श्रीविधि से खेती करने पर पौधे में रोग नहीं लगता
धनेश्वर प्रसाद
बड़गांव के किसान फुलेश्वर प्रजापति श्रीविधि से धान की खेती करने के लिए क्षेत्र के लोगों को प्रेरित कर रहे हैं. खुद भी 10 वर्षों से श्रीविधि से धान की खेती कर रहे हैं. उनके खेत की उपज देख क्षेत्र के किसान उनसे यह विधि सीखने आते हैं. फुलेश्वर किसी को निराश नहीं करते. वह बताते हैं कि इस विधि से धान की उपज दोगुनी होती है. इस विधि से खेती करने में ज्यादा मेहनत भी नहीं है. कम बीज, कम पानी और कम लागत में खेती होती है.
फुलेश्वर बताते हैं कि धान के बीच से घास को निकालना बड़ी समस्या होती है. लेकिन, श्रीविधि से खेती करने पर खेत में खर-पतवार हो जाये, तो वीडर का इस्तेमाल कर इसे गला सकते हैं. यह भी खाद का काम करता है. रामगढ़ में आत्मा परियोजना तथा टीएसआरडीएस घाटो से करीब 10 वर्ष पहले श्रीविधि से धान की खेती करने का प्रशिक्षण लिया. बाद में प्रशिक्षण लेने ओड़िशा गये़ अब वह दूसरों को श्रीविधि से खेती करने के लिए प्रेरित और प्रशिक्षित कर रहे हैं.
कैसे होती है श्री विधि से खेती
श्रीविधि से खेती करने के लिए पहले बीज का उपचार करना होता है़ इसके लिए बीज को या तो नमक पानी से धोकर कार्बोडेंजीन या बेबिस्टीन पाउडर मिला कर उसको ठंडी जगह में जूट के बोरे में 24 घंटे तक छोड़ दिया जाता है़ इससे बीज में अंकुर निकलने लगते है़
इसके बाद इसे बेड में डाला जाता है़ तीन-चार दिन में यह हरा नजर आने लगता है़ फिर 12 से 15 दिन बाद थोड़ी-थोड़ी दूरी पर बिचड़ा डालते हैं. इससे कली निकलने में सहूलियत होती है़ एक पौधा से 35 से 40 कली निकलती है. खरपतवार को खत्म करने के लिए पहली बार 35 से 40 दिन बाद और फिर 60 से 70 दिन बाद वीडर चलाना पड़ता है. वीडर से पौधे की जड़ हिलती है, जिससे जड़ को ऑक्सीजन अधिक मिलती है़ इस विधि से खेती के दौरान ऑर्गेनिक या नीम खाद का ही इस्तेमाल होता है.