झारखंड : गुमला में कुपोषण के खिलाफ छिड़ी जंग, साग- सब्जियों की खेती और उपयोग पर जोर
कुपोषण मुक्त गुमला बनाने की पहल शुरू हो गयी है. कुपोषण को खत्म करने के लिए साग, सब्जी की खेती पर जोर दिया गया है. खेतों के अलावा घर के आंगन, गमला, छत पर भी साग सब्जी की खेती कर लोग उसका उपयोग कर रहे हैं.
गुमला, दुर्जय पासवान : गुमला लोक प्रशासन में बेहतर जिला है. यहां कई सफल प्रयोग हुए हैं. जिसका सीधा लाभ आमजन को मिल रहा है. इसमें जिले को कुपोषण मुक्त बनाने की दिशा में किया गया प्रयास भी शामिल है. उपायुक्त सुशांत गौरव की पहल से आज गुमला कुपोषण मुक्त जिला बनने की दिशा में बढ़ रहा है. जिले में एनीमिया मुक्त अभियान, समर अभियान, पोषण माह, कुपोषण मुक्त अभियान सहित कुपोषण के खिलाफ कई नवाचारी उपाय हो रहे हैं. इससे लोग भी जुड़ रहे हैं. कुपोषण को खत्म करने के लिए साग, सब्जी की खेती पर जोर दिया गया है. खेतों के अलावा घर के आंगन, गमला, छत पर भी साग सब्जी की खेती कर लोग उसका उपयोग कर रहे हैं. जिससे कुपोषण को जड़ से खत्म किया जा सके. यहां तक कि स्कूलों में भी बड़े पैमाने पर मीड डे मिल में अब स्कूल परिसर में उपजाये गये साग सब्जी का उपयोग हो रहा है.
पोषण आहार को लेकर लोगों को जागरूक करने की कोशिश
इस दौरान जिले भर के कुपोषित (मैम) एवं अति कुपोषित (सैम) बच्चों को चिह्नित किया गया. जिसके लिए आंगनबाड़ी सहिया, एएनएम का सहयोग मिला है. जिले के 497 अति कुपोषित बच्चों में से अब तक 427 पूर्ण रूप से कुपोषण मुक्त हो चुके हैं. उपायुक्त के निर्देशानुसार प्रत्येक सप्ताह सभी पंचायतों में VHSND (Village Health, Sanitation And Nutrition Day) डे का आयोजन करते हुए लोगों को पोषण आहार के संबंध में लगातार जागरूक भी किया जा रहा है.
52 प्रकार के साग की खोज
जिला समाज कल्याण विभाग, गुमला द्वारा एक पहल करते हुए जिले में उत्पादित होने वाले 52 प्रकार के पौष्टिक साग की खोज की गयी है. स्थानीय क्षेत्र में उगने वाले साग सब्जी का सेवन कुपोषण के खिलाफ एक बेहतर भूमिका निभाती है. जिले में 52 प्रकार में साग उगते हैं. जिसके सेवन से सभी कुपोषण मुक्त हो सकते हैं. जिसमें कोई अधिक खर्च भी नहीं है.
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रागी लड्डू जिले की महत्वपूर्ण पहल
जिले में मोटे अनाज के उत्पादन को लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है. जिसके तहत इस वर्ष रागी का उत्पादन जिले में सबसे अधिक किया गया. कैल्शियम और आयरन से भरपूर रागी बच्चों के वृद्धि और विकास के लिए बहुत उपयोगी है. हीमोग्लोबिन के स्तर को बढ़ाने के लिए एनिमिया से पीड़ित लोगों के लिए इसकी सिफारिश की जाती है.
कुपोषण एवं एनिमिया पर वार
जिले में कुपोषण के पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाले चक्र को तोड़ने में मदद हेतु केंद्र एवं राज्य की ओर से अनेक योजनाएं संचालित है. विशेषकर आइसीडीएस सेवाएं एनआरएचएम कार्यक्रम, पोषण अभियान एनिमिया मुक्त भारत, खाद्य पदार्थों में अति पोषक तत्व (फॉटिफिकेशन) की उपलब्धता, स्वच्छता अभियान शुद्ध पेयजल की उपलब्धता शामिल है. जिसके परिणाम स्वरूप जिले में कुपोषण एवं एनिमिया के स्तर में सुधार के सकारत्मक परिणाम सामने आये है. एनएफएचएस-5 के आंकड़े बताते हैं कि एनएफएचए-4 के आकड़ों की तुलना में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों के कुपोषण स्तर में 8.4 प्रतिशत स्टटिंग (ठिगनापन) की दर में छह प्रतिशत एवं बेस्टिंग (उचाई के अनुसार वजन) दर में सात प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी है.