गुमला, जगरनाथ पासवान : झारखंड राज्य के दक्षिणी छोटानागपुर भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है. इसमें गुमला जिला भी है. गुमला के कोने-कोने में शिव मंदिर व शिवलिंग है. जंगल, पहाड़ हो या समतल इलाका. हर जगह शिवलिंग है. कई शिवलिंग हजारों साल पुराना है, तो कुछ शिवलिंग हाल के वर्षों में नदियों या फिर जमीन की खुदाई से मिले हैं. डुमरी प्रखंड के टांगीनाथ धाम, गुमला प्रखंड के आंजनधाम व जारी प्रखंड के रूद्रपुर ऐसे गांव हैं. जहां अनगिनत शिवलिंग है. कई शिवलिंग विशाल है. इसलिए, सावन माह में गुमला जिला का महत्व बढ़ जाता है.
सावन महीने में गुमला जिले का महत्व बढ़ जाता है क्योंकि यहां अनगिनत शिवलिंग है. कई शिवलिंग तो विशाल है. यही कारण है कि दक्षिणी छोटानागपुर भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है.
वासुदेव कोना मंदिर है प्राचीन
आदिवासी इलाका होने के कारण यहां आदिवासी समाज के लोग भगवान शिव को आराध्य देव मानकर जलाभिषेक करते हैं. इन्हीं में गुमला से 15 किमी दूरी पर स्थित रायडीह प्रखंड में वासुदेव कोना मंदिर है. यहां प्राचीन शिव मंदिर है. मंदिर व शिवलिंग की स्थापना कब हुई. इसका कोई प्रमाण नहीं है. लेकिन, मंदिर के पुजारी के अनुसार वासुदेव कोना मंदिर की स्थापना छठवीं व सातवीं शताब्दी के आसपास या उससे पहले हुई होगी.
श्रद्धालुओं की जुड़ी है आस्था
पुजारी के अनुसार, मंदिर की जो बनावट है. इसे स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने बनाया है. मंदिर में किसी प्रकार के सीमेंट, चूना, मिट्टी या बालू का उपयोग नहीं हुआ है. पत्थर से मंदिर का निर्माण किया गया है. हजारों साल पुराना मंदिर होने के कारण यहां से श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी हुई है.
दिल से मांगी मुराद होती है पूरी
स्थानीय लोग कहते हैं कि दिल से मांगी मुराद जरूर पूरी होती है. यहां तक कि भगवान शिव के कारण ही वासुदेव कोना व आसपास के इलाके आपदा से सुरक्षित है. हालांकि, एक बार शिवलिंग की चोरी कर ली गयी थी. बाद में थाली के माध्यम से शिवलिंग की खोज की गयी थी. उस समय गांव में आपदा का खतरा बढ़ गया था. इसलिए अब कोई भी शिवलिंग को अपने निर्धारित स्थल से हटाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है.
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वासुदेव कोना मंदिर रायडीह प्रखंड से तीन किमी की दूरी पर है.
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6वीं और 7वीं शताब्दी में पत्थर पर पत्थर रखकर बनाया गया मंदिर.
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मंदिर के अंदर प्राचीन शिवलिंग है और दरवाजे के पास नंदी है.
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सावन माह में यहां छत्तीसगढ़ व झारखंड राज्य के श्रद्धालु आते हैं.
दरवाजे पर बिराजे हैं भगवान नंदी
मंदिर के अंदर भगवान शिव बैठे हुए हैं जबकि भगवान नंदी दरवाजे के पास हैं. पत्थर की आकृति का नंदी भगवान भी लोगों के लिए आस्था का केंद्र है. शिवलिंग में पूजा के बाद नंदी की पूजा जरूर लोग करते हैं. नंदी की बनावट प्राचीन है. प्राचीन समय के पत्थर से नंदी बना है. पुजारी के अनुसार नंदी स्वयं मंदिर के दरवाजे के पास हजारों साल पहले प्रकट हुए और पत्थर के रूप में बिराजे हुए हैं.
टांगीनाथ से भी पुराना है वासुदेव कोना मंदिर
पुजारी ने कहा कि वासुदेव कोना का मंदिर टांगीनाथ धाम से भी पुराना है. डुमरी प्रखंड के टांगीनाथ धाम में कई पुरातात्विक व ऐतिहासिक धरोहर है, जो आज भी साक्षात है. यहां की कलाकृतियां व नक्कासी देवकाल की कहानी बयां करती है. जिसपर से आज तक पर्दा नहीं उठ सका है.
शाश्वत है वासुदेव कोना मंदिर
बताया जाता है कि यह मंदिर शाश्वत है. उसी प्रकार वासुदेव कोना मंदिर है. जो शाश्वत है और इसे भगवान विश्वकर्मा ने बनाया है. भगवान पीठ पर बैठे तो हाथी उठ नहीं सका वासुदेव कोना में भगवान शिव के अलावा भगवान विष्णु का भी वास है. पुजारी ने बताया कि पालकोट के राजा को वासुदेव कोना स्थित भगवान विष्णु की मूर्ति पसंद आ गयी थी. उन्होंने मूर्ति को उठाकर लाने के लिए हाथी भेजा था. महावत हाथी लेकर वासुदेव कोना पहुंचा. मूर्ति को हाथी की पीठ पर बैठाया गया. लेकिन, मूर्ति हाथी की पीठ पर बैठने के बाद हाथी खड़ा नहीं हो सका. काफी प्रयास किया गया था. जब हाथी मूर्ति को अपनी पीठ पर बैठा नहीं सका तो पालकोट के राजा ने मूर्ति को वासुदेव कोना में ही छोड़ दिये. आज भी यह मूर्ति गांव में साक्षात है.