Jharkhand News (दुर्जय पासवान, गुमला) : 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो के आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले व देश की आजादी के लिए लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानी गंगा महाराज का गुमला जिले में कहीं भी प्रतिमा नहीं है. जबकि गंगा महाराज ने अंग्रेजों के खिलाफ खुलकर आंदोलन किया था. ऐसे महान हस्ती का प्रतिमा स्थापित करने की पहल अबतक किसी ने नहीं की है. गंगा महाराज की बेटी सीता देवी ने अपने पति के बलिदान व आंदोलनों को याद करते हुए प्रशासन से गुमला में प्रतिमा स्थापित करने की मांग की है. जिससे 15 अगस्त, 26 जनवरी, 15 नवंबर राज्य स्थापना, 18 मई जिला स्थापना सहित अन्य अवसरों पर उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया जा सके.
बेटी सीता देवी ने कहा कि उनके पिता स्वतंत्रता सेनानी का नाम अशोक स्तंभ में है. यह अशोक स्तंभ गुमला प्रखंड परिसर में स्थित है. अशोक स्तंभ में तीन स्वतंत्रता सेनानियों का नाम है. जिसमें सबसे पहले नंबर पर गंगा महाराज का नाम है. बेटी सीता देवी ने गुमला प्रशासन से मांग करते हुए कहा है कि स्वतंत्रता सेनानी को सम्मान दें. उनकी प्रतिमा स्थापित करें.
वर्ष 1942 को गुमला में अंग्रेजों के खिलाफ जुलूस निकाला गया था. उस जुलूस का नेतृत्व गंगा महाराज ने किया था. जुलूस निकालने के कारण उन्हें लाठियां भी खानी पड़ी थी. अंग्रेजों ने गंगा महाराज को गिरफ्तार कर हजारीबाग जेल में रखा था. गंगाजी महाराज का निधन 4 अक्टूबर, 1985 को हुआ था. उनका समाधि स्थल गुमला शहर के जशपुर रोड स्थित काली मंदिर के बगल में है.
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गंगाजी महाराज की एकलौती बेटी सीता देवी है, जो वर्तमान में काली मंदिर में पूजा-पाठ कराती है. मंदिर की मुख्य पुजारिन सीता देवी है. गंगा महाराज की बेटी सीता देवी ने बताया कि जब अंग्रेजों को पता चला कि छोटानागपुर में भी अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया है तो हजारीबाग से अंग्रेजों की एक सैन्य टुकड़ी गुमला पहुंची थी और उनके पिता को गिरफ्तार कर हजारीबाग जेल ले गये थे.
गंगा महाराज गढ़वाल के रहने वाले थे. वे स्वतंत्रता सेनानी थे. अपने कुछ साथियों के साथ उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद किया था. इसके बाद अंग्रेज उसे पकड़ने के लिए खोजने लगे. अंग्रेजों से बचने के लिए 1945 में वे गुमला आ गये. उस समय गुमला जंगली इलाका था. बहुत कम घर थे. वे गुमला के कांसीर गांव में बस गये. अभी जो काली मंदिर के समीप से गुजरने वाली नदी पर पुल है. उस समय पुल नहीं था. नदी से पार करके लोग आते जाते थे.
गंगा महाराज अपने कुछ साथियों के साथ 35 किमी पैदल चलकर हर रोज कांसीर से गुमला आते थे और नदी के किनारे पूजा पाठ करते थे. उसी समय उनके मन में मां काली की मूर्ति स्थापित करने का मन आया. कुछ लोगों के सहयोग से उन्होंने सबसे पहले शिवलिंग की स्थापना की. इसके बाद बजरंग बली की मूर्ति स्थापित किया. बाद में मां काली की मूर्ति स्थापित कर यहां पूजा-पाठ करने लगे. मंदिर के सबसे पुराने पुजारी गंगा महाराज थे. 4 अक्टूबर, 1985 को उनका निधन हो गया.
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Posted By : Samir Ranjan.