शहरी जीवन से कटा है 35 रौतिया परिवार, कोई नहीं लेता सुध
जलमीनार खराब, पहाड़ की तलहटी स्थित चुआं का पानी पीते हैं ग्रामीण.
गांव तक जाने के लिए पहाड़ी सड़क है. पथरीली सड़कों से होकर गुजरते हैं लोग.
दुर्जय पासवान, गुमला
Jharkhand News: नक्सल का दाग लगे बहेरापाट व पहाड़ टुडुरमा गांव के लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा. ये दोनों गांव रायडीह प्रखंड में है. रौतिया, खेरवार व मुंडा जनजाति के 35 परिवार निवास करते हैं. बहेरापाट व पहाड़ टुडुरमा गांव घने जंगल व पहाड़ के ऊपर बसा है. इस गांव तक जाने के लिए सड़क नहीं है. जंगली व पथरीली रास्तों से होकर लोग सफर करते हैं. गुमला जिला का यह पहला गांव है. जहां आज तक सांसद, विधायक, डीसी, बीडीओ, सीओ व पंचायत सेवक नहीं गये हैं.
कई पीढ़ी खत्म हो गयी. वर्तमान पीढ़ी को यह भी नहीं पता कि कौन सांसद, विधायक, डीसी, बीडीओ व सीओ है. प्रभात खबर मुश्किलों से भरी रास्तों का सफर करते हुए गांव पहुंचा. गांव के लोगों से बात की. एक वृद्ध ने समस्या बताते हुए कहा कि हमारी हालात ऐसी है कि जीना यहां, मरना यहां, इसके सिवा और जाना कहां. गांव की स्थिति यह है कि शौचालय नहीं है. पक्का घर नहीं बना है. गरीबी में लोग जी रहे हैं. लकड़ी व दोना पत्तल बेच कर जीविका चलाते हैं.
ग्रामीणों ने कहा कि गांव में एक सोलर जलमीनार लगी थी. परंतु खराब है. हमारे गांव में कहीं पानी का स्रोत नहीं है. गांव से दो किमी दूर पहाड़ की तलहटी पर एक चुआं है. जहां पहाड़ी पानी जमा होता था. उसी चुआं की श्रमदान से घेराबंदी की. अब उसी दूषित पानी को पीते हैं. पानी लाने के लिए जंगली रास्तों से होकर पैदल गुजरना पड़ता है. जंगली जानवरों के हमले का डर रहता है.
मनरेगा से एक कुआं खोदा गया. जहां बूंद भर पानी नहीं है. एक और कुआं पहाड़ की तलहटी के पास खोदा जा रहा है. उम्मीद है कि कुआं से पानी निकलेगा. गांव में रोजगार का साधन नहीं है. लकड़ी व दोना-पत्तल बेच कर लोगों की जीविका चलती है. सिंचाई का साधन नहीं है. बरसात में धान, गोंदली, मड़ुवा, जटंगी की खेती करते हैं. परंतु इसे बेचते नहीं है. साल भर के खाने के लिए सिर्फ खेती करते हैं.
गांव पहाड़ पर है. लोग पैदल पहाड़ी रास्ता से होकर अनाज लाने के लिए राशन डीलर के पास जाते हैं. सिर व कंधे पर ढोकर राशन लाते हैं. रास्ता नहीं रहने से गर्भवती महिलाओं व बीमार लोगों को खटिया में लादकर मुख्य सड़क तक पैदल ले जाते हैं. इसके बाद टेंपो में बैठा कर मरीज को अस्पताल पहुंचाया जाता है. ग्रामीण बताते हैं कि पहाड़ से उतरने में कई मरीजों की पूर्व में मौत हो चुकी है.
मेरी उम्र 70 वर्ष हो गयी. कई बार वृद्धा पेंशन के लिए आवेदन दिया. परंतु स्वीकृत नहीं हुई. इस बुढ़ापे में जंगल की लकड़ी काट कर बेचते हैं. तब घर का चूल्हा जल रहा है.
जगन सिंह, ग्रामीण.
गांव की जलमीनार खराब है. एक कुआं खोदा गया है. परंतु उसमें एक बूंद पानी नहीं है. गांव से दो किमी दूर पहाड़ की तलहटी पर चुआं है. जिसका दूषित पानी हमलोग पीते हैं.
कलावती देवी, महिला.