Jamshedpur news : पारंपरिक गीतों व नृत्यों में दिखी पश्चिम ओडिशा की समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास की झलक

Jamshedpur news : नुआंखाई केवल एक कृषि पर्व नहीं है, बल्कि यह समाज में एकता, सहयोग और भाईचारे का संदेश देता है. इस दिन लोग सभी प्रकार के व्यक्तिगत मतभेदों को भूलकर एक दूसरे के साथ खुशी और प्रेम बांटते हैं. खासतौर पर पश्चिमी ओडिशा में यह पर्व परिवारों को एक साथ लाता है और समाज में सामुदायिक भावना को मजबूत करता है.

By Dashmat Soren | September 21, 2024 9:39 PM

Jamshedpur news : गोलमुरी स्थित केबुल मुखी बस्ती में शनिवार की शाम को करमा पूजा व नुआंखाई पर्व के उपलक्ष्य में मुखी समाज द्वारा जुहार भेंट घाट कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इस सांस्कृतिक संध्या में समाज के युवाओं ने परंपरागत गीत-संगीत और नृत्य की प्रस्तुति से समां बांध दिया. आयोजन में मुखी समाज की प्राचीन संस्कृति और परंपराओं का खूबसूरत प्रदर्शन कर समाज के लोगों के बीच सांस्कृतिक धरोहर को संजोने का प्रयास किया. कार्यक्रम की शुरुआत मुखी समाज के युवाओं द्वारा पारंपरिक गीतों और नृत्यों से हुई. युवाओं ने संबलपुरी और आदिवासी लोकगीतों पर नृत्य करके लोगों का दिल जीत लिया. हर प्रस्तुति में परंपराओं की महक थी, जिसमें समाज के समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास की झलक दिखी. इस अवसर पर पश्चिम ओडिशा से आये कृष्णा मुखी और उनकी टीम ने भी रंगारंग कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी. संबलपुरी गीतों और नृत्यों की उनके अद्भुत प्रस्तुतियों ने दर्शकों का खूब मनोरंजन किया और सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया. इस सांस्कृतिक कार्यक्रम के माध्यम से समाज के लोगों को आपस में जोड़ने का प्रयास किया गया. समाज के बुजुर्गों से लेकर युवाओं तक, सभी ने इस कार्यक्रम का आनंद लिया और अपने सांस्कृतिक विरासत पर गर्व महसूस किया. कार्यक्रम को सफल बनाने में गुरूचरण मुखी, टिंकू मुखी, राजन मुखी, सिकंदर मुखी, शिबू मुखी आकाश मुखी, राजा मुखी, राजन मुखी, डेविड मुखी, अरूण मुखी, श्रवण मुखी, सुमित मुखी, रिकू मुखी, गुरु प्रसाद मुखी समेत अन्य ने योगदान दिया.

नुआंखाई: पौराणिक कथा और परंपरा

नुआंखाई त्योहार ओडिशा, छत्तीसगढ़ और झारखंड के आदिवासी बहुल क्षेत्रों में धूमधाम से मनाया जाता है. यह मुख्य रूप से ओडिशा के पश्चिमी हिस्से में रहने वाले संभलपुरिया लोगों का प्रमुख कृषि पर्व है, जिसे विशेष रूप से खेती और नई फसल की पूजा के रूप में मनाया जाता है. जमशेदपुर में भी नुआंखाई को मनाने की परंपरा ने सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बना दिया है. आइए इस त्योहार की पौराणिक कथा और परंपरा पर चर्चा करें.

नुआंखाई की पौराणिक कथा

नुआंखाई की उत्पत्ति का संबंध कृषि से है. यह त्योहार मुख्य रूप से प्रकृति, विशेषकर अन्न देवता की पूजा से जुड़ा हुआ है. पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय में कृषि का काम बहुत कठिन था और फसलें समय पर नहीं उगती थीं. तब भगवान विष्णु ने धरती पर आकर लोगों को कृषि के तरीकों और नई फसल उगाने की विधियों से परिचित कराया. उन्हें समझाया गया कि फसल कटने के बाद सबसे पहले उसे देवताओं को अर्पित करें, ताकि उनका आशीर्वाद प्राप्त हो और फसल हमेशा भरपूर हो. ओडिशा के इस त्योहार में खासकर देवी संबलेश्वरी की पूजा का प्रचलन है, जिन्हें इस क्षेत्र की प्रमुख देवी माना जाता है. मान्यता है कि देवी संबलेश्वरी लोगों की फसल की रक्षा करती हैं और उनकी भक्ति से अन्न देवता प्रसन्न होते हैं. इसलिए नई फसल का सबसे पहला अंश देवी को अर्पित किया जाता है, जिसे नुआ (नई) और खाई (खाना) का प्रतीक माना जाता है.

नुआंखाई की परंपरा

नुआंखाई का अर्थ है ‘नई फसल का स्वागत’. यह त्योहार खासतौर पर किसानों के लिए महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह नई फसल को काटने और उसका आनंद लेने का समय होता है. नुआंखाई के दिन किसान अपनी नई फसल को घर लाते हैं और उसे पहले अपने कुल देवी-देवताओं को अर्पित करते हैं. इस त्योहार का सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान ‘नुआ’ को देवी संबलेश्वरी को चढ़ाना होता है. इस पूजा के बाद, परिवार के सभी सदस्य एक साथ बैठते हैं और नुआंखाई जुहार का आयोजन करते हैं. जिसमें एक-दूसरे को नुआंखाई की बधाई दी जाती है और सामूहिक भोज का आनंद लिया जाता है. इस मौके पर विशेष पारंपरिक व्यंजन तैयार किये जाते हैं.

सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व

नुआंखाई केवल एक कृषि पर्व नहीं है, बल्कि यह समाज में एकता, सहयोग और भाईचारे का संदेश देता है. इस दिन लोग सभी प्रकार के व्यक्तिगत मतभेदों को भूलकर एक दूसरे के साथ खुशी और प्रेम बांटते हैं. खासतौर पर पश्चिमी ओडिशा में यह पर्व परिवारों को एक साथ लाता है और समाज में सामुदायिक भावना को मजबूत करता है. इसके अतिरिक्त, नुआंखाई का उत्सव कला, संगीत और लोक नृत्य से भी जुड़ा हुआ है. सांस्कृतिक कार्यक्रमों में ‘रासार’ और ‘धुंपा’ नृत्य जैसे पारंपरिक नृत्य किये जाते हैं. जिनमें स्थानीय वाद्य यंत्रों का उपयोग किया जाता है. इस दौरान ग्रामीण कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं और समाज के सभी वर्गों के लोग इसमें भाग लेते हैं.

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