World Tribal Day 2020: गुमला में अंग्रेजी व कुड़ुख माध्यम का अनूठा स्कूल
फादर जेफीरिनुस बाखला ने गुमला के डुमरी प्रखंड के सुदूरवर्ती क्षेत्र में एक अंग्रेजी-कुड़ुख माध्यम का स्कूल खोला है. यह पूरी दुनिया में अनूठा और अपनी तरह का पहला स्कूल है. यहां से अब तक 12 बैच के विद्यार्थी मैट्रिक की परीक्षा दे चुके हैं. किंडर गार्टेन से पांचवीं कक्षा तक कुड़ुख माध्यम से पढ़ाई होती है.
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किंडर गार्टेन से पांचवीं कक्षा तक कुड़ुख माध्यम से पढ़ाई होती है
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कक्षा छह से मैट्रिक तक पढ़ाई का माध्यम अंगरेजी है
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गुमला के डुमरी प्रखंड में सात जनवरी वर्ष 2000 को स्कूल की शुरुआत की गयी
रांची : फादर जेफीरिनुस बाखला ने गुमला के डुमरी प्रखंड के सुदूरवर्ती क्षेत्र में एक अंग्रेजी-कुड़ुख माध्यम का स्कूल खोला है. यह पूरी दुनिया में अनूठा और अपनी तरह का पहला स्कूल है. यहां से अब तक 12 बैच के विद्यार्थी मैट्रिक की परीक्षा दे चुके हैं. किंडर गार्टेन से पांचवीं कक्षा तक कुड़ुख माध्यम से पढ़ाई होती है.
वहीं कक्षा छह से मैट्रिक तक पढ़ाई का माध्यम अंगरेजी है. कुड़ुख एक विषय के रूप में अपनी लिपि तोलोंग सिकी में ही सिखायी जाती है. फादर जेफीरिनुस बताते हैं कि लोग उन्हें एतवा कह कर पुकारते हैं, क्योंकि उनका जन्म एतवार को हुआ था. उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई शिलांग, मेघालय में अंग्रेजी माध्यम से की. उच्चतर अध्ययन के लिए रोम गये, जहां कई यूरोपीय भाषाओं से उनका सामना हुआ.
पढ़ाई के दौरान यूनानी और यहूदी भाषा भी सीखना पड़ी. उन्होंने यहूदी साहित्य पर ही शोध किया और पीएचडी की डिग्री हासिल की. जैसे-जैसे उनकी पढ़ाई आगे बढ़ती गयी, वह महसूस करने लगे कि उनकी मातृभाषा भी उनसे दूर होती चली गयी. तब उन्होंने सोचा कि ऐसा नहीं चल सकता है.
पढ़ाई समाप्त कर दो साल बाद उन्होंने अपने जन्मस्थान लौट कर अपनी मातृभाषा के माध्यम का स्कूल खोलने के लिए लोगों को एकजुट करना शुरू दिया. सात जनवरी 2000 को 42,000 वर्गफीट क्षेत्र में इस स्कूल की शुरुआत की. इसका नाम ‘कुड़ुख कत्थ खोड़हा लूरडिप्पा’ रखा. इसका अर्थ है कुड़ुख समुदाय द्वारा संचालित विद्यालय.