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झारखंड: हजार फीट ऊंचे पहाड़ पर है मानव का उत्पति स्थल सिरासीता नाला, पूजा करने आते हैं सात राज्यों के आदिवासी

सिरासीता नाले के इतिहास व इस स्थल से जुड़ी आदिवासी समाज की मान्यताओं के संबंध में कहा जाता है कि जब-जब पृथ्वी पर अधर्म व पाप बढ़ा है. तब-तब पृथ्वी पर प्रलय हुआ है. उसी स्थल (सिरा-सिता नाले) ककड़ोलता से मानव की उत्पति हुई है. यहां हर वर्ष सात राज्यों से आदिवासी पूजा करने पहुंचते हैं.

गुमला, जगरनाथ पासवान: झारखंड के गुमला जिले से 80 किमी दूर डुमरी प्रखंड में सिरासीता नाला उर्फ ककड़ोलता है. यह एक हजार फीट से अधिक ऊंचे पहाड़ पर स्थित है. इसे मानव का उत्पति स्थल माना जाता है. आदिवासी समाज की आस्था सिरासीता नाले से जुड़ी हुई है. यहां प्रत्येक वर्ष फरवरी महीने के पहले गुरुवार को सामूहिक धार्मिक पूजा-अर्चना सह मेला लगता है. जहां बिहार, छत्तीसगढ़, असम, बंगाल, मध्य प्रदेश, ओड़िशा के अलावा झारखंड के विभिन्न जिलों से 20 हजार से अधिक आदिवासी शामिल होते हैं. इसकी तैयारी शुरू हो गयी है. एक फरवरी को यहां भव्य कार्यक्रम होगा.

आदिवासी समाज की ये है मान्यता

सिरासीता नाले के इतिहास व इस स्थल से जुड़ी आदिवासी समाज की मान्यताओं के संबंध में कहा जाता है कि जब-जब पृथ्वी पर अधर्म व पाप बढ़ा है. तब-तब पृथ्वी पर प्रलय हुआ है. उसी स्थल (सिरा-सिता नाले) ककड़ोलता से मानव की उत्पति हुई है. यह किस्सा ककड़ोलता से इस प्रकार जुड़ा है कि जब पृथ्वी पर पाप भर गया और धर्म का नाश होने लगा. इसे देखकर भगवान महादेव और माता पार्वती को दुःख होने लगा. इसे देखकर पार्वती ने महादेव से कहा कि हे! महादेव. आप पूरे पृथ्वी को जला दो. तब महादेव ने आग को धरती को जलाने के लिए भेजा. इसके पूर्व उन्होंने हनुमान से कहा कि मैं आग को दुनिया को जलाने के लिए भेज रहा हूं. जब आधी पृथ्वी जल जायेगी. तब तुम जाकर डमरू बजा देना. तब आग बुझ जायेगी. जब आग से पृथ्वी के मानव, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, जीव-जंतु जल रहे थे, उस समय हनुमान चिरचिटी के पेड़ पर चढ़कर (तेला) फल खा रहे थे. आग ने उस चिरचिटी पेड़ को झुलसाया तो हनुमान ने हवा में उड़ते हुए डमरू बजाया. तब तक पृथ्वी पूरी तरह जल चुकी थी.

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सात राज्यों से पहुंचते हैं आदिवासी

यह सब देख कर माता पार्वती को डर सताने लगा कि उन्होंने आधी पृथ्वी को जलाने को कहा था, लेकिन पूरी सृष्टि को ही जला दिया गया. इस पृथ्वी से मानव जाति खत्म हो गयी. अब क्या होगा? यह सोचते हुए वह अपने क्षेत्र को देखने लगीं. तभी अचानक उनकी नजर दो बच्चों पर पड़ी. उन्हें देखकर मां पार्वती की जान में जान लौटी. उन्होंने दोनों भैया-बहिन को ‘सिरा-सिता नाले’ स्थल में गंगला खइड़ झुंड के बीच ककड़ोलता में छिपा दिया. उसके बाद महादेव घर लौटे तो पार्वती ने गुस्साते हुए कहा कि पूरी पृथ्वी जल गयी. अब मानव जात को कहां ढूढ़ेंगे? अब मानव का सृजन कैसे होगा? मां पार्वती का गुस्सा देखकर महादेव पृथ्वी लोक घूमने गए. एक दिन अपने लिलि-भुली खायरी कुतिया के संग सिरा-सिता नाले की ओर गए. कुतिया सूंघते हुए गंगला खइड़ झुंड की ओर देख कर भूंकने लगी. तभी महादेव ने दोनों भैया-बहिन को ककड़ोलता में घुसते हुए देखा और पार्वती को बताया कि दोनों भैया-बहिन को सिरा-सिता नाले के गंगला खइड़ से ढूंढ़कर ला रहा हूं.

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फरवरी माह के पहले गुरुवार को भव्य कार्यक्रम

आज भी गाना गाते हैं…सिरा-सिता नाल नू… भाइया बाहिन रहचर, गुचा हरो बेद्दा गे कालोत बरा हरो बेद्दा गे कालोत…इसके बाद महादेव और पार्वती ने दोनों को पाल पोसकर बड़ा किया. उसके बाद उनके द्वारा ही मानव की उत्पति शुरू हुई. इसलिए आज भी गीत गाते हैं…

ई उल्ला जुड़ी ददा बआ लइक्कन, अक्कु होले पुरखय मंज्जक्य हो, नीन एन्देर ननोय का ए-न एदेर ननोय, धर्मे इ दसा नन्जा होय. इसलिए आदिवासियों के मान्यतानुसार (सिरा-सिता नाले) ककड़ोलता ही मानव का उत्पति स्थल है. यहां फरवरी माह के पहले गुरुवार को भव्य कार्यक्रम होता है और सात राज्यों के लोग पूजा करते हैं.

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