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कभी था गुलजार, अब अस्तित्व खोता जा रहा है नेशनल पार्क, जाने कहां गुम हो गयी प्राकृतिक छटा और पक्षियों का कलरव

रामशरण शर्मा, इचाक : हजारीबाग जिला मुख्यालय से करीब 17 किमी दूर रांची-पटना मार्ग पर स्थित नेशनल पार्क सिर्फ हजारीबाग ही नहीं, बल्कि पूरे राज्य के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है. 186 वर्ग किमी जंगली भू-भाग पर फैले हजारीबाग वन्य जीव प्राणी आश्रयणी को 1955 में भारत सरकार ने नेशनल पार्क के रूप […]

रामशरण शर्मा, इचाक : हजारीबाग जिला मुख्यालय से करीब 17 किमी दूर रांची-पटना मार्ग पर स्थित नेशनल पार्क सिर्फ हजारीबाग ही नहीं, बल्कि पूरे राज्य के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है. 186 वर्ग किमी जंगली भू-भाग पर फैले हजारीबाग वन्य जीव प्राणी आश्रयणी को 1955 में भारत सरकार ने नेशनल पार्क के रूप में विकसित किया था, तब यह पार्क अपनी प्राकृतिक सौंदर्य के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध था.
देश-विदेश के सैलानी यहां की प्राकृतिक छटा को निराहने व जंगली जीव-जंतुओं को देखने आते थे. लेकिन, उसके बाद से सरकार ने उदासीनता बरती और इस पार्क को अस्तित्व खोता चला गया. बाद में वर्ष 2002 में नेशनल पार्क का दर्जा को घटाया गया और हजारीबाग वन्य प्राणी प्रमंडल प्रक्षेत्र आश्रयणी का दर्जा दिया गया.
आश्रयणी में आज भी हिरण, चीतल, सांवर, नील गाय, बंदर व भालू देखने को मिलते हैं. पक्षियों को देखा जा सकता है. आश्रयणी का मुख्य द्वार से सैलानियों को 10 किमी कच्ची सड़क से होकर जाना पड़ता है. दो दशक पूर्व तक पर्यटक नेशनल पार्क की सौंदर्य को निहारने आते थे, लेकिन अब पर्यटकों की संख्या काफी कमी आयी है. सिर्फ दिसंबर से मार्च तक झारखंड के अलावा बिहार और बंगाल के पर्यटक आते हैं.
आश्रयणी क्षेत्र में पर्यटकों के लिए कई सुविधा
यह क्षेत्र प्रकृति की गोद में बसा है. यहां का दृश्य मनोरम है. यहां झील, म्यूजियम, अतिथि गृह, कॉटेज के अलावा कैंटीन की भी सुविधा है. यहां झील में पर्यटक नौका विहार का आनंद लेते हैं. पर्यटकों को ठहरने के लिए कॉटेज की व्यवस्था है.
आश्रयणी क्षेत्र के अंदर वॉच टावर से पर्यटक दूर तक जंगल को निहार सकते हैं. यहां अधिकारियों को ठहरने के लिए गेस्ट हाउस, पर्यटकों को ठहरने के लिए चार कॉटेज, सिंगल बेड के चार लॉज व छह बेड का एक डोमेट्री है. इसी कॉटेज में पर्यटकों को ठहरने की व्यवस्था है.
टाइगर ट्रेप
मुख्य द्वार से करीब तीन किमी पर टाइगर ट्रेप है. इस ट्रेप की सहायता से पदमा के राजा बाघ और तेंदुआ पकड़ते थे और राजा को उपहार स्वरूप बाघ भेंट करते थे. टाइगर ट्रेप जमीन को खोद कर बनाया गया है. इसकी गहराई 40 फीट और परिधि 40 फीट है. ट्रेप में जाने के लिए 60 फीट लंबा सुरंग बना है.
गड्ढे के बीच शंकुकार दीवार है, जिस पर बाघों को प्रलोभन देने के लिए बकरी बांधा जाता था. बकरी के मिमियाने की आवाज सुन बाघ बकरी का शिकार करने के लिए ट्रेप के पास आता था. छलांग लगाने के क्रम में शेर गड्ढे में गिर जाता था एवं जाल में फंस जाता था.
बाघमारा चेकडैम
आश्रयणी के अंदर कई तालाब व चेकडैम है पर बाघमारा चेकडैम का सौंदर्य ही अलग है. डैम का पानी देख पर्यटक अचंभित होते हैं और सुकून महसूस करते हैं. तैरती जंगली पक्षियों को देख पर्यटक लुत्फ उठाते हैं. बांध के नीचे की चट्टान देखने लायक है.
सालपर्णी
सालपर्णी आश्रयणी क्षेत्र का अभिन्न अंग है, जो मुख्य द्वार से पूरब तीन किमी की दूरी पर घने जंगल में अवस्थित है. यहां पर्यटकों के ठहरने के लिए गेस्ट हाउस व भोजन बनाने के लिए कैंटीन की व्यवस्था है. यहां भी सैलानी डैम में नौका विहार का आनंद उठा सकते हैं. डैम मे साइबेरियन पक्षी को भी देखा जा सकता है.
125 हेक्टेयर भूमि पर बना है केज
जीव जंतु को रखने के लिए आश्रयणी के अंदर केज है. इसमें नीलगाय, हिरण, सांभर, चित्तल, बंदर, मोर आदि जीव जंतु को रखा गया है. केज के बाहर भी हिरण, मोर, बड़ी संख्या में बंदर, जंगली सुअर व भालू विचरन करते नजर आते हैं. यदाकदा बाघ, तेंदुवा व लाकड़बघा भी देखने को मिलता है.
सुरक्षा का अभाव
आश्रयणी क्षेत्र में पर्यटकों की सुरक्षा को लेकर ठोस व्यवस्था नहीं की गयी है. रात के अंधेरे में पर्यटक स्वयं को असुरक्षित महसूस करते हैं. इन तमाम कमियों को दूर करने पर पुनः नेशनल पार्क पुरानी अस्तित्व में लौट सकता है.
आश्रयणी में सुविधाओं की कमी
पर्यटन की दृष्टिकोण से आश्रयणी क्षेत्र में सुविधाओं का घोर अभाव है. इस कारण पर्यटकों का आना जाना कम हो गया है. बिजली की सुविधा नहीं रहने के कारण शाम होते ही क्षेत्र अंधेरे में डूब जाता है. यहां मोबाइल का नेटवर्क भी नहीं पकड़ता. इस कारण पर्यटक आने से कतराते हैं.
सरकारी वाहन की सुविधा नहीं
मुख्य मार्ग से 10 किमी दूर राजडेरवा जाने के लिए वन विभाग द्वारा पर्यटन की दृष्टिकोण से वाहन उपलब्ध नहीं है. निजी वाहन से पर्यटकों को आना जाना पड़ता है.

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