गुमला, दुर्जय पासवान. यह एक छोटे से गांव की कहानी है. परंतु, इस कहानी के पीछे गरीबी व संघर्ष की गाथा है. फर्ज व कर्ज के रिश्ते का अटूट संबंध है. साथ ही शिक्षा से ही किसी व्यक्ति, परिवार, गांव व समाज का विकास संभव है, जिसका जीता जागता उदाहरण स्व गंदुवा उरांव का परिवार है. हम बात कर रहे हैं, गुमला से 50 किमी दूर भरनो प्रखंड के जुरा गांव की. जुरा गांव के स्व गंदुवा उरांव के परिवार के सात सदस्य डॉक्टर हैं, जो झारखंड राज्य के अलग-अलग हिस्सों में सेवा दे रहे हैं. स्व गंदुवा के एक पुत्र, तीन बेटी व तीन दामाद डॉक्टर हैं. ये सातों डॉक्टर अपने पिता की याद को जिंदा रखने व मिट्टी का कर्ज चुकाने के लिए हर साल जुरा गांव में नि:शुल्क स्वास्थ्य कैंप लगाते हैं.
सभी डॉक्टर झारखंड व पटना में सेवा दे रहे हैं
स्व गंदुवा उरांव गरीब आदिवासी किसान परिवार में जन्मे थे. लेकिन कड़ी मेहनत व लगन से पढ़ाई कर एचइसी में नौकरी पाया. अपने बच्चों को भी अच्छी शिक्षा प्रदान कर उन्हें मुकाम तक पहुंचाया. सात साल पहले उनका देहांत हो गया. स्व गंदुवा उरांव के परिवार में सात डॉक्टर हैं. उनके दो बेटे व छह बेटियां हैं. जिनमें एक बेटा, तीन बेटी और तीन दामाद चिकित्सा सेवा में हैं. उनकी पत्नी कमला उरांव वर्तमान में रांची के करमटोली स्थित घर में रहती है. उनके बड़े बेटे विनय उरांव फौज में डॉक्टर थे. अब सेवानिवृत्त होकर रांची में रहते हैं. छोटा बेटा इंजीनियर है. वे भी रांची में कार्यरत हैं. बेटी डॉ कुसुम उरांव पतरातू के सरकारी अस्पताल की डॉक्टर है. बेटी डॉ नीलम उरांव कोकर में सरकारी अस्पताल की डॉक्टर है. बेटी डॉ ममता उरांव पटना के सरकारी अस्पताल में डॉक्टर हैं. एक दामाद रिम्स में डॉक्टर हैं. जबकि दो दामाद पटना में डॉक्टर हैं.
मिट्टी का कर्ज चुकाने के लिए लगाते हैं कैंप
स्व गंदुवा उरांव के पुस्तैनी घर जुरा गांव में उनकी बहन जीरा उरांव एवं भतीजा मलार उरांव रहता है. घर की खेती-बारी की देखरेख करता है. आज भी उनका मकान मिट्टी का है. घर में गाय, बैल, बकरी भी है. बगल में उनका एक नया घर बन रहा है. स्व गंदुवा उरांव के बेटे, बेटियां व सभी दामाद उनकी याद में हर साल गांव में नि:शुल्क हेल्थ कैंप लगाकर क्षेत्र के गरीब, असहाय लोगों को चिकित्सा सुविधा प्रदान करते हैं. उनके परिवार के सभी चिकित्सकों का कहना है कि आज हम अपने दिवंगत पिता के आशीर्वाद व उनके मेहनत से ही इस मुकाम पर पहुंचे हैं. उनके जाने के बाद भी उनका नाम हमेशा इतिहास के पन्नो में दर्ज रहे और इस मिट्टी का कर्ज अदा कर सकें. इसलिए उनके नाम पर हेल्थ कैंप का आयोजन कर सेवा प्रदान करते हैं.
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गांव के शिक्षा व स्वास्थ्य में सुधार हुआ है
इधर गांव के लोगों के दिलों में भी स्व गंदुवा उरांव के प्रति काफी इज्जत है. लोग उन्हें श्रद्धांजलि देकर नमन करते हैं. जुरा के एक आदिवासी परिवार में सात डॉक्टर होने से गांव की अलग पहचान बन गयी है. समाज के लोग इस परिवार की काफी सराहना करते हैं. जुरा गांव में पांच टोली है. जिसकी आबादी लगभग पांच हजार है. प्रतिवर्ष यहां की 30 प्रतिशत आबादी काम के लिए ईंट भट्ठा में पलायन कर जाता है. गांव नेशनल हाइवे से सटा है. इसलिए यहां के लोग खेतीबारी के अलावा कई प्रकार के दुकान भी चलाकर जीवन यापन करते हैं. पहले गांव विकास से कोसों दूर था. परंतु वर्तमान में स्थिति सुधरी है. सड़क चौड़ीकरण का काम चल रहा है. जिससे व्यापार की अपार संभावना बढ़ी है. शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में स्थिति सुधरी है. परंतु कहीं-कहीं पेयजल की किल्लत है. जुरा गांव के विकास में अभी भी काफी प्रयास करने की जरूरत है.
पूर्व आइजी डॉ अरूण उरांव ने कहा
पूर्व आइजी डॉ अरूण उरांव ने कहा कि भरनो प्रखंड के जुरा गांव के एक ही परिवार मे सात डॉक्टर होना वह भी आदिवासी परिवार, अपने आप में मिसाल है. ये लोग हर साल गांव में स्वास्थ्य कैंप लगाते हैं. गांव के लोगों को इसका लाभ मिलता है. यह पिता व मिट्टी का कर्ज चुकाने के बराबर है. नि:शुल्क स्वास्थ्य कैंप लगाना अपनी मिट्टी का कर्ज चुकाने का अत्यंत सराहनीय प्रयास.