गुमला, दुर्जय पासवान : आज भी कई ऐसी प्राचीन परंपरा है जिसे आदिवासी समाज के लोग जीवित रखे हैं. इन्हीं परंपराओं में गुमला के चुंदरी और लोहरदगा जिले के आर्या गांव के बीच भाई- बहन के रिश्ता की परंपरा जीवित है. इसलिए इन दोनों गांवों के युवक-युवतियों के बीच कभी शादी नहीं होती है. पूर्वजों के समय से दोनों गांव एक-दूसरे के यहां हर 12 साल में एक बार मेहमानी आना-जाना करते हैं. इस वर्ष (2023) चुंदरी गांव के लोग आर्या गांव मेहमानी गये हैं. अब 12 वर्ष बाद (2035) आर्या गांव के लोग चुंदरी गांव मेहमानी आयेंगे.
पड़हा व्यवस्था का सख्ती से होता है पालन
घाघरा प्रखंड में चुंदरी पंचायत है. शुक्रवार को सैकड़ों ग्रामीण पड़हा व्यवस्था के अंतर्गत तीन दिवसीय कार्यक्रम के लिए लोहरदगा जिला के आर्या गांव पहुंचे. इस दौरान पारंपरिक वेशभूषा व आतिशबाजी के साथ सभी समाज के लोग जुटे और प्राचीन परंपरा को जीवित रखते हुए एक साथ रवाना हुए. पूर्व मुखिया आदित्य भगत ने बताया कि प्रत्येक 12 वर्ष में चुंदरी पंचायत के सभी समाज के लोग लोहरदगा जिला के आर्या गांव पड़हा व्यवस्था के अंतर्गत तीन दिवसीय मेहमानी के तौर पर जाते हैं. यह परंपरा पूर्वजों के समय लगातार चला आ रहा है. बीच में कोरोना काल के दौरान कार्यक्रम स्थगित हो गया था. यह परंपरा प्रत्येक 12 वर्ष में होता है. परंतु कोरोना काल के कारण इस बार 15वें वर्ष में जाया जा रहा है.
आर्या और चुंदरी में कभी नहीं होती शादी
पूर्व मुखिया आदित्य भगत ने बताया कि आर्या गांव पहुंचने के बाद गांव के लोग चुंदरी गांव के सभी मेहमानों को परछन कर गांव में प्रवेश कराते हैं. दूसरे दिन सामूहिक रूप से मिलन समारोह सह खाने पीने का कार्यक्रम होता है. अंतिम दिन विदाई किया जाता है. ग्रामीणों ने बताया कि चुंदरी पंचायत से आर्या गांव के भाई बहन का रिश्ता है. पूर्वजों के समय से यह परंपरा चला आ रहा है. उस समय से लेकर अब तक किसी भी समुदाय के लोगों का शादी आर्या गांव से नहीं हुआ है और ना ही कभी होगा. क्योंकि आर्या गांव से चुंदरी गांव का भाई बहन का रिश्ता है और भाई बहन में कभी शादी नहीं होती है.
मेहमानी जाने में पांच लाख खर्च होगा
चुंदरी पंचायत की मुखिया बिनीता कुमारी ने बताया कि इस कार्यक्रम में लाखों रुपये का खर्च होता है. कार्यक्रम को करने के लिए पूरे पंचायत में स्वेच्छा से ग्रामीण चंदा इकट्ठा करते हैं. जिसके बाद यह कार्यक्रम सफल होता है. आर्या गांव जाने के दौरान लगभग पांच लाख रुपये का खर्च होगा. जब 12 वर्ष के बाद आर्या गांव के लोग चुंदरी पंचायत आयेंगे तो खर्च चारगुणा बढ़ जायेगा. यानि 20 लाख रुपये का खर्च होगा. परंतु, हमलोग पैसा खर्च के बारे नहीं सोचते हैं. बस पूर्वजों की परंपरा जीवित रहे. यही दोनों गांव की सोच है.