जहां रहता था नक्सलियों का खौफ, वहां 35 महिलाएं हैं शिक्षित
वर्ष 1990 से 2000 तक बड़कीटांड़ टोला में नक्सलियों का खौफ रहता था. इस टोले के लोग शाम होते ही घरों में दुबक जाते थे. क्योंकि इसी टोले के किनारे स्थित जंगलों में नक्सलियों की बैठकें बराबर होती थी.
केरेडारी. वर्ष 1990 से 2000 तक बड़कीटांड़ टोला में नक्सलियों का खौफ रहता था. इस टोले के लोग शाम होते ही घरों में दुबक जाते थे. क्योंकि इसी टोले के किनारे स्थित जंगलों में नक्सलियों की बैठकें बराबर होती थी. नक्सली बड़कीटांड़ में आकर फरमान जारी कर देते थे कि बैठकें हो रही है खाना बना दो. भय से टोले के लोग नक्सलियों को खाना बनाकर खिलाते थे. भय से बच्चे पढ़ाई लिखाई नहीं कर पाते थे. यह टोला केरेडारी प्रखंड मुख्यालय से आठ किमी की दूरी पर पश्चिम-दक्षिण की दिशा में जंगल झाड़ियों के किनारे स्थित है. बड्कीटांड़ सलगा पंचायत का एक टोला है. वर्ष 2000 के बाद जब नक्सलियों का पलायन हुआ, तब यहां के लोग अमन चैन महसूस करने लगे. बच्चे स्कूल जाने लगे. इस टोले में 15 घर गंझू, 17 घर सुंडी, 26 घर कुर्मी, 11घर भुइयां एवं चार घर कुम्हार जाति के लोग निवास करते है. 2011 के जनगणना के अनुसार इस टोले की जनसंख्या लगभग 365 है, जिसमें 35 महिलाएं पढ़ी-लिखी पायी गयी. पुरुष वर्ग के लोग कम पढ़े लिखे हैं. इस टोले को मुख्य पथ से जोड़ने के लिए 2019 में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत सड़क का निर्माण हुआ था, वह धीरे-धीरे जर्जर होते जा रहा है. इससे पूर्व वर्ष 1999 में झारखंड शिक्षा परियोजना से एक विद्यालय बना है. जहां 30 बच्चे पढ़ते हैं. यहां रोजगार का कोई साधन नहीं है. जिसके कारण 25 युवक काम के तलाश में रांची, मुंबई, हैदराबाद पलायन कर गये है. क्या कहते हैं टोले के लोग: बड़कीटांड टोला के शनिचर गंझू, विनोद गंझू, बीफा गंझू, होरिल गंझू, नगिया देवी, कपिला देवी, सरिता देवी, सावित्री देवी, सोनी देवी ने बताया कि अब यहां नक्सलियों का कोई डर नहीं है, हमलोग खुशहाल जीवन जीते हैं, पर यहां उच्च शिक्षा की व्यवस्था नहीं है न ही रोजगार का साधन है.
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