बड़कागांव : कोरोना महामारी (pandemic) की रोकथाम के कारण लॉकडाउन व सामाजिक दूरी ने सभी को एक-दूसरे से अलग कर दिया है. काम-धंधे ठप पड़े हैं. कारीगर बेकार पड़े हैं. हजारीबाग जिला अंतर्गत बड़कागांव प्रखंड में कुटीर उद्योग भी ठप है. हजारों कारीगर जल्द स्थिति सुधरने के इंतजार में हैं. लॉकडाउन के कारण बांस से निर्मित सामान से लेकर लोहे के सामान व जूता निर्माण जैसे कुटीर उद्योग बंद पड़े हैं. बांस के सामग्री के कारीगरों के सामने आर्थिक संकट उत्पन्न हो गयी है. हालांकि, 20 अप्रैल से ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ रियायतें मिलनेवाली है, लेकिन यह रियायतें क्षेत्र की स्थिति पर निर्भर करेगा.
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बड़कागांव प्रखंड में बांस की सामग्री बनाने वाले कारीगर एक साथ कई परेशानियों से जूझ रहे हैं. उनके द्वारा बनाये गये बांस की टोकरी, दौरा, सूप, मोनी आदि यूं ही बेकार पड़े हैं. लॉकडाउन के कारण बाजार नहीं लगने से सामानों की बिक्री नहीं हुई. आर्थिक संकट झेलने वालों में प्रेमवती देवी, लीलावती देवी, रुदनी, उर्मिला देवी, सोमरी देवी, सविता देवी, गुड़िया देवी, गीता देवी, नीलम मोसोमत, शांति मोसोमत, धनेश्वर तुरी, बरजु तुरी, विरजन तुरी, रामगति तुरी, गजेंद्र तुरी, राजेश तुरी, पवन तुरी, फाको तुरी, विनोद तुरी, महेंद्र तुरी, पूनम देवी, दशरथ तुरी, दिलीप तुरी, खेलावन तुरी, अशोक तुरी, अरुण तुरी, ईश्वरी तुरी, मोहन तुरी, पूनम देवी, रेखा तुरी, बंटी तुरी, वीणा देवी, विजय तुरी, विकास तुरी, मीना देवी, मंजू देवी, केसरी देवी, लालो तुरी, सुमित्रा देवी, सुनीता, बसो देवी, रीना देवी, जगरनाथ तुरी, प्रमिला देवी आदि मुख्य हैं.
बड़कागॉव के जूते-चप्पल के कारीगर मनोज राम व शूटर राम ने बताया कि उनके द्वारा बनाये गये जूते, चप्पल व सैंडिल अब बेकार हो रहे हैं. लॉकडाउन के कारण खरीदार नहीं होने से आर्थिक संकट झेलने को मजबूर होना पड़ा रहा है. इसके अलावा मिट्टी के बर्तन व घड़ा बनाने वाले कुम्हार भी आर्थिक तंगी की मार झेल रहे हैं. हीरा प्रजापति व परमेश्वर प्रजापति ने बताया कि पूरे प्रखंड में कुम्हारों द्वारा बनाया गया मिट्टी का बर्तन बेकार हो गया है. लॉकडॉउन को लेकर बिक्री बंद है. इससे हजारों परिवारों की जिंदगी संकट में है. बड़कागांव, पिपराडीह, महुगाई खुर्द, गोसाई बलिया समेत अन्य गांवों में कुम्हारों के सामने आर्थिक तंगी उत्पन्न हो गयी है.
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बड़कागांव प्रखंड व आसपास के क्षेत्र में लोहे के औजार बनाने वालों कारीगरों की भी स्थिति अन्य कारीगरों की जैसी ही है. सिटू लोहार व घनश्याम विश्वकर्मा ने बताया कि काम नहीं होने से बेरोजगार हो गये हैं. अधिकांश लोगों का राशन कार्ड भी नहीं है. निर्मित औजार भी बिक्री के अभाव में यूं ही पड़ा है. बड़कागांव, चोरका, गरीकला के औजार कारीगरों की मुश्किलें भी अन्य कारीगरों की ही तरह है.