JamshedpurNews : करम पर्व के दौरान जावा उगाने की परंपरा प्रकृति और फसलों की समृद्धि के लिए आभार व्यक्त करने का एक तरीका है. पर्व के दौरान गाये जाने वाले पारंपरिक गीत और नृत्य जनजातीय संस्कृति और सामुदायिक एकता को मजबूत करते हैं. इसका मूल उद्देश्य बीजों की गुणवत्ता की जांच करने के साथ-साथ खेती के मौसम के लिए प्रकृति की पूजा करना है, ताकि अच्छी फसल और समृद्धि हो. यह पर्व सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व रखता है. जिसमें युवा लड़कियों की भागीदारी भी विशेष रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती है. करम पर्व से 5, 7 या 9 दिन पहले गांव के युवतियों के द्वारा नदी घाट या जलाशय के पास से जावा रखने के लिए बालू का उठाव करती हैं.
शनिवार को शहर के सटे बिरसानगर, हुरलुंग, गदड़ा, गोविंदपुर, कदमा, शास्त्रीनगर समेत अन्य बस्तियों में सातवां दिन वाला जावा के लिए बालू का उठाव किया. युवतियों ने नदी घाट से बालू का उठाव कई उसमें कई तरह की बीज को बोआई किया. युवतियां अब हर दिन जावारानी माता को घर-आंगन में निकालकर सेवा व जागरण करेंगी.
करम पर्व एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन शैली का है एक प्रतीक
करम पर्व आदिवासी-मूलवासी समाज के लोक आस्था का एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र त्योहार है. यह पर्व प्रकृति और कृषि से गहरे रूप से जुड़ा हुआ है, जिसमें विशेषकर पेड़-पौधों, विशेष रूप से करम वृक्ष की पूजा की जाती है. करम देव को खुशहाल जीवन, समृद्धि और खेती के कार्यों में सफलता का दाता माना जाता है. इस पर्व के दौरान आदिवासी समुदाय के लोग सामूहिक रूप से करम वृक्ष की पूजा करते हैं, करम गीत गाते हैं और पारंपरिक नृत्य करते हैं. यह पर्व न केवल कृषि के महत्व को रेखांकित करता है, बल्कि सामाजिक बंधनों को भी मजबूत करता है. क्योंकि पूरा समुदाय एक साथ मिलकर इस उत्सव को मनाता है. करम पर्व आदिवासी समाज के लिए केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि उनकी सांस्कृतिक पहचान, परंपराओं और जीवन शैली का एक प्रतीक है. जिसमें प्रकृति के प्रति आदर और सम्मान की भावना प्रमुख होती है.