रावण को ज्ञान का अहंकार था, श्रीराम को अहंकार का ज्ञान था : मिथिलेश्वरी
लंका के राजा रावण महाज्ञानी और प्रतापी थे. उन्हें ज्ञान का अहंकार था. जबकि श्रीराम को अहंकार का ज्ञान था.
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लंका के राजा रावण महाज्ञानी और प्रतापी थे. उन्हें ज्ञान का अहंकार था. जबकि श्रीराम को अहंकार का ज्ञान था. रावण के अत्याचार से देवता और गंधर्व भी परेशान थे. इस कारण रावण को अंत करने के लिए भगवान श्री राम को अवतार लेना पड़ा था. उक्त बातें जमुआरी गांव में आयोजित यज्ञ के चौथे रात को गिरिडीह से आई मिथिलेश्वरी शास्त्री ने प्रवचन के दौरान कहीं. उन्होंने कहा कि रावण का अत्याचार उनके भाई विभीषण को पसंद नहीं था. जब रावण ने देवता व गंधर्व की पत्नियों को अपहरण कर लंका लाने लगा. तब विभीषण ने कहा था कि लंका समुद्र के बीच बसा है. लंका को समुद्र ने डूबो नहीं सका पर नारियों के आंसू एक दिन लंका को जरूर डूबो देगी. रावण के अत्याचार से तंग होकर पृथ्वी माता ने गो का रूप धारण कर रो-रोकर कहने लगी कि हे भगवान आप कहां हैं. रावण के अत्याचार से मुक्त कराओ. तभी आकाशवाणी हुई कि त्रेता युग में भगवान विष्णु मानव रूप में जन्म लेंगे और उन्हीं के हाथों रावण समेत राक्षस कुल का अंत होगा. इसके बाद राजा दशरथ की पत्नी कौशल्या के गर्भ से भगवान राम जन्म लिए और 14 वर्ष के बनवास के दौरान सीता हरण के बाद प्रभु श्री राम के हाथों दुराचारी रावण का अंत हो गया.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है