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आइए जानते हैं झारखंड में रामनवमी जुलूस का इतिहास

झारखंड में रामनवमी जुलूस की शुरुआत वर्ष 1918 में हजारीबाग से हुई थी. स्व गुरु सहाय ठाकुर ने अपने मित्र हीरालाल महाजन, टीभर गोप, कन्हाई गोप, जटाधर बाबू, यदुनाथ के साथ रामनवमी मनाने की शुरुआत की थी.

By Prabhat Khabar News Desk | April 17, 2024 6:12 PM

झारखंड में रामनवमी जुलूस की शुरुआत वर्ष 1918 में हजारीबाग से हुई थी

पहली बार हजारीबाग में रामनवमी जुलूस गोधुली बेला में निकला था

वर्ष 1918 में हजारीबाग से शोभायात्रा की शुरुआत

कोरोना काल में रामनवमी जुलूस नहीं निकला था

जमालउद्दीन, हजारीबाग

झारखंड में रामनवमी जुलूस की शुरुआत वर्ष 1918 में हजारीबाग से हुई थी. स्व गुरु सहाय ठाकुर ने अपने मित्र हीरालाल महाजन, टीभर गोप, कन्हाई गोप, जटाधर बाबू, यदुनाथ के साथ रामनवमी मनाने की शुरुआत की थी. शहर के कुम्हारटोली से पहली बार जुलूस निकाला गया था. गोधुली बेला में बड़ा अखाड़ा से 40-50 फीट ऊंचे दर्जनों झंडों के साथ जुलूस निकाला गया. बड़ा बाजार स्थित एक नंबर टाउन थाना के सामने कर्जन ग्राउंड से जुलूस मैदान में पहुंचा. यहां एक-दो घंटे लोगों ने लाठी डंडा खेला. फिर वापस झंडे अपने-अपने मोहल्ले में चले गये. यह सिलसिला कई वर्षों तक जारी रहा. वहीं, वर्ष 1933 में कुम्हारटोली में बसंती दुर्गा पूजा की शुरुआत हुई.

वर्ष 1956 में पहली बार बनी समिति :

हजारीबाग शहर में बिजली के तार लगने के कारण रामनवमी के दिन निकलनेवाले महावीरी झंडे की ऊंचाई में कमी की गयी. वर्ष 1956 में रामनवमी महासमिति का पहली बार गठन हुआ. वर्ष 1962 तक सिर्फ नवमी में मोहल्ले के लोग झंडा लेकर जुलूस निकालते थे.

मंगला जुलूस की शुरुआत :

वर्ष 1963 में कुम्हारटोली मोहल्ला से मंगला जुलूस पूजा की शुरुआत हुई. हनुमान मंदिर में लंगोट व लड्डू चढ़ाकर पूजा शुरू की गयी. नवमी के दिन जुलूस निकाला जाता था. वर्ष 1970 के बाद जुलूस में बदलाव आया. मोहल्लों में झंडा लेकर लोग दिन में बड़ा अखाड़ा में जमा होने लगे. वहां से कर्जन ग्राउंड जाकर अस्त्र-शस्त्र और लाठी से करतब दिखाते थे. जुलूस में ढोल नगाड़ा, शहनाई, शंख, बांसुरी झाल, मंजीरा, परंपरागत वाद्य यंत्र रहते थे. पूरे परिवार के साथ लोग रामनवमी मेला जुलूस में शामित होते थे. बाद में जुलूस के बढ़ते स्वरूप को देखते हुए चैत्र रामनवमी महासमिति का गठन होने लगा. पहली बार कोलकाता से आयी ताशा पार्टी : वर्ष 1970 में पहली बार बाडम बाजार ग्वालटोली रामनवमी समिति ने कोलकाता से ताशा पार्टी मंगायी थी. जुलूस में प्रतिमाएं और प्रकाश की भी व्यवस्था की गयी.

जुलूस में झांकी की शुरुआत :

वर्ष 1980 के आसपास जुलूस में झंडों के साथ झांकी भी शामिल की गयी. 1985 में कोर्रा पूजा समिति, मल्लाहटोली पूजा समिति ने पहली बार जीवंत झांकी प्रस्तुत की. 1990 के आसपास रामनवमी जुलूस में बड़े स्तर पर आकर्षक झांकियां शामिल होने लगी. कोरोना काल के दौरान नहीं निकला जुलूस : कोराेना काल में दो साल जुलूस नहीं निकाला गया. मंदिरों और अखाड़ों में ही पूजा-अर्चना हुई. वर्तमान में शहर में दशमी और एकादशमी तक रामनवमी का जुलूस निकलता है. अखाड़ों की संख्या लगभग 100 के करीब पहुंच गयी है. सभी मोहल्लों, क्लब और अखाड़ों का जुलूस दशमी को अपने अखाड़ों से निकल कर देर रात तक शहर के मेन रोड तक पहुंचता है. एकादशी को दिनभर शहर के सभी मार्गों में सैंकड़ों जुलूस पार करते हैं. देर शाम तक जुलूस का समापन होता है. धार्मिक, सामाजिक संदेशवाले एक से बढ़कर एक झांकी, जीवंत झांकी की प्रस्तुति होती है.

रामचरित मानस के ज्ञाता थे गुरु सहाय :

गुरु सहाय ठाकुर का वर्ष 1893 में कुम्हारटोली के एक सामान्य परिवार में जन्म हुआ था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा हजारीबाग नगरपालिका स्कूल और माध्यमिक स्तर की पढ़ाई जिला स्कूल से हुई थी. वह रामचरित मानस के अच्छे ज्ञाता भी थे. वे नगरपालिका के तहसीलदार के पद पर कार्य करते थे. हिंदू समाज में नवजागृति लाने की पहल की. समाज में व्याप्त कुरीतियों को मिटाना चाहते थे.

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