बड़कागांव : 105 वर्षीय देवल भुइंया की जुबानी, पहले मांदर बजाकर मांगते थे वोट

– पहले जात-पात और धर्मवाद पर नहीं विकास पर वोट देते थे संजय सागर, बड़कागांव बड़कागांव प्रखंड के अंबेडकर मोहल्ला निवासी 105 वर्षीय वृद्ध देवल भुइंया ने बताया कि वह अपने जीवन काल में विधानसभा चुनाव में 10 बार वोट दे चुके हैं. जबकि लोकसभा चुनाव में उन्होंने 11 बार वोट दिया है. उन्होंने बताया […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 9, 2019 9:55 PM

– पहले जात-पात और धर्मवाद पर नहीं विकास पर वोट देते थे

संजय सागर, बड़कागांव

बड़कागांव प्रखंड के अंबेडकर मोहल्ला निवासी 105 वर्षीय वृद्ध देवल भुइंया ने बताया कि वह अपने जीवन काल में विधानसभा चुनाव में 10 बार वोट दे चुके हैं. जबकि लोकसभा चुनाव में उन्होंने 11 बार वोट दिया है. उन्होंने बताया कि पहले के चुनाव और अब के चुनाव में बहुत अंतर है. पहले तो वोट का प्रचार मांदर बजाकर पर्चा बांट करते थे. इतना ही नहीं जब राजा साहब कामाख्या नारायण सिंह चुनाव में खड़े हुए थे. उस समय उड़न खटोला से बीच बाधार में खेत खलिहान में पर्चा गिरा देते थे, जिसे हम सभी चुनकर लाते थे. उसी को देखकर वोट देते थे.

देवल भुइंया ने यह भी बताया कि राजा कामाख्या नारायण अपने कार से आते थे. पंकरी बरवाडीह के मैदान में आते थे. और हम लोग को वोट देने बोलते थे .हम लोग उनका मांदर बजाकर स्वागत करते थे. और पर्चा बांट कर प्रचार करते थे. लेकिन अब प्रचार करने का तरीका बदल गया है. अब लाउडस्‍पीकर, डीजे साउण्‍ड से वोट का प्रचार किया जाता है. दीवार पर लिखकर वोट प्रचार किया जाता है. लेकिन पहले ऐसा नहीं था.

देवल भुइंया ने बताया कि राजा साहब 1952 से लेकर लगातार 1970 तक हम लोग के विधायक रहे थे. उन्होंने बताया कि हम लोग राजा साहब को इसलिए वोट दिया करते थे कि वह बड़कागांव क्षेत्र में राज करते थे. हम लोग को सहयोग करते थे. हमारे पूर्वज को 3 एकड़ जमीन दान में दिये थे. राजा साहब से हम लोगों का अच्छा संबंध था. राजा साहब चुनाव नहीं लड़ने लगे. तब कांग्रेस को हम लोग वोट देने लगे.

देवल भुइंया ने यही बताया कि पहले जात-पात और धर्मवाद पर वोट नहीं लड़ा जाता था. बल्कि विकास पर वोट लड़ा जाता था. देवल भुइंया ने बताया कि पहले वोट देने के लिए बूथ बीच बाधार(खेत) में बनाया जाता था. 50 साल पहले से बड़कागांव हाई स्कूल में बूथ बनाया गया. तब से लेकर अबतक वहीं पर हम एक किलोमीटर दूर पैदल चलकर वोट देते जाते हैं.

पहले राजा साहब ही केवल वोट मांगने आते थे. लेकिन अब वोट मांगने वाले 10-12 आने लगे हैं. हम लोग राजा साहब को बाबू कुंवर और बहादुर के नाम से जानते थे. पहले के चुनाव में पैसे खर्च नहीं होते थे. लेकिन अब तो वोट में दारू, पैसा और मुर्गा चलने लगा है. वोट का रीती रिवाज ही बदल गया है.

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