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राजा बंगला में लगा बोर्ड

हजारीबाग शहर के इंद्रपुरी सिनेमा हॉल के सामने राजा बंगला की चार एकड़ 85 डिसमिल सरकारी जमीन संबंधित बोर्ड गुरुवार को जिला प्रशासन की ओर से लगा दिया गया. मुख्यमंत्री रघुवर दास के आदेश के बाद डीसी रविशंकर शुक्ला ने इस मामले में त्वरित कार्रवाई शुरू कर दी है. जिला प्रशासन की ओर से राजा […]

हजारीबाग शहर के इंद्रपुरी सिनेमा हॉल के सामने राजा बंगला की चार एकड़ 85 डिसमिल सरकारी जमीन संबंधित बोर्ड गुरुवार को जिला प्रशासन की ओर से लगा दिया गया. मुख्यमंत्री रघुवर दास के आदेश के बाद डीसी रविशंकर शुक्ला ने इस मामले में त्वरित कार्रवाई शुरू कर दी है.
जिला प्रशासन की ओर से राजा बंगला गेट के पास सरकारी बोर्ड लगा कर सार्वजनिक घोषणा कर दी गयी है कि यह भूमि (खाता-15, प्लॉट-35‍, 35-244, 35-245, 53-246 रकवा 4.85 एकड़) सरकारी भूमि है. जमीन की खरीद-बिक्री या इस पर किसी भी प्रकार का निर्माण करना सख्त मना है.
जमीन बिकने से 50 करोड़ राजस्व का नुकसान: मुख्यमंत्री जनसंवाद में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मनोज गुप्ता ने 50 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान का मामला रखा. उनके अनुसार शहर की सबसे कीमती राजा बंगला व परिसर की सरकारी जमीन है. इस जमीन को पूर्व विधायक सह रिलीजिएस एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के चेयरमैन इंद्र जीतेंद्र नारायण सिंह और ट्रस्ट के सचिव आरएन तिवारी ने कई लोगों को करोड़ों रुपये लेकर दे दिया है.
मनोज गुप्ता ने मुख्यमंत्री को वर्तमान स्थिति से भी अवगत कराया. श्री गुप्ता ने बताया कि चार एकड़ 85 डिसमिल जमीन को बेच कर लगभग 50 करोड़ रुपये की वसूली की गयी है. इससे सरकार को सीधे तौर पर 50 करोड़ रुपया राजस्व का नुकसान हुआ है. 10-12 वर्गफीट की दुकानों की बिक्री दस-दस लाख रुपये तक में हुई. मुख्यमंत्री ने सीधी बात में मनोज गुप्ता व डीसी रविशंकर शुक्ला से वीडियो कांफ्रेंसिंग में पूछा कि इस जमीन को किन लोगों ने बेचा है. सभी को चिह्नित कर एफआइआर करें. इंद्र जीतेंद्र नारायण सिंह के पुत्र पूर्व विधायक सौरभ नारायण सिंह हो या और कोई, सभी पर एफआइआर होगा.
राजा बंगला जमीन का इतिहास: राजतंत्र के समय रामगढ़ राजा की कचहरी इंद्रपुरी सिनेमा के सामने थी.इस पूरे भू-भाग को राजा बंगला का नाम दिया गया था. उस समय राजा का शासन व कोर्ट कचहरी का काम इसी भवन में होता था. आजादी के बाद बिहार लैंड रिफॉम्स एक्ट लागू हुआ. उसके बाद इस कानून के तहत जमींदारी प्रथा खत्म हुई. जहां पर भी सरकारी कामकाज होता था, वह सारी संपत्ति सरकार की हो गयी. राजा बंगला की चार एकड़ 85 डिसमिल जमीन को सरकारी संपत्ति माना गया.
ट्रस्ट बनाकर जमीन पर कब्जे का प्रयास: बिहार सरकार बनाम रामगढ़ फार्मस एंड इंडस्ट्रीज के बीच जिला अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक कानूनी लड़ाई हुई. रामगढ राजा की ओर से कामख्या नारायण सिंह ने जमीन पर कब्जा के लिए एक ट्रस्ट बनाया. ट्रस्ट का नाम रिलिजिएस एंड चैरिटेबल ट्रस्ट था. ट्रस्ट के चेयरमैन राजा कामख्या नारायण सिंह बने और सचिव अपने सहयोगी को बनाया.
ट्रस्ट के सभी सदस्य परिवार के लोग ही थे. इस ट्रस्ट के बायलॉज में लिखा गया है कि राजा बंगला परिसर से होनेवाले आमदनी से धार्मिक अनुष्ठान एवं इचाक के मंदिरों का रख-रखाव होगा. न्यायालय में सरकार के विरुद्ध मुकदमा में पैरवी सबसे पहले रामगढ़ राजा की ओर से राजा कामख्या नारायण सिंह, इंद्र जीतेंद्र नारायण सिंह, उसके बाद सौरभ नारायण सिंह ने कोर्ट में प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से किया. जिला कोर्ट, हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने राजा बंगला परिसर की 4.85 एकड़ जमीन व भवन को सरकारी संपत्ति माना. सुप्रीम कोर्ट ने 2008 में फैसला सुनाया कि राजा बंगला भवन व परिसर में कचहरी चलता था. सरकारी कामकाज होता था. यह जमीन ट्रस्ट का नहीं हो सकता है. यह जमीन सरकार की है.
राजा बंगला परिसर में बना भवन हटेगा
मुख्यमंत्री रघुवर दास ने डीसी को निर्देश दिया है कि तत्काल सरकारी जमीन से अतिक्रमण हटाया जाये. इसके बाद डीसी रवि शंकर शुक्ला ने राजा बंगला परिसर में बने भवन और मालिकों की सूची पर कार्रवाई शुरू कर दी है. वर्ष 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे सरकारी जमीन घोषित किया है. इसके बाद इस परिसर में जो भी मकान बना है, उसे हटाया जायेगा. अपर समाहर्ता, खास महल पदाधिकारी, सदर एसडीओ, नगर पर्षद कार्यपालक पदाधिकारी, भू-अर्जन पदाधिकारी और सदर अंचल अधिकारी की टीम ने पूरी रिपोर्ट जिला प्रशासन को उपलब्ध करा दी है. इसके अलवा 2008 से पहले वहां रह रहे लोगों पर खास महल लीज प्रक्रिया के तहत कार्रवाई होगी. सभी को खास महल कार्यालय की ओर से एक सप्ताह के अंदर नोटिस भेजा जायेगा.
ट्रस्ट को मिली करोड़ों की राशि का ऑडिट हो: मनोज
मुख्यमंत्री जन संवाद में शिकायतकर्ता मनोज गुप्ता ने डीसी रविशंकर शुक्ला से ट्रस्ट का ऑडिट कराने की मांग की है. 1950 से रामगढ़ राजा द्वारा रिलिजिएस एंड चैरिटेबल ट्रस्ट के तहत करोड़ों रुपये की वसूली की गयी है. ट्रस्ट की आमदनी से धार्मिक अनुष्ठान एवं इचाक के मंदिरों का रख-रखाव होना था, लेकिन इचाक के सभी मंदिर जर्जर अवस्था में हैं. ट्रस्ट से हुए आमदनी का व्यक्तिगत इस्तेमाल किया गया.

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