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सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जनजातीय पुराने गानों की धूम, नयी पीढ़ियों में भी सिर चढ़कर बोल रहा खुमारी

पुराने जनजातीय गानों का लोकप्रियता में फिर से बढ़ते हुए क्रेज का विशेष महत्व है. यह गाने हमें हमारी संस्कृति और विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा दिखाते हैं. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इन गानों के वायरल हो जाने से लोग उन्हें अपने संजीवनी मानते हैं और इन्हें आगे बढ़ाते हैं.

जमशेदपुर: पुराने जनजातीय गानों का लोकप्रियता में फिर से बढ़ते हुए क्रेज का विशेष महत्व है. यह गाने हमें हमारी संस्कृति और विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा दिखाते हैं. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इन गानों के वायरल हो जाने से लोग उन्हें अपने संजीवनी मानते हैं और इन्हें आगे बढ़ाते हैं. इन गानों का प्रसार उनकी महत्वपूर्णता को उजागर करता है और हमें उनकी सांस्कृतिक गहराई को समझने का अवसर देता है. हाल के दिनों में हो समाज की म्यूजिक वीडियो “बुरू बितेर” सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर खूब धूम मचा रहा है. इतना ही नहीं व्यूवर्स खूब शेयर व कमेंट भी कर रहे हैं. महज डेढ़ में “बुरू बितेर” म्यूजिक वीडियो ने 1 मिलियन का आंकड़ा पार कर लिया है.
पुराने गाने में नया धून लोगों को खूब पसंद आ रहा
“बुरू बितेर” म्यूजिक वीडियो में हो जनजातीय समाज का प्रकृति का महापर्व व फूलों का त्योहार “बाह पर्व” का गाना है. इस गाने से पूर्वजों के जमाने से लोग गाते आ रहे हैं. बावजूद इसके लोग गाने को खूब पसंद कर रहे हैं. पसंद करना भी लाजिमी है आखिर पुराने गाने को नये अंदाज में प्रस्तुत किया गया है.इस गाने को अरूण मुंडरी व निर्मला किस्कू ने अपना स्वर दिया है. इसके धुनों को बंटी स्टूडियो रांची ने तैयार किया है.
पारंपरिक रिवाजों को दिया गया है महत्व
इस म्यूजिक वीडियो में बाह: पर्व से संबंधित पारंपरिक रीति-रिवाज को प्राथमिकता दिया गया. जिसकी वजह से लोगों को गाने को सुनने व देखने के बाद अपनापन का एहसास होता है. घने जंगल से सखुआ के फूल को लाने, सरना स्थल में फूल की पूजा व सखुआ फूल को देवी-देवताओं के आशीष रूप महिलाओं के द्वारा जुड़े सजाना आदि का खूबसूरती से कैमरा में कैद किया गया है. गाने का निर्देशन, कैमरा एवं एडिटिंग चोटन सिंकू ने किया है. उन्होंने दर्शकों की पसंद व नापसंद को बखूबी पूरा ध्यान रखा है. इसके निर्माता डा. दिनेश बोयपाई एवं प्रेमा मुंडरी हैं. वहीं बुनुमदा: व कुइड़ा गांव की युवक-युवतियों ने अपनी नृत्य कला के दम पर गाने को जीवंत कर दिया.
कई भाषाएं विलुप्त होने के कगार पर,पूर्वजों की विरासत को बचाने की जरूरत
अरूण मुंडरी बताते हैं कि शोध के अनुसार भारत में बोली जाने वाली कुल 780 भाषाओं में से लगभग 400 भाषाएं विलुप्त होने के कगार पर हैं. पूर्वजों ने न जाने किन काल परिस्थितियों में कितने तप, त्याग, तपस्या व कितने लंबे संघर्ष के उपरांत बोली, भाषा व लिपि का निर्माण किया होगा. भाषा निर्माण के पूर्व उनकी जिंदगी कितनी कठिन रही होगी. इसलिए हमें पूर्वजों से विरासत में प्राप्त उपहार को संरक्षित
करने की आवश्यकता है. ताकि आने वाली पीढ़ी भी इनका आनंद ले सके. वे बताते हैं कि वर्तमान में भाषा के संरक्षण में मनोरंजन जगत के क्षेत्रीय फिल्म, एल्बम, संगीत एवं शिक्षा जगत में भाषा साहित्य बेहतरीन भूमिका अदा कर रहे हैं. इसलिए हमें जरूरत है अच्छे व संदेश वाहक क्षेत्रीय फिल्म एवं सदाबहार गाने एलबम बनाने की.जिसे हम सपरिवार देख व सुन सके. भाषा साहित्य के क्षेत्र में हमारी क्षेत्रीय कला-संस्कृति में अनेक ऐसी विशेष परंपरा, रिवाज, लोककथा व लोकगीत इतिहास विद्यमान हैं, जिसे लिपिबद्ध करने की आवश्यकता है.

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