Ram Navami: गुमला के आंजनधाम में मां अंजनी की गोद में विराजमान हैं हनुमान, देखें Pics

गुमला के आंजन में हनुमान जन्मे थे. भगवान हनुमान के जन्म स्थली के अलावा गुमला जिले के पालकोट प्रखंड में बालि और सुग्रीव का भी राज्य था. यहां तक की शबरी आश्रम भी यहीं है. पंपापुर सरोवर में राम और लक्ष्मण ने स्नान किया था. आज भी यह प्रमाण गुमला में विद्यमान है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 29, 2023 8:34 PM

गुमला, दुर्जय पासवान : श्रीराम भक्त हनुमान का जन्म झारखंड के उग्रवाद प्रभावित गुमला जिले से 20 किमी दूर आंजनधाम में हुआ था. सबसे आश्चर्य की बात कि भगवान हनुमान के जन्म स्थली के अलावा गुमला जिले के पालकोट प्रखंड में बालि और सुग्रीव का भी राज्य था. यहां तक की शबरी आश्रम भी यहीं है. जहां माता शबरी ने भगवान राम और लक्ष्मण को जूठे बेर खिलाये थी. पंपापुर सरोवर भी यहीं है. जहां भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ रुककर स्नान किये थे.

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जंगल और पहाड़ों से घिरा है आंजन गांव

जनश्रुति के अनुसार, भगवान हनुमान के जन्म व उससे जुड़े इतिहास की पूरी कहानी इस प्रकार है. आंजन गांव, जो जंगल और पहाड़ों से घिरा है. आंजन एक अति प्राचीन धार्मिक स्थल है. पहाड़ की चोटी स्थित गुफा में माता अंजनी के गर्भ से भगवान हनुमान का जन्म हुआ था. जहां आज अंजनी माता की प्रस्तर मूर्ति विद्यमान है. अंजनी माता जिस गुफा में रहा करती थीं. उसका प्रवेश द्वार एक विशाल पत्थर की चट्टान से बंद था. जिसे खुदाई कर खोला गया है. कहा जाता है कि गुफा की लंबाई 1500 फीट से अधिक है. इसी गुफा से माता अंजनी खटवा नदी तक जाती थीं और स्नान कर लौट आती थीं. खटवा नदी में एक अंधेरी सुरंग है, जो आंजन गुफा तक ले जाता है. हालांकि, किसी का साहस नहीं होता कि इस सुरंग से आगे बढ़ा जाये क्योंकि गुफा के रास्ते खूंखार जानवर और विषैले जीव-जंतु आज भी घर बनाये हुए है. बताया गया कि एक बार कुछ लोगों ने माता अंजनी को प्रसन्न करने के मकसद से अंजनी की गुफा के समक्ष बकरे की बलि दे दी. जिससे माता अप्रसन्न होकर गुफा के द्वार को हमेशा के लिए चट्टान से बंद कर ली थी. लेकिन अब गुफा खुलने से श्रद्धालुओं के लिए यह मुख्य दर्शनीय स्थल बन गया है.

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आंजन में है प्राचीन सप्त जनाश्रम

जनश्रुति के अनुसार, आंजन पहाड़ पर रामायण युगीन ऋषि मुनियों ने जन कोलाहल से दूर शांति की खोज में आये थे. यहां ऋषि मुनियों ने सप्त जनाश्रम स्थापित किया था. कहा जाता है कि यहां सात जनजातियां निवास करतीं थीं. इनमें शबर, वानर, निषाद्, गृद्ध, नाग, किन्नर और राक्षस थे. आश्रम के प्रभारी को कुलपति कहा जाता था. छोटानागपुर में दो स्थानों पर आश्रम है. इनमें आंजन और टांगीनाथ धाम है.

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360 शिविलंग व उतने ही तालाब हैं

आंजनधाम विकास समिति के अध्यक्ष सरोज प्रसाद ने कहा कि आंजन में शिव की पूजा की परंपरा प्राचीन है. अंजनी माता प्रत्येक दिन एक तालाब में स्नान कर शिविलंग की पूजा करती थी. यहां 360 शिविलंग और उतने ही तालाब होने की संभावना है. अंजनी माता गुफा से निकलकर प्रत्येक दिन एक शिविलंग की पूजा करतीं थी. अभी भी उस जमाने के 100 से अधिक शिविलंग और दर्जनों तालाब साक्षात उपलब्ध है.

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माता अंजनी का कोषागार भी है

आंजन गुफा से सटा एक पहाड़ है. जिसे धमधमिया पहाड़ कहा जाता है. इस पहाड़ का आकार बैल की तरह है. इसमें चलने से एक स्थान पर धमधम की आवाज होती है. कहा जाता है कि माता अंजनी का यह कोषागार था. जहां बहुमूल्य वस्तुएं माता रखती थीं. अंजनी माता के मंदिर के नीचे सर्प गुफा है, जो काफी प्राचीन है. अंजनी माता के दर्शन के बाद लोग सर्प गुफा का दर्शन करते हैं.

पालकोट में है बालि राजा का राज्य किश्किंधा

रामायण काल में किश्किंधा वानर राजा बालि का राज्य था. यह आज भी पंपापुर (अब पालकोट प्रखंड) में विद्यमान है. किश्किंधा ऋष्यमुख पर्वत है, जो पालकोट प्रखंड के उमड़ा गांव के समीप है. बालि ने अपने भाई सुग्रीव को किश्किंधा से मारकर भागा दिया था. इसके बाद बालि यहां हनुमान व अन्य वानरों के साथ रहने लगा था.

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पंपापुर स्थित गुफा में सुग्रीव छिपा था

किश्किंधा (उमड़ा गांव) से कुछ दूरी पर एक गुफा है. जब बालि ने सुग्रीव को भागा दिया, तो सुग्रीव उसी गुफा में आकर छिप गया. आज भी यह गुफा साक्षात है और इसे सुग्रीव गुफा कहा जाता है. सुग्रीव ने गुफा के अंदर अपने आवश्यक सभी वस्तुएं उपलब्ध करायी थी. गुफा के अंदर उस जमाने का बनाया गया जलकुंड भी है. वहां गुफा से दूसरे छोर पर एक सुरंग है.

राम और लक्ष्मण रुके थे पंपापुर में

सुग्रीव गुफा के समीप ही पंपापुर नामक स्थान है. यहां सरोवर भी है. रावण द्वारा माता सीता का हरण करने के बाद राम और लक्ष्मण इसी स्थान पर आकर रुके थे. यहीं पास राम व लक्ष्मण की मुलाकात सुग्रीव से हुआ था. सुग्रीव ने भगवान राम को अपनी पूरी कहानी सुनायी. इसके बाद राम के कहने पर सुग्रीव ने बालि को ललकारा और राम ने बालि को तीर मार दिया.

यहां है शबरी की कुटिया

पंपापुर पहाड़ में शबरी आश्रम भी है. सीता की खोज करते हुए राम और लक्ष्मण शबरी की कुटिया में आये थे. तब शबरी ने बेर खिलाकर उनका आदर सत्कार किया था. आज भी शबरी आश्रम पालकोट के पहाड़ में है.

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