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Jamshedpur News : लुगूबुरू घंटाबाड़ी में सरना धर्म महासम्मेलन 14 व 15 नवंबर को

Jamshedpur News : लुगूबुरू घंटबाड़ी धोरोम गाढ़ का अंतर्राष्ट्रीय सरना धर्म महासम्मेलन संताल समाज की धार्मिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है. यह आयोजन संताल समाज को न केवल धार्मिक रूप से एकजुट करता है, बल्कि उनकी सांस्कृतिक पहचान को भी सशक्त करता है.

JamshedpurNews : लुगूबुरूघंटाबाड़ीधोरोमगाढ़ में 14 व 15 नवंबर को अंतर्राष्ट्रीय सरना धर्म महासम्मेलन का आयोजन होगा. इस महासम्मेलन में भारत के विभिन्न राज्य के संताल आदिवासियों का महाजुटानहोगा. इसमें विदेशों से भी लोग आते हैं. आयोजन समिति ने ललपनियालुगूबुरूघंटाबाड़ीधाेरोमगाढ़ स्थित मेडिटेशन हॉल में अंतर्राष्ट्रीय सरना धर्म महासम्मेलन पर चर्चा व सफल बनाने के लिए 2 अक्टूबर समाज के बुद्धिजीवी, शिक्षाविद व कार्यकारिणी समिति की एक बैठक बुलायी है. यह जानकारी लुगूबुरूघंटबाड़ीधोरोमगाढ़ समिति के सचिव लोबिन मुर्मू ने दी. उन्होंने बताया कि इस बैठक में सभी धर्मप्रांत के स्वशासन व्यवस्था के प्रमुख परगना बाबा, पारानिक बाबा, गोडेत बाबा, माझी बाबा समेत अन्य को बुलाया गया है.अंतर्राष्ट्रीय सरना धर्म महासम्मेलन की तैयारी बैठक में पूर्वी सिंहभूम के जमशेदपुर, राजनगर, सरायकेला, चांडिल, पटमदा, पोटका समेत अन्य जगहों से स्वशासन व्यवस्था के प्रमुख शामिल होंगे.

संताल समाज का धार्मिक व सांस्कृतिक स्थल

लुगूबुरूघंटबाड़ीधोरोमगाढ़ एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल है, जो संताल समाज के लिए अत्यधिक पूजनीय है. यहां हर साल कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर एक विशेष धार्मिक आयोजन होता है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय सरना धर्म महासम्मेलन के रूप में जाना जाता है. यह कार्यक्रम इस वर्ष 14 और 15 नवंबर को ललपनिया, बोकारो जिले में आयोजित होना है. इस महासम्मेलन में भारत के विभिन्न राज्यों और विदेशों से भी संताल आदिवासी समुदाय के लोग बड़ी संख्या में हिस्सा लेते हैं.

लुगूबुरू घंटबाड़ी का धार्मिक महत्व

उदगम स्थल: लुगूबुरू को संताल समाज का उदगम स्थल माना जाता है। यह स्थल संताल समाज की धार्मिक मान्यताओं और उनकी सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है. यहां संताल आदिवासी समुदाय अपने पूर्वजों की पूजा-अर्चना करते हैं. विशेष रूप से लुगू बाबा की पूजा की जाती है.

पवित्र स्थल: लुगूबुरूघंटबाड़ी को संताल समाज का पवित्र धार्मिक स्थल माना जाता है. यहां हर साल कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर हजारों लोग अपनी धार्मिक आस्थाओं को पूरा करने के लिए जुटते हैं. यह आयोजन विशेष रूप से संताल आदिवासियों के बीच धार्मिक एकता और सामूहिकता का प्रतीक है.

संपूर्ण भारत और विदेश से भागीदारी: इस महासम्मेलन में भारत के विभिन्न राज्यों के संताल आदिवासी लोग शामिल होते हैं. इसके अलावा, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान जैसे देशों से भी लोग इस आयोजन में हिस्सा लेने आते हैं. यह आयोजन न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह संताल समाज के लोगों को एक साझा मंच प्रदान करता है.

आयोजन की विशेषताएं

महाजुटान: हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन इस स्थल पर 4-5 लाख लोग जुटते हैं. इस महाजुटान में संताल आदिवासी अपने रीति-रिवाजों और धार्मिक परंपराओं का पालन करते हैं. पूजा-पाठ, गीत-संगीत और नृत्य के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं, जो संताल समाज की सांस्कृतिक पहचान को सशक्त बनाते हैं.

धार्मिक अनुष्ठान: महासम्मेलन के दौरान धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है. इसमें संताल धर्म के अनुयायी अपने देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करते हैं. इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य संताल समाज की धार्मिक एकता को बढ़ावा देना और उनके धार्मिक धरोहर को संरक्षित करना है.

अंतर्राष्ट्रीय पहचान: लुगूबुरूघंटबाड़ी का यह महासम्मेलन संताल समाज को वैश्विक पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. विदेशों से आने वाले लोग न केवल धार्मिक आयोजन में हिस्सा लेते हैं, बल्कि संताल समाज की सांस्कृतिक धरोहर से भी परिचित होते हैं. यह आयोजन संताल समाज के धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को व्यापक रूप से प्रसारित करने का एक माध्यम बनता है.

स्थल का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व

ऐतिहासिक स्थल: लुगूबुरूघंटबाड़ीसंताल विद्रोह और उनकी ऐतिहासिक संघर्षों से भी जुड़ा हुआ है. यह स्थल संताल समाज के लिए गर्व का प्रतीक है, जहां उनके पूर्वजों ने अपने अस्तित्व और धर्म की रक्षा के लिए संघर्ष किया था.

सांस्कृतिक धरोहर:लुगूबुरूघंटाबाड़ीसंताल समाज की सांस्कृतिक धरोहर का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. यहां संताल समाज की परंपराएं, लोकगीत, लोकनृत्य और उनकी पारंपरिक वेशभूषा का अद्भुत समागम देखने को मिलता है. यह आयोजन संताल समाज के सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित रखने का एक प्रमुख साधन है.

धार्मिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक

लुगूबुरूघंटबाड़ीधोरोमगाढ़ का अंतर्राष्ट्रीय सरना धर्म महासम्मेलन संताल समाज की धार्मिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है. यह आयोजन संताल समाज को न केवल धार्मिक रूप से एकजुट करता है, बल्कि उनकी सांस्कृतिक पहचान को भी सशक्त करता है.

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