग करते हैं.
यहां तक कि गांव में किसी के घर शौचालय नहीं है, गांव की बहु, बेटियां व महिलाएं खुले खेत व पहाड़ में शौच करने जाती हैं. शहर में पढ़ने वाली लड़कियां जब गांव जाती हैं तो उन्हें शर्म महसूस होती है लेकिन शौचालय की व्यवस्था नहीं रहने के कारण लाज-शर्म छोड़ लड़कियों को खुले खेत में जाना पड़ता है.
असुर जनजातियों के लिए आइटीडीए विभाग से कई सरकारी योजना संचालित है. लेकिन विभाग की लापरवाही से इस जनजाति को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है. ग्रामीण बताते हैं कि 15 साल से पोलपोल पाट गांव के एक भी परिवार को बिरसा आवास का लाभ नहीं मिला है.
15 वर्ष से पहले कुछ लोगों को आवास मिला था परंतु वह भी पूरा नहीं हुआ है. गांव के लोगों ने बिरसा आवास का लाभ नहीं मिलने पर नाराजगी प्रकट की है. साथ ही गांव के 53 लोगों का नाम आइटीडीए को सौंपा गया है. जिनको बिरसा आवास का लाभ देने की मांग की गयी है.
बिशुनपुर प्रखंड की बीडीओ छंदा भटटाचार्य ने पोलपोल पाट गांव की स्थिति व बिरसा आवास का लाभ नहीं मिलने के मामले को गंभीरता से लिया है. उन्होंने आइटीडीए गुमला को पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने गांव के 53 असुर जनजाति परिवारों की सूची नाम सहित भेजा है. इन 53 लोगों का बिरसा आवास का लाभ देने की अनुशंसा किया गया है. बीडीओ ने अपने पत्र में कहा है कि 53 लाभुकों का चयन कर दो जुलाई 2021 को सूची विभाग को सौंप दी गयी है.
पोलपोल पाट गांव के कुछ ग्रामीण मंगलवार को आइटीडीए निदेशक इंदू गुप्ता से मिले और गांव की समस्या से अवगत कराये. समस्या सुनने के बाद निदेशक ने कहा कि गांव की इस स्थिति के बारे में मुझे जानकारी नहीं थी. न ही किसी ने मुझे समस्या के बारे में बताया है. अब समस्या मेरे संज्ञान में आया है, इस समस्या को दूर किया जायेगा.
गुमला जिला मुख्यालय से पोलपोल पाट गांव की दूरी करीब 100 किमी है. यह पूरा इलाका बॉक्साइट में बसा है. इस गांव में रोजगार का भी साधन नहीं है. इस कारण कई युवक युवती पलायन किए हैं. हालांकि कुछ पढ़े लिखे युवकों ने मेहनत कर आदिम जनजाति बटालियन में भाग लिया है. गांव के 13 युवक-युवती आदिम जनजाति बटालियन में रहते हुए सेवा दे रहे हैं लेकिन अभी भी गांव के अधिकांश युवक युवती बेरोजगार हैं.
गांव में जनमीनार बना लेकिन मशीन ठीक से नहीं लगा. इस कारण पानी नहीं मिल रहा. मजबूरी में पहाड़ का पझरा पानी पीते हैं. शौचालय भी किसी के घर पर नहीं है. बिरसा आवास का लाभ नहीं मिल रहा है. गांव के लोग आज भी सरकारी योजनाओं से महरूम हो रहे हैं. प्रशासन से अनुरोध है. गांव की मदद करे.
विमल असुर, अध्यक्ष, पोलपोट पाट गांव
गुमला से दुर्जय पासवान की रिपोर्ट