Jharkhand News: ‘दसा, मसा हो सोहराय, पीठा लाम्भा मास खाय, ई डाड़े उ डाड़े, करिया कुकुर, दे भौजी झट-पट, पुटुस झुंड’, इन गानों की गूंज के बीच मंगलवार को झारखंड के छोटानागपुर इलाके में बच्चों ने उत्साह पूर्वक दसा मसा पर्व (Dasa Masa Festival) मनाया. आज भी कई परंपरा दक्षिणी छोटानागपुर में जीवित है. इन्हीं में बच्चों का दसा मसा पर्व है.
छोटे बच्चों ने घर-घर मांगे अनाज
प्राचीन परंपरा के अनुसार, छोटे-छोटे बच्चे हाथों में थैला, डंडा और पारंपरिक औजार लेकर गांव के घर-घर में घूमकर अनाज मांगे. चावल के साथ दाल, कंदा सहित कई खाने-पीने की सामग्री मांगे. इसके बाद बच्चों ने उत्साह पूर्वक जंगल और गांव के बगीचा में पिकनिक बनाने की तैयारी शुरू कर दी है. चूंकि सूर्य ग्रहण था. इस कारण बच्चों ने मंगलवार को पिकनिक नहीं मनाये. अब बुधवार को जंगल व गांव के बगीचा में बच्चे पूरे उत्साह से पिकनिक मनायेंगे. दसा मसा पर्व में बच्चों द्वारा जंगल में लाम्भा (खरगोश) का शिकार करके उसका मांस खाने की भी परंपरा है. लेकिन, जंगलों में अब खरगोश नहीं मिलते. इस कारण बच्चों ने घरों से जमा किये गये अनाज से पिकनिक मनाने की तैयारी की है.
दक्षिणी छोटानागपुर के इन जिलों में मनाया जाता है पर्व
दक्षिणी छोटानागपुर के गुमला, रांची, सिमडेगा, लोहरदगा व खूंटी जिले में इस पर्व को प्रमुखता के साथ मनाया जाता है. इसके अलावा झारखंड से सटे छत्तीसगढ़ और ओड़िशा राज्य के सीमावर्ती इलाके में भी इस पर्व को छुर-छुरी पर्व के रूप में मनाते हैं. मंगलवार को गुमला शहर से सटे डुमरडीह गांव में दसा मसा पर्व का नजारा देखा गया. बच्चे अपने घरों से झुंड बनाकर निकले और हर घर में घूमकर अनाज जमा किये.
जनजाति और सदानों का पर्व है दसा मसा
गुमला प्रखंड के डुमरडीह गांव निवासी त्रिभुवन शर्मा ने बताया कि दसा मसा में बच्चों की गीत हर घर में गूंजता है. समूह में बच्चों की टोली दीपावली के दूसरे दिन घरों से चावल, दाल, अनाज, कंदा मांगकर कर बगीचा पहुंचते हैं. इसके बाद पिकनिक से सराबोर होकर घर आते हैं. यह दिन बच्चों के लिए सांस्कृतिक उल्लास का शिखर होता है. राम राज्य में उत्सव जंगल में लाम्भा शिकार व पीठा का स्वाद चखने की परंपरा है. बरबस बच्चे आंगन में शोर मचा मोर से नाचते उछलते आते हैं. बड़े लोग भी कुछ पल के लिए बच्चों के साथ बचपन में खो जाते हैं. ये बाल पर्व अपने छोटानागपुर में बाल उत्सव का सांस्कृतिक धरोहर है जो जनजाति समूह व सदानों की देन है. यह पर्व सिर्फ छोटानागपुर में मनाया जाता है. दसा मसा पर्व के संरक्षण व पोषण की जरूरत है. श्री शर्मा ने कहा कि इस वर्ष ग्रहण के कारण पिकनिक 26 अक्तूबर को मनाया जायेगा.
जीव-जंतुओं के लिए आतिशबाजी है घातक
गुमला में गोवर्द्धन पूजा धूमधाम से की गयी. भगवान कृष्ण, गोवर्धन पर्वत का आकर का पिंड बनाकर और गायों की पूजा विधि-विधान से हुई. वहीं, गुमला की परंपरा के अनुसार गोहार घर में दीया जलाया गया. धान से जुड़े सभी जगहों पर दीया रखा गया. भंडार कोना के दरवाजे पर, धान कूटने वाली ढेंकी के ऊपर, खेती में सहयोग करने वाले गाय-बैल, काड़ा-काड़ी के गोहार घर में दीया रखा. उनके सींगों पर मगहा फूल का तेल लगाया गया. पाहन सोमरा उरांव ने कहा कि हमारे लिए यह खेती-बारी में सालों-साल आदमी के साथ मेहनत करने वाले पशुओं का पर्व है. पहले लोग पटाखे नहीं फोड़ते थे. उजाले की जीत की कामना पूजा पाठ से करते थे. परंतु अब अंधेरे को रातभर बारूद से दागते रहना क्या अच्छा है? आदमी, जीव जंतुओं और पूरी प्रकृति के लिए यह कितना नुकसानदेह है. पर कौन सुनता है? जीव जंतुओं के लिए अब आतिशबाजी घातक बनते जा रही है.
रिपोर्ट : दुर्जय पासवान, गुमला.