तब मामूली खर्च से लड़े व चुनाव जीते थे रामलखन सिंह

: बूथ खर्च का पैसा भी गांव के लोग चंदा कर देते थे

By Prabhat Khabar News Desk | November 11, 2024 7:19 PM

: बूथ खर्च का पैसा भी गांव के लोग चंदा कर देते थे बरही. 92 वर्षीय राम लखन सिंह सक्रिय राजनीति से वर्षों पहले सन्यास लें चुके हैं. वर्ष 1969 से 1995 तक वे चुनावी राजनीति में सक्रिय रहे थे. बरही विधानसभा क्षेत्र से पहली बार 1980 में एमएलए का चुनाव लड़े, पर जीत नहीं पाये. 1985 के चुनाव के अंतिम राउंड के मतगणना में वे मात्र 14 वोट के अंतर से जीत रहे थे. पर री-काउंटिंग में 104 वोट से वे हार गये थे. रामलखन सिंह मानते हैं उन्हें एक साजिश के तहत हरा दिया गया था, जिसका कसक उन्हें आज भी है. हालांकि 1990 के चुनाव में जीते व 1995 तक बरही से सीपीई के विधायक रहे. वे बताते हैं तब चुनाव में पानी की तरह पैसा नहीं बहाया जाता था. चुनाव पार्टी संगठन व पार्टी कैडर के बल पर लड़ा जाता था. चुनाव लड़ने के लिए उन्हें चंदा ग्रामीण देते थे. 1990 में जब वे 22 हज़ार वोट पा कर जीते थे, तो उनका मात्र बाइस हजार 500 रुपया खर्च हुआ था. एक जीप से जनसंपर्क करते थे. उसी में लाउड स्पीकर का चोगा बांध कर प्रचार करते थे. जीप का भाड़ा, डीज़ल, परचा पंपलेट, डमी बैलेट पेपर, मुख्य चुनावी खर्च होता था. जनसंपर्क के क्रम में उन्हें व कार्यकर्ताओं को खाना गांव के लोग ही खिला देते थे. मतदान के दिन बूथ खर्च का पैसा भी गांव के लोग चंदा करके देते थे. बूथ खर्च मामूली था. एक बूथ एजेंट को 20 रुपये देना पड़ता था. फर्जी वोटर के खिलाफ चैलेंज करने के लिए दो रुपये पीठसीन पदाधिकारी के पास जमा करना पड़ता था. आज तो बूथ मैनेजमेंट के नाम पर उम्मीदवार केवल एक बूथ में हजारों रुपये खर्च करते हैं.

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