डायन बिसाही झाड़-फूंक करने वालों की तरफ फैलाया गया भ्रम है, गुमला में बोलीं छुटनी महतो
झारखंड की संस्कृति एकमात्र ऐसी संस्कृति है, जो मानव, जीव-जंतु, जंगलों व पहाड़ों की रक्षा करने में विश्वास रखती है. इस संस्कृति को सभी तक पहुंचाने का सबसे आसान तरीका साहित्य व कविताएं हैं.
गुमला पुस्तक मेले में पहुंचे महादेव टोप्पो व पार्वती तिर्की द्वारा संवाद कार्यक्रम में ‘कविता में स्वदेशी परंपराएं’ से संबंधित विषय पर चर्चा हुई. महादेव टोप्पो ने बताया कि उन्हें उनके कविता लेखन में झारखंड की परंपरा व सांस्कृतिक धरोहर उन्हें प्रेरित करती है.
वे बताते हैं कि झारखंड की संस्कृति एकमात्र ऐसी संस्कृति है, जो मानव, जीव-जंतु, जंगलों व पहाड़ों की रक्षा करने में विश्वास रखती है. इस संस्कृति को सभी तक पहुंचाने का सबसे आसान तरीका साहित्य व कविताएं हैं.
छुटनी महतो ने जिले के पुलिस अधीक्षक हरविंदर सिंह के साथ मंच साझा कर डायन बिसाही से संबंधित अपने संघर्षों को साझा किया. वे बताती है कि वे खुद डायन बिसाही की इस कुप्रथा की शिकार हुईं थीं. उनके गांव वालों ने उन्हें जान से मारने की साजिश रची थी.
पढ़े-लिखे नहीं होने के बावजूद उन्होंने अपने व अपने बच्चों की जान बचायी. अब वह समाज के सभी डायन प्रथा से पीड़ित महिलाओं की मदद करती है. इस कार्य के लिए उन्हें पद्मश्री से भी नवाजा गया था.
Also Read: डायन बताकर जान लेने पर तुले रिश्तेदारों से बचकर पद्मश्री छुटनी देवी से मिली बुजुर्ग महिला, लगायी ये गुहारछूटनी महतो ने कहा कि डायन प्रथा केवल एक जाल है. महिलाओं की संपत्ति हड़पने की. झाड़ फूंक करने वाले बाबाओं द्वार फैलाया गया भ्रम है. जिसे समझना व समाज को इसके प्रति जागरूक करना आवश्यक है.