जमशेदपुर: संताल स्टूडेंट्स यूनियन ने बुधवार को टीजीटी में संताली विषय के शिक्षक पद सृजित कर अविलंब शिक्षकों की बहाली करने की मांग को लेकर उपायुक्त कार्यालय के सामने एक दिवसीय धरना प्रदर्शन किया. धरना प्रदर्शन के बाद मुख्यमंत्री व शिक्षा मंत्री के नाम छह सूत्री एक मांग पत्र उपायुक्त को सौंपा गया. सौंपे गये मांग पत्र में कहा गया है कि झारखंड पारा टीचर वैकेंसी नीति को संशोधन करते हुए नई शिक्षा नीति-2020 के आधार पर शिक्षक की नियुक्तित होनी चाहिए. अनुच्छेद 350ए व 350बी के तहत प्राथमिक स्तर पर संताली मातृभाषा में शिक्षा की सुविधा अविलंब प्रदान किया जाये. आगे कहा गया है कि टीजीटी में संताली विषय को अविलंब सम्मिलित करते हुए पद को सृजित कर संताली भाषा शिक्षकों की बहाली की जाये.छात्रों के इस आंदोलन को जिले के पंचायत प्रतिनिधियों ने भी समर्थन किया है. पंचायत प्रतिनिधियों का का भी कहना था कि राज्य सरकार के कथनी और करनी में जमीन-आसमान का फर्क है. सरकार को शिक्षक नियुक्ति मामले को गंभीरता से लेने की जरूरत है. धरना प्रदर्शन स्थल पर जमशेदपुर प्रखंड प्रमुख पानी सोरेन, उपप्रमुख शिव हांसदा, मुखिया नागी मुर्मू, मनोज यादव, रैना पूर्ति, चंद्राय टुडू, महेंद्र मुर्मू पहुंचकर छात्रों को अपना समर्थन दिया.
नौकरी व रोजी-रोजगार के नाम पर केवल झुनझुना थमा दिया:सरस्वती टुडू
धरना प्रदर्शन के दौरान सरस्वती टुडू ने कहा राज्य सरकार झारखंड के युवाओं को नौकरी व रोजी-रोजगार में प्राथमिकता देने की बात करती है. लेकिन धरातल पर उनकी कथनी और करनी में बहुत अंतर है. राज्य में युवा बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं. सरकार केवल अपनी वोट बैंक के लिए आश्वासन पर आश्वासन दे रही है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने नौकरी व रोजी-रोजगार के नाम पर केवल झुनझुना थमा दिया है. कोल्हान विश्वविद्यालय के किसी भी कॉलेज में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा के एक भी प्रोफेसर नहीं हैं. इससे प्रतीत होता है कि आबुआ दिशुम रे आबुआ राज केवल एक नारा बनकर रह गया है. संताल समेत अन्य जनजातीय समुदाय के छात्र अपनी विभिन्न मांगों को लेकर सड़क पर उतरने के लिए बाध्य हो गये हैं.
आबुआ दिशुम रे आबुआ राज: एक खोखला नारा?
सुकुमार सोरेन ने कहा कि कोल्हान विश्वविद्यालय के कॉलेजों में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा के एक भी प्रोफेसर का न होना एक गंभीर चिंता का विषय है. “आबुआ दिशुम रे आबुआ राज” का नारा केवल आदिवासी संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण का प्रतीक नहीं, बल्कि उनके आत्मसम्मान और अधिकारों का भी प्रतिनिधित्व करता है. परंतु, जब विश्वविद्यालय जैसे महत्वपूर्ण संस्थान में जनजातीय भाषाओं की अनदेखी होती है, तो यह नारा मात्र एक खोखला वादा बनकर रह जाता है. संताल और अन्य जनजातीय समुदायों के छात्रों के सड़क पर उतरने की मजबूरी इस मुद्दे की गंभीरता को दर्शाती है. वे अपनी शिक्षा के अधिकार, भाषा और संस्कृति की पहचान के संरक्षण के लिए संघर्ष कर रहे हैं. शिक्षा संस्थानों में जनजातीय भाषाओं के प्रोफेसरों की नियुक्ति न होना, न केवल शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करता है, बल्कि जनजातीय समाज के प्रति एक गहरा असमानता का संदेश भी देता है. उन्होंने कहा कि जनजातीय भाषाएं उनके समाज की पहचान हैं और इन्हें संरक्षित और प्रोत्साहित करना सरकार और शिक्षा संस्थानों की जिम्मेदारी है. यदि जनजातीय समुदायों को उनका उचित सम्मान और अधिकार नहीं मिलता, तो “आबुआ दिशुम रे आबुआ राज” का नारा वास्तव में अर्थहीन हो जाएगा. इसलिए, कोल्हान विश्वविद्यालय को इस दिशा में त्वरित और ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि जनजातीय समुदायों को उनका सही स्थान मिल सके और वे गर्व से अपने अधिकारों और पहचान की रक्षा कर सकें.
विभिन्न प्रखंडों से पहुंचे थे संताल छात्र
धरना प्रदर्शन में 200 से अधिक संख्या में संताल छात्र शामिल हुए. जिसमें सरस्वती टुडू, सुकुमार सोरेन, सोनोत राम कृष्णा हेंब्रम, सनातन मार्डी, सलमा हांसदा, जितेंद्र नाथ हांसदा, धरमा मुर्मू, शेखर टुडू, भीम सोरेन, सावना मुर्मू, चंद्राय मार्डी, कुनूराम हांसदा, मंजूला हांसदा, मालती बेसरा, हीरा टुडू, विनिता माझी समेत अन्य मौजूद थे.
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संताल स्टूडेंट्स यूनियन ने शिक्षक बहाली की मांग को लेकर उपायुक्त कार्यालय के समक्ष किया धरना प्रदर्शन
संताल स्टूडेंट्स यूनियन ने बुधवार को टीजीटी में संताली विषय के शिक्षक पद सृजित कर अविलंब शिक्षकों की बहाली करने की मांग को लेकर उपायुक्त कार्यालय के सामने एक दिवसीय धरना प्रदर्शन किया. धरना प्रदर्शन के बाद मुख्यमंत्री व शिक्षा मंत्री के नाम छह सूत्री एक मांग पत्र उपायुक्त को सौंपा गया.
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