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बड़कागांव में प्रेशर हॉर्न के शोर से जनता परेशानमनमाने तरीके से हॉर्न बजाते हैं छोटे बड़े वाहन

प्रदूषण विभाग की लापरवाही का वाहन चालक गलत फायदा उठा रहे हैं. बड़कागांव और आसपास के क्षेत्र में छोटे-बड़े वाहन बेवजह हॉर्न बजाते हैं.

वाहनों पर कार्रवाई न होने से आम लोग त्रस्त, डाक्टर्स बोले-नुकसानदायक है यह हॉर्न

रोक के बावजूद सिटी में धड़ल्ले से बिक रहा प्रेशर हॉर्न

प्रतिनिधि, बड़कागांव

प्रदूषण विभाग की लापरवाही का वाहन चालक गलत फायदा उठा रहे हैं. बड़कागांव और आसपास के क्षेत्र में छोटे-बड़े वाहन बेवजह हॉर्न बजाते हैं. प्रेसर हॉर्न होने के कारण लोगों को परेशानी होती है. सड़क जाम के दौरान भी छोटे बड़े वाहन बेवजह हॉर्न बजाने लगते हैं. तेज हॉर्न बचाने से दुकानदार और पैदल चलने वाले को परेशानी होती है. जानकारों का कहना है कि ध्वनि प्रदूषण से न केवल लोग बहरे हो सकते हैं बल्कि यादाश्त और एकाग्रता में कमी, चिड़चिड़ापन, अवसाद के अलावा नपुंसकता और कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों की चपेट में भी आ सकते हैं. ध्वनि प्रदूषण से लोगों में बहुत सी स्वास्थ्य संबंधी बीमारियां होती है. पशुओं, पक्षियों और पेड़ों की असुरक्षा का कारण बनता है. अधिकांश वाहनों जैसे हाइवा, टर्बो, ट्रैक्टर और कुछ यात्री बसें तेज हॉर्न रखे हुए हैं.

क्या कहते हैं चिकित्सा प्रभारी

: बड़कागांव अस्पताल के चिकित्सा प्रभारी डॉ अविनाश कुमार का कहना है कि वाहनों में हॉर्न की ध्वनि 112 डेसीबल तक होनी चाहिए. इससे तेज ध्वनि होती है, तो कान और स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ सकता है. इसके अलावा प्रत्येक जीव के लिए नुकसानदेह साबित होता है.

ये हो सकती हैं बीमारियां :

ध्वनि प्रदूषण से चिंता, बेचैनी, बातचीत करने में समस्या, बोलने में व्यवधान, सुनने में समस्या, उत्पादकता में कमी, सोने के समय व्यवधान, थकान, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, घबराहट, कमजोरी, ध्वनि की संवेदना प्रभावित होती है. लंबी समयावधि में धीरे-धीरे सुनने की क्षमता खो बैठता है. ऊंची आवाज में लगातार ढोल की आवाज सुनने से कानों को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचता है.

रात दस से सुबह छह बजे तक प्रतिबंध :

अधिवक्ताओं कहना है कि रात के दस बजे से सुबह के छह बजे तक खुली जगह में किसी तरह का ध्वनि प्रदूषण डीजे, लाउडस्पीकर, बैंड बाजा, स्कूटर कार बस का हॉर्न, धर्म के नाम पर वाद्ययंत्र का इस्तेमाल या संगीत पूरी तरह प्रतिबंध है. इन नियमों का उल्लंघन करने वाले दोषियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 290 और 291 के अलावा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत एक लाख रुपये का जुर्माना अथवा पांच साल तक की जेल या फिर दोनों सजा एक साथ हो सकती है.

क्या होता है नियम :

गाड़ियों में हॉर्न ऐसा होना चाहिए, जिससे शोर न मचे. इसके लिए सेंट्रल मोटर व्हेकिल रुल्स ने नियम बनाये हैं. इसके तहत 93 से 112 डेसीबल तक हॉर्न की आवाज होनी चाहिए. कंपनी से गाड़ियों में इतने ही डेसीबल के हॉर्न लगाये जाते हैं. लेकिन शौकिया लोग अलग से प्रेशर हॉर्न लगा लेते हैं, जो करीब दो सौ से ढाई सौ डेसीबल का होता है, जो नियम के खिलाफ तो है ही कानों को भी नुकसान पहुंचाता है.

फाइन का भी नहीं डर :

शहर में चलने वाली गाड़ियों में प्रेशर हॉर्न का उपयोग करने पर ट्रैफिक पुलिस फाइन भी करती है. प्रेशर हॉर्न के इस्तेमाल पर दो हजार से लेकर पांच हजार तक जुर्माना लगाया जाता है. चेकिंग अभियान के दौरान अक्सर पुलिस ऐसे वाहनों पर फाइन लगाती है. इसके बाद भी लोग प्रेशर हॉर्न गाड़ियों में धड़ल्ले से लगवा रहे हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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