Loading election data...

खतरे में पड़ा आदिम जनजाति समुदाय के बिरहोरों का अस्तित्व, लॉकडाउन के कारण भुखमरी की आयी नौबत

आदिम जनजाति समुदाय के बिरहोरों का अस्तित्व खतरे में है. यह बिरहोर जनजाति बड़कागांव प्रखंड के काडतरी पंचायत स्थित सदा बहिया गांव में और चेपा कला पंचायत के तार टांड़ में रहते हैं.

By Sameer Oraon | May 6, 2020 3:40 PM

बड़कागांव: झारखंड के 32 जनजातियों में से विलुप्त होती आदिम जनजाति समुजदाय के बिरहोरों का अस्तित्व खतरे में है. यह बिरहोर जनजाति बड़कागांव प्रखंड के काडतरी पंचायत स्थित सदा

बहिया गांव में और चेपा कला पंचायत के तार टांड़ में रहते हैं. लॉकडाउन के लेकर इनके समक्ष भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई है. राशन दुकान द्वारा मिले चावल से माड़-भात खाने को मजबूर हैं. ये कौशल्या बिरहोर कहती है कि हमलोग सब्जी के बिना तरस गए हैं.

चेपाकलां के तारटांड़ में 4 घर बिरहोर रहते हैं. यहां के बिरहोर घुमंतू बिरहोर हैं. ये लोग घूम-घूम कर जीवन यापन करते हैं. जबकि स्थाई रूप से रहने वाले बिरहोर बड़कागांव के सदा बहिया में रहते हैं. यहां 45 घर घिरोर है. जिसमें से 290 लोगों की संख्या है. इस संबंध में कोशिला बिरहोर ने बताया कि यहां पर विधायक अंबा प्रसाद द्वारा एक माह पहले मास्, आलू, टमाटर और एक बोरा चावल दिया गया. जिसे हम लोगों ने दो- दो किलो चावल प्रतिघर बांट लिए. ब्लॉक के माध्यम से रोजगार सेवक संभू रविदास द्वारा एक-एक मास्क दिया गया. सदाबहिया के बिरहोरों ने बताया कि दो-तीन दिन पहले हम लोगों को मिर्जापुर के राशन डीलर शहबानअली द्वारा प्रति सदस्य को 2 महीने का 05-05 किलो चावल दिया गया.

क्या क्या आवश्यकता है इन्हें

लॉकडाउन के कारण इनके समक्ष भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो गई है. इन्हें कपड़ा, चावल, दाल सरसों का तेल आलू समेत अन्य सब्जियों की आवश्यकता है. कौशल्या बिरहोर का कहना है कि राशन डीलर द्वारा 10 किलो प्रति सदस्यों को चावल चावल मिला. जो 12 -13 दिनों तक चावल चल सकता है. इसके पहले कुछ लोगों द्वारा दो 2 किलो चावल मिला. इतना राशन कितने दिनों तक चल सकता है.

अब हम बाहर नही जाएंगे

सदाबहिया में चरका बिरहोर एवं रामजु बिरहोर उड़ीसा से 4 दिन पहले आया है. उसे स्वास्थ्य विभाग द्वारा क्वारेंटाइन वार्ड भेज दिया गया है. इन लोगों का कहना है कि अब हम बाहर नहीं जाना चाहते हैं. बल्कि गांव में ही रहकर खेती बारी का काम करना चाहते हैं या सरकार द्वारा जो हमें काम दिया जाएगा वही करेंगे. बाहर में बहुत परेशानियां होती है.

क्या-क्या है समस्या

कौशल्या देवी ने बताया कि बिरहोर टोला में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या 30-35 है. स्कूल बंद है. हम लोगों के पास स्मार्ट मोबाइल फोन नहीं है, तो कैसे पढ़ाई करेंगे? यहां 2 चापाकल है जिसमें से एक खराब हो चुका है. जबकि दूसरा चापाकल से पीने योग्य पानी नहीं निकलता है. 2 कुएं जर्जर है. पानी पीने का साधन मात्र एक पानी टंकी है. जो सौर ऊर्जा द्वारा चलता है. बैटरी खत्म हो जाता है तो पानी निकालना मुश्किल हो जाता है.

Next Article

Exit mobile version