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अधूरे व जर्जर आवासों में रह रहे हैं कुंदा के बिरहोर

कुंदा: कुंदा के बिरहोर आज भी आदिम युग में जीने को विवश है. वे लोग जर्जर आवास में रहने को विवश हैं. विकास की रोशनी इन बिरहोरों तक नहीं पहुंची है. बिरहोरों के पास न रहने का घर और न सोने का बिस्तर है. बरसात में जर्जर आवास में रहने को मजबूर है. बारिश होने […]

कुंदा: कुंदा के बिरहोर आज भी आदिम युग में जीने को विवश है. वे लोग जर्जर आवास में रहने को विवश हैं. विकास की रोशनी इन बिरहोरों तक नहीं पहुंची है. बिरहोरों के पास न रहने का घर और न सोने का बिस्तर है. बरसात में जर्जर आवास में रहने को मजबूर है. बारिश होने पर घरों में बारिश का पानी भर जाता है. इससे घरों में रखे कपड़े, बिस्तर, खाद्य सामाग्री समेत सारा समान भींग जाता हैं. इससे दिन-रात भूखे रहना पड़ता है. बच्चे आंगनबाड़ी केंद्र तो कभी नजदीक के स्कूल जाकर पेट भरते हैं.

10 वर्ष पूर्व बना बिरहोर आवास भी सरकारी उदासीनता से अधूरा पड़ा है. बरसात में तरह-तरह की बीमारी होने की आशंका बनी रहती है. बिरहोरों की जीविका का स्त्रोत जंगल है. जंगल से लकड़ी, दातून, बांस व अन्य सामग्री लाकर बेच कर अपना पेट भरते है. प्रखंड में बिरहोर परिवारों की संख्या 165 है. कुंदा के जगरनाथपुर, मांडर पट्टी, एक्शन प्लान सिकिदाग पंचायत के हरदियाटांड़, सोहर लाठ, मदारपुर, भौरुडीह, नवादा पंचायत नवादा व बनियाडीह समेत कई गांव में बिरहोरों के आवास जर्जर है.

बिरहोरों ने कहा: जगरनाथपुर के कमोद बैगा ने कहा कि 10 वर्षों से बन रहा आवास आज अधूरा हैं. संवेदक जैसे-तैसे व अधूरे छोड़ दिये है. बुधनी बैगिन ने कहा कि जिस दिन बारिश होती है, उस दिन अधिक परेशानी होती हैं. सबसे अधिक परेशानी छोटे-छोटे बच्चों को होती है. बिरहोरों को देखने वाला न तो प्रशासन और न ही जनप्रतिनिधि हैं. हमारी सुधि लेने आज तक कोई नहीं पहुंचा है.

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