Jharkhand news, Hazaribagh news : बड़कागांव (संजय सागर) : जहां एक ओर पूरे विश्व में पर्यावरण एवं वनों के संरक्षण के लिए कई कदम उठाये जा रहे हैं, वहीं हजारीबाग जिला अंतर्गत बड़कागांव, केरेडारी, कटकमसांडी आदि क्षेत्रों में जंगलों का लगातार दोहन हो रहा है. कभी आपको हजारीबाग- बड़कागांव भाया केरेडारी रोड होते हुए टंडवा की यात्रा करने का अवसर मिले, तो आप इस क्षेत्र के सड़कों से ही जंगलों में किया गया दोहन साफ दिख जायेगा. विभिन्न तरह की कंपनियों को स्थापित किये जाने के नाम पर जंगलों का दोहन हुआ. यही कारण है कि घना जंगल अब विरान नजर आने लगा है. जंगलों के दोहन से हाथियों ने भी अब अपनी पनाह गांव की ओर कर लिया है.
बड़कागांव प्रखंड के विभिन्न गांवों में कई वर्षों से हाथियों का आतंक बढ़ा हुआ है. कोल कंपनियों से सड़क निर्माण के नाम पर पेड़- पौधों को काट दिये गये हैं, तो टंडवा, चिरुडीह, पंकरी बरवाडीह कोल खदानों से कोयले की ट्रांसपोर्टिंग के कारण पेड़- पौधों की हरियाली खत्म हो गयी.
बरसात खत्म होते ही पेड़- पौधे काले दिखने लगते हैं. तो बिना हवा के भी धूलकण तूफान सा उड़ते नजर आते हैं. इन धूलकणों से सूरज की किरणें भी फीकी नजर आती है. जय मां अंबे द्वारा पकरी- बरवाडीह कोयला खदान में कार्य प्रारंभ किया गया है, तब से आसपास के पेड़ -पौधों को काटा गया.
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बड़कागांव प्रखंड के जुगरा झरना, चंदोल, पुंदोल, गोंदलपूरा, हाहै, बलोदर गांवों के ग्रामीणों ने बताया कि डेढ़ सप्ताह से हाथियों का आतंक जारी है. इससे लाखों रुपये के फसल नष्ट हो गये हैं. ग्रामीणों ने कहा कि यह आज का समस्या नहीं है, बल्कि हाथियों का आतंक कई समय से जारी है.
बड़कागांव क्षेत्र के रेंजर उदय चंद्र झा ने बताया कि भोजन की तलाश के लिए हाथी गांव की ओर आते हैं. जो गांव जंगलों के आसपास में बसे हैं. उन्हीं गांव में ज्यादा हाथियों का आना- जाना लगा रहता है. हालांकि, एनटीपीसी एवं अन्य कंपनियों के आने से एवं जंगलों की कटाई से हाथियों के आवागमन एवं आवास में प्रभाव पड़ा है. वैसे यह क्षेत्र सदियों से हाथियों का आवागमन का रास्ता बना हुआ है. इस क्षेत्र के हाथी छत्तीसगढ़ के जंगलों से भी संबंध रखते हैं. हाथियों का का संबंध घने जंगलों से होता है. जहां घने जंगल होते हैं हाथी वहीं वास करते हैं. जहां विरान सा जंगल होता है वहां हाथी नहीं रह सकते हैं.
जनश्रुति के अनुसार, करणपुरा क्षेत्र हाथियों का व्यापार केंद्र था. करणपुरा या रामगढ़ राज के राजा हाथियों का व्यापार किया करते थे. इसका प्रमाण आज भी पदमा के किले के आसपास देखने को मिलता है. बताया जाता है कि मध्यकाल में राजा हाथियों को पकड़ने के लिए जंगलों में कुआं के आकार की तरह गड्ढे बना दिया करते थे. जहां हाथी आने -जाने के दौरान फंस जाया करते थे. इससे साबित होता है कि इस क्षेत्र में हाथियों वास रहता था, लेकिन जंगलों की कटाई होने से हाथियों की संख्या निरंतर घटती गयी.
Posted By : Samir Ranjan.