Jamshedpur News : रामगढ़ के रजरप्पा में ‘जोहारजाहेर आयो धोरोमगाढ़’ की ओर से गुरुवार को वार्षिक पूजनोत्सव का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में रामगढ़ सहित विभिन्न जिलों से हजारों की संख्या में महिलाएं और पुरुष शामिल हुए. सामाजिक पूजा-अर्चना के साथ, रजरप्पा तुपुनाई घाट पर परगना और पारानिक के सदस्यों को पगड़ी ताजपोशी की गई. पूर्व घाट परगना स्व. दुर्गा सोरेन के ज्येष्ठ पुत्र जोगेश्वर सोरेन को परगना बाबा के रूप में सम्मानित किया गया. इसके साथ ही, घाट पारानिक के रूप में वीरेंद्र कुमार मुर्मू और होयोसुसारियाफानूहेंब्रम का चयन किया गया और उन्हें समाज के बीच में सामाजिक पगड़ीपोशी की गयी. इस वार्षिक पूजनोत्सव ने न केवल आदिवासी संस्कृति को जीवित रखा, बल्कि समाज में एकजुटता और जागरूकता बढ़ाने की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदम उठाए.
तुपुनाई घाट का संचालन के लिए संरक्षक मंडली का किया गठन
तुपुनाई घाट, जो संताल समाज का अस्थि विसर्जन स्थल है, के सफल संचालन के लिए घागरी ग्राम के माझी बाबा कमल सोरेन, पारानिक महाबीर मुर्मू, और महेश मुर्मू को संरक्षक बनाया गया. इसके अलावा, 21 अन्य व्यक्तियों को सक्रिय सदस्य के रूप में शामिल किया गया. इस पहल से घाट के संचालन को मजबूत किया जाएगा, जिससे समाज की परंपराओं और रीति-रिवाजों का संरक्षण हो सकेगा.
समाज के लोगों को एकजुट होने की जरूरत: दुर्गाचरण मुर्मू
कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि धाड़ दिशोम देश पारानिक दुर्गाचरण मुर्मू मौजूद थे. उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि वर्तमान समय में समाज की वजूद को बचाये रखना किसी चुनौती से कम नहीं है. वर्तमान समय में समाज के अगुवाओं को स्वशासन व्यवस्था को चलाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. बावजूद इसके समाज के अगुवा पूर्वजों की धरोहर को बचाने में लगे हुए हैं. उन्होंने कहा कि आदिवासी संताल समाज किसी के बहकावे में नहीं आये. पूर्वजों ने काफी सोच-विचार व मंथन करने के बाद सामाजिक व्यवस्था को तैयार किया है. समाज के हर व्यक्ति को अपने सामाजिक व्यवस्था पर विश्वास करना चाहिए. ऐसे समय में समाज के तमाम बुद्धिजीवी, शिक्षाविद, माझी बाबा, परगना बाबा, देश परगना बाबा, पारानिक बाबा समेत सभी स्वशासन व्यवस्था के प्रमुख को एकजुट होने की जरूरत है. समाज एकजुट होगा तो सामाजिक व्यवस्था पर किसी तरह का आंच कभी नहीं आयेगा. कार्यक्रम में आसेका के महासचिव शंकर सोरेन समेत अन्य प्रमुख व्यक्तियों ने भाग लिया. समाज के विभिन्न क्षेत्रों से आए नेताओं और कार्यकर्ताओं ने आदिवासी संस्कृति और विरासत के महत्व पर जोर दिया. उनका उद्देश्य आदिवासी समुदाय के विकास में योगदान देना और सामाजिक एकता को बढ़ावा देना था.
युवा पीढ़ी को जोड़ने का संकल्प
वक्ताओं ने आदिवासी समाज की वर्तमान सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, शैक्षणिक, और राजनीतिक स्थिति पर विचार किया. उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी को सामाजिक गतिविधियों में शामिल करना आवश्यक है, क्योंकि आधुनिकता की चकाचौंध में युवा समाज और संस्कृति से कट गए हैं. शिक्षा के महत्व को समझते हुए, मातृभाषा संताली की ओलचिकी लिपि के प्रचार-प्रसार के लिए गांव-गांव में शैक्षणिक संस्थान खोलने का संकल्प लिया गया। यह पहल समाज को समृद्ध और विकसित बनाने में मदद करेगी.