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गुमला में कोरवा जनजाति के ग्रामीण पहाड़ की तलहटी में जमा पानी से बुझाते अपनी प्यास, नहीं लेता कोई सुध

गुमला में एक गांव है झलकापाठ. इस गांव में कोरवा जनजाति के ग्रामीण निवास करते हैं. लेकिन, इन ग्रामीणों को आज भी मूलभूत सुविधा उपलब्ध नहीं है. गांव में कुआं, तालाब और चापानल नहीं होने से इन ग्रामीणों को पहाड़ी की तलहटी में जमा पझरा पानी से अपनी प्यास बुझाने को मजबूर हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 13, 2022 3:46 PM
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Jharkhand news: गुमला जिले के घाघरा प्रखंड में झलकापाठ गांव है. जंगल एवं पहाड़ों के बीच स्थित है. इस गांव में 15 परिवार कोरवा जनजाति के रहते हैं. यह जनजाति विलुप्त प्राय: है. इस जनजाति को बचाने के लिए सरकार कई प्रकार की योजना चला रही है. लेकिन, झलकापाठ गांव की कहानी सरकारी योजनाओं को पोल खोलने के लिए काफी है. जिस जाति के लिए सरकार ने करोड़ों रुपये गुमला जिला को दिया है. उस जाति को मूलभूत सुविधा नहीं मिल रही है. आज भी ये आदिम युग में जी रहे हैं. किस प्रकार कोरवा जनजाति के 15 परिवार जी रहे हैं. पेश है रिपोर्ट.

हर घर के युवा किये पलायन

समाजसेवी कौशल कुमार ने कहा कि झलकापाठ गांव के हर एक परिवार के युवक-युवती काम करने के लिए दूसरे राज्य पलायन कर गये हैं. इसमें कुछ युवती लापता हैं, तो कुछ लोग साल-दो साल में घर आते हैं. पलायन करने की वजह, गांव में काम नहीं है. गरीबी और लाचारी में लोग जी रहे हैं. पेट की खातिर और जिंदा रहने के लिए युवा वर्ग पढ़ाई-लिखाई छोड़ पैसा कमाने गांव से निकल गये हैं.

गांव में नहीं है तालाब, कुआं और चापानल

गांव में तालाब, कुआं व चापानल नहीं है. इसलिए गांव के लोग पहाड़ की खोह में जमा पानी से प्यास बुझाते हैं. अगर एक पहाड़ की खोह में पानी सूख जाता है, तो दूसरे खोह में पानी की तलाश करते हैं. गांव से पहाड़ की दूरी डेढ़ से दो किमी है. हर दिन लोग पानी के लिए पगडंडी एवं पहाड़ से होकर पानी खोजते हैं और पीते हैं. गांव तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं है. पैदल जाना पड़ता है. गाड़ी गांव तक नहीं पहुंच पाती.

खुले में शौच करते हैं लोग

गांव के किसी के घर में शौचालय नहीं है. लोग खुले में शौच करने जाते हैं. जबकि गुमला के पीएचइडी विभाग का दावा है कि हर घर में शौचालय बन गया है. लेकिन, इस गांव के किसी भी घर में शौचालय नहीं है. पुरुषों के अलावा महिला एवं युवतियां भी खुले में शौच करने जाती है.

सरकार की नजरों से ओझल है गांव

सरकार ने कहा है कि आदिम जनजाति परिवार के घर तक पहुंचा कर राशन दें. लेकिन, इस गांव में आज तक एमओ और डीलर द्वारा राशन पहुंचा कर नहीं दिया गया है. डीलर के पास से राशन लाने के लिए 15 कोरवा परिवारों को 10 किमी पैदल चलना पड़ता है. बिरसा आवास का लाभ नहीं मिला है. झोपड़ी घर में लोग रहते हैं. यह गांव पूरी तरह सरकार और प्रशासन की नजरों से ओझल है.

चौथी एवं पांचवीं के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं बच्चे

गांव के सुकरा कोरवा, जगेशवर कोरवा, पेटले कोरवा, विजय कोरवा, लालो कोरवा, जुगन कोरवा, भिनसर कोरवा, फुलो कोरवा ने कहा कि हमारी जिंदगी कष्टों में कट रही है. लेकिन, हमारा दुख-दर्द देखने एवं सुनने वाला कोई नहीं है. लोकसभा हो या विधानसभा या फिर पंचायत की चुनाव. हर चुनाव में हम वोट देते हैं. हम भारत के नागरिक हैं, लेकिन हमें जो सुविधा मिलनी चाहिए. वह सुविधा नहीं मिल पाती है. गांव के बच्चे चार एवं पांच क्लास में पढ़ने के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं और कामकाज में लग जाते हैं.

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रिपोर्ट : दुर्जय पासवान, गुमला.

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