गुमला : मां-पिता की मौत के बाद अनाथ हुए पोते की परवरिश की चिंता वृद्ध दादी को सता रही है. पोते की भूख मिटाने के लिए दादी मजदूरी करती है. जिस दिन काम नहीं मिला. वह गुमला बाजार में दतुवन व बेंग साग बेचती है, जो पैसा कमाई होता है. उसी से घर का चूल्हा जलता है. यह कहानी, चैनपुर प्रखंड के केवना गांव की 60 वर्षीय आपी कोरवाईन व उसके पांच वर्षीय पोते मनोज कोरवा की है. आपी कोरवाई की बहू कुंती कोरवाईन की चार साल पहले बीमारी के कारण मौत हो गयी थी.
कुंती ने मनोज को जन्म दी. उसे पौष्टिक आहार नहीं मिला. न ही विटामिन की कोई दवा खायी. इसलिए जब वह पुत्र को जन्म दी तो उसकी शरीर कमजोर हो गया. वह चलने फिरने में असमर्थ हो गयी. जब मनोज पांच महीने का था. उसी समय कुंती की मौत हो गयी. कुंती की मौत के बाद पिता धरमू कोरवा अपने पुत्र मनोज की परवरिश करने लगा. परंतु कुआं में डूबने से धरमू की भी मौत हो गयी. कुंती व धरमू की मौत के बाद मासूम मनोज की परवरिश की जिम्मेवारी वृद्ध दादी आपी कोरवाईन पर आ गया.
गरीबी के कारण वह अपने दूधमुंह पोते को दूध भी खरीद कर नहीं पीला पायी. मजदूरी कर पैसा कमाती थी. उसी से माड़ भात बनता था. बचपन से मनोज माड़ भात खकर बड़ा हुआ और अब उसकी उम्र पांच साल हो गयी है. पोते की परवरिश के लिए वृद्ध आपी कोरवाईन हर मंगलवार व शनिचार को गुमला बाजार आती है. यहां वह दतुवन व बेंग साग बेचती है. उसी से घर का चूल्हा जलता है और पोते की परवरिश कर रही है.
केवना गांव घोर उग्रवाद इलाका है. पहाड़ों के बीच गांव बसा हुआ है. इस गांव में विलुप्त प्राय: कोरवा जनजाति के लोग रहते हैं. गांव के लोग गरीबी व बेरोजगारी में जी रहे हैं. इसी दुर्गम पहाड़ी इलाका में आपी कोरवाई कच्ची मिट्टी के घर में अपने पोते के साथ रहती है. आपी कोरवाईन ने बताया कि उसका राशन कार्ड बना है. अनाज मिलता है. दाल, मशाला व तेल खरीदने के लिए बेंग साग व दतुवन बेचती है. परंतु उसे वृद्धावस्था पेंशन नहीं मिलती है.
जबकि कई बार वह आवेदन दी है. आपी ने कहा कि अगर उसे पेंशन मिलनी शुरू हो जाये, तो वह अपने पोते की अच्छी तरह से परवरिश कर लेगी. साथ ही पोते को भी सरकारी लाभ देने की मांग की है. आपी ने यह भी बताया कि केवना से गुमला आने-जाने में 30-30 रुपये गाड़ी भाड़ा लगता है. जबकि वह बाजार में 10 से 12 मुठा दतुवन व 40 से 50 रुपये का बेंग साग लेकर आती है. करीब 70 से 80 रुपये आमदनी होती है. इसमें 60 रुपये गाड़ी भाड़ा में खर्च हो जाता है. गाड़ी भाड़ा देकर जो पैसा बचता है. उसी से घर का चूल्हा जलता है.