पांच वर्ष बाद भी पक्के मार्ग से नहीं जुड़ पाया मनातू

पांच वर्ष बाद भी पक्के मार्ग से नहीं जुड़ पाया मनातू केरेडारी प्रखंड का उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र मनातू पंचायत विकास से कोसो दूर6केरेडारी1में- नदी में गाड़ी से फंसे लोग6केरेडारी2में- मसुरिया में बना स्वास्थ्य केंद्रकेरेडारी. पंचायती राज व्यवस्था लागू होने के बावजूद केरेडारी प्रखंड का उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र मनातू पंचायत विकास से कोसो दूर है. सड़क, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 6, 2015 9:03 PM

पांच वर्ष बाद भी पक्के मार्ग से नहीं जुड़ पाया मनातू केरेडारी प्रखंड का उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र मनातू पंचायत विकास से कोसो दूर6केरेडारी1में- नदी में गाड़ी से फंसे लोग6केरेडारी2में- मसुरिया में बना स्वास्थ्य केंद्रकेरेडारी. पंचायती राज व्यवस्था लागू होने के बावजूद केरेडारी प्रखंड का उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र मनातू पंचायत विकास से कोसो दूर है. सड़क, बिजली, शिक्षा, पानी, सिंचाई की घोर समस्या है. या यूं कहें मनातू का अपेक्षित विकास नहीं हो पाया. मनातू पंचायत प्रखंड मुख्यालय से लगभग 20 किमी की दूरी पर स्थित है. जो कि जंगलों से घिरा हुआ है. लोगों को एक गांव से दूसरे गांव में आने-जाने के लिए पक्की सड़क तक नहीं है. प्रखंड मुख्यालय से जोड़ने के लिए पक्की सड़क तो सरकार ने बना दी लेकिन नदी पर पुल नहीं बना. मनातू पंचायत एक आदिवासी व हरिजन बहुल क्षेत्र है. यहां की आबादी लगभग पांच हजार है. अधिकतर लोगों के पास रहने के लिए पक्का मकान नहीं है. 32 साल बाद पंचायत चुनाव के बावजूद इसकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ. यह गांव पक्के मार्ग से प्रखंड मुख्यालय से भी नहीं जुड़ पाया है. स्वास्थ्य सुविधा भी लचर है. लाखों रुपये की लागत से उपस्वास्थ्य केंद्र बनाया गया. इसके बावजूद आज तक केंद्र को विभाग को हैंडओवर नहीं किया गया है. लोगों को बीमार पड़ने पर इलाज कराने के लिए 15 से 20 किलोमीटर चल कर केरेडारी आना पड़ता है. सड़कों की असुविधा के कारण ना ही यहां कोई यात्री वाहन चलते हैं और न ही माल वाहन. जिस कारण मनातू गांव के विकास में जंग लग गया है.टापू बन जाता है मनातू का कई गांव : बारिश सबसे बड़ी समस्या बन जाती है. मनातू पंचायत में गोपदा, बकचोमा, इतीज, मनातू, मसुरिया, पांडेयकुली स्थित है. जो चारों तरफ से नदी व जंगलों से घिरा हुआ है. बारिश में मनातू गांव को घेरने वाली नदियां दरदरा नदी, गोटका नदी उफान पर रहती है. नदी में अधिक पानी होने के कारण इन गांव का संपर्क प्रखंड मुख्यालय से टूट जाता है. बारिश के दिनों में मनातू के अधिकतर गांव टापू में तब्दील हो जाते हैं. लोगों को प्रखंड मुख्यालय आने के लिए नदी को तैर कर पार करना होता है. संसाधन विहीन गांव होने के कारण कई बीमार व्यक्तियों की मौत भी असमय हो जाती है. भगवान भरोसे यहां चलता यहां है विकास कार्य : गांव में विकास के नाम पर प्रावि व आंगनबाड़ी केंद्र है. गांव का विद्यालय व आंगनबाड़ी केंद्र भी भगवान भरोसे चलता है. बिजली की समस्या तो आम बात है. क्या कहते हैं ग्रामीण : ग्रामीण विजय गंझू, चरक गंझू, रिनो राम ने बताया कि पंचायत चुनाव के बाद हमलोगों को एक उम्मीद जगी कि अब हमारे गांव का विकास होगा. हमलोगों का सपना साकार नहीं हुआ. आज भी यहां बिजली व पानी की समस्या व्याप्त है. आज विकास कार्य में बिचौलिये हावी हैं. बेरोजगारी तो चरम सीमा पर है. युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा है. लोग रोजगार के लिए शहरों में भटकते रहते हैं. यहां कोई भी सरकारी कर्मी जल्दी नहीं आता. हमारे गांव की दशा को देखना तो दूर कोई बात तक सुनने को तैयार नहीं हैं. सिर्फ चुनाव के समय में ही जनप्रतिनिधि वोट मांगने आते हैं. जीतने के बाद नजर भी नहीं आते. अब वो समय आ गया है. हम सभी को ईमानदारी से एक सच्चे व कर्मठ मुखिया का चयन करना है. मुखिया नीलमणि देवी ने कहा कि गांव में मनरेगा योजना से दर्जनों कुआं व मिट्टी-मोरम पथ का निर्माण करायें. विकास के लिए मैं तत्पर हूं. पर सरकार की उदासीनता के कारण मुखिया को मिलने वाला कई फंड सरकार के थैली में ही लटका है. जिस कारण कई गांव के सड़कों का पक्कीकरण नहीं हो सका.

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