शिक्षक की नियुक्ति आदिवासी भाषाओं को प्राथमिकता नहीं देना उनके साथ छल करने जैसा है
आदिवासी भाषाओं को उचित महत्व और सम्मान देना आवश्यक है ताकि उनकी संस्कृति और पहचान को संरक्षित किया जा सके.
जमशेदपुर: पटमदा के बामनी में पूर्वी सिंहभूम जिला सेंगेल परगना चुनाराम माझी एवं पटमदा प्रखंड सेंगेल अध्यक्ष-उदय मुर्मू की देखरेख में एक बैठक हुई. बैठक में बतौर अतिथि दिशोम परगना सोनाराम सोरेन एवं केंद्रीय सेंगेल संयोजक विमो मुर्मू उपस्थित थे. सोनाराम सोरेन ने कहा कि झारखंड सरकार द्वारा केवल एक वर्ष के लिए पूर्वी सिंहभूम जिला के सरकारी स्कूलों में जनजाति एवं क्षेत्रीय भाषा के 105 शिक्षक नियुक्ति में संताली को मात्र 11, मुंडारी को 1 एवं भूमिज को 6 जबकि बांग्ला को 81 शिक्षकों की नियुक्ति का घोषणा करना आदिवासियों के साथ घोर अन्याय व धोखा है. उन्होंने कहा कि घाटशिला पावड़ा में मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन ने 23 जून को माझी परगना महाल के 14वें महासम्मेलन में अपने वक्तव्य में कहा था कि सरना धर्म कोड का मामला केंद्र की भाजपा सरकार के पास है. यह बिलकुल गलत एवं झूठ है. पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सरकार के कार्यकाल में 11 नवंबर 2020 को सरना आदिवासी धर्म कोड बिल को विधानसभा में पारित करने के बाद राज्य के बिना हस्ताक्षर किये ही केंद्र सरकार को अग्रसारित कर दिया गया था. झामुमो सरना धर्म कोड मामले को खुद लटकाने, भटकाने व दिग्भ्रमित करने का काम कर रहा है. बैठक में धरमू किस्कू, देबू टुडू, मार्शल किस्कू, राजेश मार्डी, रवि टुडू, सोहन कुमार टुडू, सेर्मा टुडू, मुनीराम हेंब्रम, चुनाराम माझी, उदय टुडू समेत अन्य उपस्थित थे.
स्वशासन व्यवस्था के प्रमुख संविधान व जनतंत्र को नहीं मानते: विमो मुर्मू
केंद्रीय सेंगेल संयोजक विमो मुर्मू ने आदिवासी स्वशासन व्यवस्था में निहित बुराई को खत्म करने की जरूरत है. स्वशासन व्यवस्था के प्रमुख माझी बाबा, परगना बाबा व पारानिक बाबा को संविधान व जनतंत्र का सम्मान करना चाहिए. कई बार यह देखने को मिलता है कि स्वशासन व्यवस्था के प्रमुख संविधान व जनतंत्र को नहीं मानते हैं. समाज में जबरन सामाजिक बहिष्कार करना, डायन प्रताड़ना, नशा पान, अंधविश्वास व महिला विरोधी मानसिकता जैसे जटिल मामलों को स्वशासन व्यवस्था के प्रमुख खत्म करने के बजाये, बढ़ावा देने काम कर रहे हैं.
आदिवासी भाषाओं को हाशिये पर रखना समझ से परे
पूर्वी सिंहभूम जिला के सरकारी स्कूलों में जनजाति एवं क्षेत्रीय भाषा के 105 शिक्षकों की नियुक्ति में संताली, मुंडारी और भूमिज भाषाओं को उपेक्षित करना आदिवासियों के साथ घोर अन्याय और धोखा है. संताली भाषा के लिए मात्र 11, मुंडारी के लिए 1 और भूमिज के लिए 6 शिक्षकों की नियुक्ति देने की घोषणा की गई है, जबकि बांग्ला भाषा के लिए 81 शिक्षकों की नियुक्ति देने की घोषणा की गई है. सोनाराम सोरेन ने इस फैसले की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि पूर्वी सिंहभूम जिला आदिवासी बहुल क्षेत्र है.यहां आदिवासी समुदाय की बड़ी संख्या निवास करती है. इसके बावजूद उनकी भाषाओं को प्राथमिकता न देकर उन्हें हाशिये पर धकेलना समझ से परे है.यह निर्णय न केवल आदिवासियों के अधिकारों का उल्लंघन करता है, बल्कि उनके सांस्कृतिक और भाषाई पहचान पर भी आघात करता है. आदिवासी भाषाओं के शिक्षकों की कमी से उनके बच्चों की शिक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. सरकार को इस मामले में संज्ञान लेकर आदिवासी भाषाओं के शिक्षकों की नियुक्ति में संतुलन बनाना चाहिए और आदिवासी समुदाय के प्रति अपने दायित्व को निभाना चाहिए. आदिवासी भाषाओं को उचित महत्व और सम्मान देना आवश्यक है ताकि उनकी संस्कृति और पहचान को संरक्षित किया जा सके.