Jamshedpur News : आदिवासी बहुल गांव में गोट बाेंगा के साथ सोहराय पर्व का आज से आगाज
Jamshedpur News : संताल समाज में पशुओं का महत्व भी काफी है और सोहराय पर्व के दौरान विशेषकर गाय, बैल जैसे पशुओं की पूजा की जाती है. यह पर्व पशुधन के प्रति सम्मान और उनकी रक्षा की भावना को बढ़ावा देता है, क्योंकि पशु कृषि और आजीविका के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं.
Jamshedpur News : शहर से सटे गांवों में गुरुवार को गोट पूजा के साथ सोहराय पर्व का आगाज हो रहा है. गुरुवार को डिमना, भागाबांध, कुमरूम बस्ती, गदड़ा, सरजामदा, कीताडीह, पलासबनी, डेमकाडीह समेत अन्य गांवों में गोट पूजा होगी. वहीं शुक्रवार को गोड़गोड़ा, बालीगुमा, नागाडीह, काचा, रानीडीह, मतलाडीह, जगन्नाथपुर, बेड़ाढीपा, करनडीह, मुईघुटू, हलुदबनी समेत अन्य गांवों हर्षोल्लास के साथ गोटबोंगा की परंपरा का पालन किया जायेगा. गांव के पारंपरिक पुजारी माझी बाबा की अगुवाई में पूजा होगी. वे समस्त ग्रामवासियों की सुख-समृद्धि व उन्नति के लिए मरांगबुरू, जाहेर आयो, लिटा-मोणें से प्रार्थना करेंगे. इस दौरान गांव के ग्रामीण भी इष्ट देवी-देवताओं के सामने नतमस्तक होकर अपने परिवार के कुशल-मंगल जीवन व उन्नति व समृद्धि के लिए प्रार्थना करेंगे. पूजा के बाद पूजा स्थल में समस्त ग्रामीण सामूहिक रूप से प्रसाद के रूप में सिम जीलसोड़े ग्रहण करेंगे.
मवेशियों का अंड़ा फोड़ दौड़ होगा आकर्षण
पूजा अर्चना के बाद माझी बाबा, नायके बाबा व जोग माझी बाबा की अगुवाई में गोटबोंगाटांडी में गांव के ग्रामीण मवेशियों को एकत्रित करेंगे. उसके बाद मवेशियों के लिए पारंपरिक तरीके से अंडा फोड़दौड़ का आयोजन होगा. ग्रामीण एक मार्ग पर अंडे रखते हैं और मवेशियों को उस मार्ग से गुजरने देते हैं. जिस मवेशी के पैरों से अंडा फूटता है, उसे ग्रामवासी पकड़कर विशेष सम्मान देते हैं. यह सम्मान उनके प्रति आभार और कृतज्ञता व्यक्त करने का एक प्रतीकात्मक तरीका है. अंडा फोड़ने वाले मवेशी के माथे को धान की बाली से सजाया जाता है और उसके सिंगों पर तेल लगाया जाता है. तेल और धान का उपयोग सम्मान, शुभकामना और सुरक्षा का प्रतीक है. इस रस्म के माध्यम से ग्रामीण अपने मवेशियों के प्रति सम्मान और आदर व्यक्त करते हैं.
प्रकृति के प्रति कृतज्ञता करते हैं व्यक्त
सोहराय पर्व का मुख्य उद्देश्य प्रकृति, विशेषकर फसलों और पशुओं के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना है. फसल कटाई के बाद संताल समाज के लोग अपनी उपज की समृद्धि के लिए भगवान और प्रकृति को धन्यवाद देते हैं. यह त्योहार उन मूल्यों को मान्यता देता है, जो आदिवासी समुदायों में प्रकृति के संरक्षण और उसके प्रति आदर को संजोने में महत्वपूर्ण हैं.
पशुधन के प्रति सम्मान की भावना को है बढ़ाता
संताल समाज में पशुओं का महत्व भी काफी है और सोहराय पर्व के दौरान विशेषकर गाय, बैल जैसे पशुओं की पूजा की जाती है. यह पर्व पशुधन के प्रति सम्मान और उनकी रक्षा की भावना को बढ़ावा देता है, क्योंकि पशु कृषि और आजीविका के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं. पशुओं को सजाने, उनके सींगों को रंगने और उनके बीच दौड़ जैसी परंपरागत गतिविधियाँ भी इस पर्व का हिस्सा होती हैं.
सामाजिक एकता और सामूहिकता की भावना होती है मजबूत
सोहराय पर्व के दौरान संताल समुदाय के लोग सामूहिक नृत्य, गायन और पारंपरिक खेलों का आयोजन करते हैं, जिससे समाज में एकता और सामूहिकता की भावना मजबूत होती है. युवा, वृद्ध और बच्चे मिलकर इस पर्व को मनाते हैं, जो सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहरों को बनाए रखने का कार्य करता है. सामूहिक भोज और विशेष पकवानों के माध्यम से समुदाय के लोग एक-दूसरे के साथ समय बिताते हैं और रिश्तों को मजबूत करते हैं.