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करनडीह दिशोम जाहेर में संताली फिल्म बिंदी गनाह की हुई स्क्रीनिंग

जनजातीय सिनेमा स्थानीय भाषा, गीत-संगीत, और नृत्य को संरक्षित और प्रोत्साहित करता है. यह सांस्कृतिक धरोहर को अगली पीढ़ी तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

जमशेदपुर: करनडीह स्थित दिशोम जाहेर में बुधवार को रास्का की ओर पब्लिक स्क्रीनिंग का आयोजन किया गया. बुधवार को स्क्रीनिंग के पहले दिन सीएन स्टूडियो फिल्म्स के बैनर तले बनी फिल्म बिंदी गनाह प्रदर्शित किया गया. इस फिल्म की कहानी एक युवती के इर्द-गिर्द घूमती है. फिल्म के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया गया है कि कैसे कुछ लोग आदिवासी युवतियों को अपने प्रेमजाल में फंसाकर यौन शोषण करते हैं और देह व्यापार के धंधे में डाल देते हैं. फिर किस तरह वह युवती खुद इस दलदल से निकलती है. निर्माता-निर्देशक ने कहानी को बहुत ही रोचक अंदाज में फिल्माया है. पब्लिक स्क्रीनिंग में काफी संख्या में आदिवासी-मूलवासी समाज के लोग फिल्म को देखने के लिए पहुंचे थे. 7 जून को फिल्म निरमाया व गलवान वीर को प्रदर्शित किया जायेगा. शाम को पांच बजे से इसको प्रदर्शित किया जायेगा.

सिने अवाॅर्ड समारोह 8 जून को
सिदगोड़ा स्थित बिरसा मुंडा टाउन हॉल में सिने अवाॅर्ड समारोह का आयोजन रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम के बीच 8 जून को होगा. मौके पर बतौर मुख्य अतिथि टाटा स्टील फाउंडेशन के सीइओ सौरव राय एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में ट्राइबल आइडेंटिटी के हेड जीरेन जेवियर टोपनो एवं सम्मानित अतिथि के रूप में जमशेदपुर पूर्वी के विधायक सरयू राय शिरकत करेंगे.
संताली व जनजातीय सिनेमा पर एक नजर

विविधता और अनूठापन: जनजातीय सिनेमा में स्थानीय संस्कृति, रीति-रिवाज और परंपराओं का अनूठा चित्रण होता है. यह विविधता दर्शकों को नई कहानियों और अनुभवों से परिचित कराती है, जो मुख्यधारा के सिनेमा में शायद ही दिखती हैं.

प्राकृतिक सौंदर्य: जनजातीय क्षेत्रों के प्राकृतिक सौंदर्य को दिखाने के लिए यह सिनेमा एक महत्वपूर्ण माध्यम बन सकता है. पहाड़, जंगल, और नदियों की सुंदरता फिल्मों में दृश्यात्मक अपील जोड़ती है, जो दर्शकों को आकर्षित करती है.

सरकारी समर्थन: सरकारें जनजातीय संस्कृति और कला को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न योजनाएं और अनुदान प्रदान कर रही हैं. इस प्रकार की पहल से जनजातीय फिल्म निर्माताओं को वित्तीय सहायता और संसाधनों की उपलब्धता होती है, जिससे उनकी सृजनात्मकता को बढ़ावा मिलता है.

प्रशिक्षण और शिक्षा: फिल्म निर्माण के क्षेत्र में प्रशिक्षित व्यक्तियों की संख्या बढ़ रही है. फिल्म स्कूल और वर्कशॉप्स के माध्यम से जनजातीय युवाओं को फिल्म निर्माण के तकनीकी और सृजनात्मक पहलुओं में प्रशिक्षित किया जा रहा है.

डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म: इंटरनेट और ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से जनजातीय सिनेमा को वैश्विक दर्शकों तक पहुंचने का अवसर मिला है. डिजिटल वितरण से छोटे बजट की फिल्में भी व्यापक दर्शक वर्ग तक पहुंच सकती हैं.

सांस्कृतिक संरक्षण: जनजातीय सिनेमा स्थानीय भाषा, गीत-संगीत, और नृत्य को संरक्षित और प्रोत्साहित करता है. यह सांस्कृतिक धरोहर को अगली पीढ़ी तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

वाणिज्यिक संभावनाएं: जनजातीय सिनेमा की अनूठी कहानियाँ और दृष्टिकोण न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सवों में भी सराही जा रही हैं, जिससे वाणिज्यिक संभावनाओं में वृद्धि हो रही है.






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