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शौर्य गाथा: ऑपरेशन रक्षक के नायक थे जिदान बागे, आतंकियों का बहादुरी से किया था सामना

झारखंड के वीर सैनिकों ने न सिर्फ सीमा पर दुश्मनों के खिलाफ लड़ाई लड़ी है और उन्हें मात दिया है, बल्कि जब भी जरूरत पड़ी, देश के अंदर आतंकियों का बहादुरी से सामना किया. इसी क्रम में नायक जिदान बागे का नाम आता है, जिन्होंने पंजाब में आतंकवादियों के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी.

Shaurya Ghata: झारखंड के वीर सैनिकों ने न सिर्फ सीमा पर दुश्मनों के खिलाफ लड़ाई लड़ी है और उन्हें मात दिया है, बल्कि जब भी जरूरत पड़ी, देश के अंदर आतंकियों का बहादुरी से सामना किया. नागरिकों की रक्षा के लिए शहादत तक देनी पड़ी. इसी क्रम में नायक जिदान बागे का नाम आता है, जिन्होंने पंजाब में आतंकवादियों के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी.

90 दशक में जिदान पंजाब में था तैनात

80 और 90 दशक में पंजाब अशांत था. यहां आतंकवाद से लोग तबाह थे. जिदान पंजाब में तैनात थे. 27 फरवरी 1991 का दिन था. जिदान को खबर मिली कि खतरनाक आतंकवादियों का जत्था राजेवाला गांव में गेहूं के खेतों में घात लगाकर बैठा है. नायक जिदान बागे ने अपने कुछ साथी जवानों के साथ उन्हें घेर लिया और आत्मसमर्पण करने के लिए ललकारा इस ललकार का जवाब दूसरी तरफ से गोलियों की बौछार से हुआ. इस अप्रत्याशित हमले ने जिदान को संभलने का मौका भी नहीं दिया. कई गोलियां उन्हें लग चुकी थी. उनसे खून निकल रहा था. टपकते खून की धार के बावजूद जिदान बांगे अपनी जान को फिक्र किये बगैर आतंकवादियों की ओर बढ़ते गये. साथ में फायरिंग भी करते रहे.

शहीद होने के पहले 5 आतंकवादियों को मार गिराये: जिदान

घायल होने के बावजूद उन्होंने आतंकवादियों के कमांडर को गोलियों से भून दिया. अपने कमांडर की मौत से बौखलाये कई आतंकवादियों ने अपनी-अपनी एके-47 से सीधे जिदान पर गोलियों की बौछार कर दी. गोलियां लगती रही, पर इसके बावजूद घायल जिदान वांगे आतंकवादियों पर टूट पड़े, शहीद होने के पहले पांच आतंकवादियों को वे मार चुके थे. बाकी आतंकवादी इस खौफनाक मंजर को देख भाग खड़े हुए. इस वीरता के लिए उन्हें शौर्य चक्र प्रदान किया गया और पंजाब के कपूरथला जिले में पूरे सम्मान के साथ उनकी समाधी बनायी गयी.

गुमला में जिदान बागे का हुआ था जन्म

जिदान बागे का जन्म 18 जनवरी 1958 को गुमला (झारखंड) के टाटी कुरकुरा में हुआ था, उन्हें यह बात तो बचपन से ही मालूम थी कि उनकी जन्मजात बहादुरी और हिम्मत का सबसे सही उपयोग सेना में ही हो सकता है. इकलौती संतान को उनके माता-पिता सेना में भेजने से हिचक रहे थे. जब जिदान अविवाहित थे, तब ही उन्होंने अपने माता-पिता को कह दिया था कि चिंता न करें, वंश आगे बढ़ता जायेगा. 29 जुलाई 1977 को उन्होंने सेना में नौकरी आरंभ की. 25 मार्च 1981 को उनका विवाह लापुंग में सुबाशी बारला के साथ हुआ. उन्हें दो पुत्री और एक पुत्र हुआ.

जिदान की शहादत से पिता थे सदमे में

जिदान की शहादत से उनके पिता सदमे में थे और अक्तूबर 1992 में उनका निधन हो गया. जिदान की मौत की खबर पत्नी सुबाशी को पांच से छः दिन बाद मिली थी. उस खबर ने मानो एक पल में ही उनके हाथ से सुनहरे भविष्य की चाभी छीन ली. आंखों में नमी और दिल में दर्द लिये कुछ समय तक उन्हें तो होश ही ना रहा. दो महीनों के बाद जब वह कुछ समझने की स्थिति में आयी, तब वह अपने पति की समाधि के दर्शन के लिए अपने बच्चों को लेकर पंजाब गयी. बाद में वह अपने घर लौट आयी और अपने बच्चों को समय देने लगी.

साहस के लिए शौर्य चक्र से सम्मानित

11 अप्रैल 1993 को रांची से दो फौजी अधिकारी सुबाशी के पास आये और वह उन लोगों के साथ दिल्ली के लिए रवाना हो गयी. 16 अप्रैल 1993 को राष्ट्रपति भवन में उन्हें उनके पति की वीरता और साहस के लिए शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया, जिदान खुद तो दसवीं तक ही पढ़े थे, इसलिए वह चाहते थे कि उनके बन्ने आगे तक की शिक्षा ग्रहण करें. उनकी इस भावना की कद्र करते हुए सुबाशी अपने बच्चों को पढ़ा रही है. आर्मी की सहायता से उन्होंने अपनी बड़ी बेटी को बीएड करवा दिया है, छोटी बेटी रांची में पढ़ाई कर रही है. आर्मी अब भी इस परिवार की मदद और देखभाल करती आ रही है और हर दुःख में इस परिवार के साथ है. कुछ हिचकिचाहट के बाद सुबाशी अपने बेटे को सेना में भेजने के लिए तैयार हो गयी.

जिदान का बेटा भी किया फोर्स ज्वाइन

इंटर पास करते ही बेटे अमित का चयन इंडियन रिजर्व बटालियन फोर्स, झारखंड में हो गया है. पहले यह अपने बेटे को खोने के डर की वजह से उसे सेना में भेजने से डरती थी. मगर उस बेटे की रंगो में भी तो अपने पिता की तरह ही देशभक्ति का खून दौड़ रहा था, जिस कारण उससे परिवार से ज्यादा राष्ट्र की सुरक्षा की चिंता थी, इसलिए मां की बातों को अनसुना करते हुए वह रिजर्व बटालियन फोर्स ज्वाइन करने चला गया. अमित अब अपने पिता की राह पर आगे बढ़ते हुए देश सेवा में जुट गया है.

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