हजारीबाग : 16 साल के दिव्यांग साहिल ने जान जोखिम में डाल कैसे बचायी तीन किशोरियों की जान
आठ वर्ष पूर्व बाइक दुर्घटना में घायल साहिल बुरी तरह से जख्मी हो गया था. उसके बांये हाथ एवं पैर टूट गये थे. साहिल के माता पिता दैनिक मजदूरी कर जीवन यापन करते हैं.
अजय ठाकुर, चौपारण
लहरों से डरकर नवका पार नहीं होती. कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती. हरिवंश राय की इस कविता की पंक्ति को चरितार्थ कर दिखाया चयकला निवासी 16 वर्षीय दिव्यांग मो साहिल उर्फ कारू. साहिल बांये हाथ एवं पैर से दिव्यांग है. साहिल 26 सितंबर को बराकर नदी में डूबी छह किशोरियों में तीन किशोरियों को अपनी जान को जोखिम में डालकर बहती नदी की धारा में कूदकर बचा लिया. उसे इस बात का मलाल है कि वह और तीनों को नहीं बचा सका.
पैसे के अभाव में नहीं हो सका बेहतर इलाज : आठ वर्ष पूर्व बाइक दुर्घटना में घायल साहिल बुरी तरह से जख्मी हो गया था. उसके बांये हाथ एवं पैर टूट गये थे. साहिल के माता पिता दैनिक मजदूरी कर जीवन यापन करते हैं. किसी तरह से साहिल का इलाज कराया, इसके बाद भी पैसे के अभाव में साहिल का पूरा इलाज नहीं हो सका. साहिल के पिता मो वैजउद्दीन पांच साल से बीमार चल रहे हैं.
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दुर्घटना के बाद साहिल ने छोड़ा पढाई : साहिल गांव के स्कूल में पांचवीं कक्षा तक पढाई किया है. इस बीच उसका एक्सीडेंट हो गया. उसके बाद से उसकी पढाई छूट गयी. साहिल ने बताया उसके माता पिता पास इलाज के लिए पैसे नहीं है, तो पढ़ाई कहां से करा पाते. पांच भाई बहन में साहिल चौथे नंबर पर है. उसकी तीन बहन है और एक बड़ा भाई एनउल्लाह है. बड़ी बहन की शादी हो चुकी है. जबकि दो बहने कुंवारी है. सभी परिवार के सदस्य एक छोटा सा खपरैल मिट्टी के घर में रहते हैं. साहिल को दिव्यांगता पेंशन भी नहीं मिलता है.
पहली बार मामा के साथ मछली मारने नदी गया था साहिल:
साहिल ने बताया पहली बार मामा मो माजीर, मो सदाम हुसैन एवं मो साजिद हुसैन के साथ खाने के लिए मछली मारने बराकर नदी गया था. चारो नदी किनारे दूर-दूर अलग-अलग बंशी लगाये बैठे थे. जहां किशोरियां नदी में करम डाली को प्रवाहित कर रही थी. उसके कुछ ही दूरी पर साहिल बंशी लगाये बैठा था. सब कुछ उसके आंखों से गुजर रहा था. इसी बीच करम डाली को प्रवाहित करने किशोरियों के साथ गये छोटे बच्चे मेरी दीदी को बचाओ-बचाओ कहकर चिल्लाने लगे. उसके बाद बिना कुछ सोचे बिचारे नदी में कूद गया. पहले एक किशोरी को नदी से बाहर निकाला. फिर दूसरी को निकलने के क्रम में मैं बुरी तरह उसकी साड़ी में फंस गया. बड़ी मशक्कत के बाद दूसरी को बाहर निकाल सका. तब तक तीसरी किशोरी पर नजर पड़ी. फिर पुनः नदी में अपनी जान को जोखिम में डालकर कूद गया. इस तरह तीनों किशोरियों को बहती हुई नदी के पानी से बाहर निकला. मुझे इस बात का खेद है कि मैं उन तीनों किशोरियों को नहीं बचा सका. साहिल ने बताया अपने मामा सद्दाम हुसैन से तैरना सीखा है. साहिल ने बताया वे 10 वर्ष से ही पानी में तैरना सीखा है. चयकला के प्रसिद्ध गोताखोरों के छोटे टीम में शामिल है. साहिल की मां अपने बेटे की बहादुरी से काफी खुश है. उन्होंने कहा मुझे बेटा पर गुमान है. जिसने अपनी जान को जोखिम में डालकर तीन बेटियों का जान बचाने में कामयाब रहा, पर इस बात का मलाल भी है, जो उन तीन बेटियों को नहीं बचा सका. साहिल को सम्मानित करने बुधवार को जेएमएम के जिला उपाध्यक्ष बीरेन्द्र राणा, उज्वल सिंह सहित कई लोग उसके घर पहुंचे.