Jamshedpur News : एमजीएम थाना क्षेत्र के आदिवासी समाज के लोगों ने सिमुलडांगा चौक में वन कल्याण केंद्र के अखिल भारतीय प्रचार एवं मीडिया संचार प्रमुख प्रमोद पेठकर का पुतला फूंका. साथ ही उनके विरोध में क्षेत्र के महिला व पुरूष ने जमकर नारेबाजी भी की. इस दौरान आदिवासी समाज के लोगों ने कहा कि वे प्रमोद पेठकर की उस बयान की निंदा करते हैं जिसमें उसने आदिवासी समाज को हिंदू बताया है. भारत देश में सरना धर्म को मानने वाले आदिवासियों की आबादी 25 करोड़ से अधिक है. आदिवासियों को साजिश के तहत उनका संवैधानिक पहचान के रूप में सरना धर्म नहीं दिया जा रहा है. लेकिन आदिवासी समाज को जबतक उनका उनका संवैधानिक अधिकार नहीं दिया जाता है, तबतक सरना धर्म के लिए आंदोलन जारी रहेगा. उन्होंने कि झारखंड की धरती कोल्हान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आये थे. उस वक्त उन्होंने सरना धर्म के सवाल पर एक भी शब्द नहीं कहा. इसको लेकर पहले से ही आदिवासियों में रोष व्याप्त है. इसी बीच प्रमोद पेठकर का सरना धर्म को लेकर अनर्गल बयान आने से समाज में आक्रोश का माहौल है. इस तरह की अनर्गल बयानबाजी पर अविलंब विराम चिह्न लगना चाहिए, अन्यथा आदिवासी समाज कड़ा कदम उठाने को बाध्य होगा. पुतला दहन में शिवानी मार्डी, दिवाकर सिंह, सुनीता टुडू, मैय्या सोरेन, राजेश कालुंडिया, धनंजय सिंह, दामू पूर्ति, सालगे टुडू, मोहिनी सोरेन समेत काफी संख्या में समाज के लोग मौजूद थे.
आदिवासियों के धार्मिक मामले में हस्तक्षेप नहीं हो
ग्रामवासियों ने कहा कि आदिवासी कल्याण आश्रम जैसे कई संगठन आदिवासी समाज को अपने इस तरह अनर्गल बयानबाजी से गुमराह करने का काम कर रहे हैं. लेकिन संगठनों के प्रमुखों को पता होना चाहिए कि अब आदिवासी समाज जाग चुका है. अपने आज और कल के बारे में सोच सकता है. किसी भी संगठन को धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. प्रमोद पेठकर के बेतुकी बयानबाजी से समाज को गहरा अधात पहुंचा है. आदिवासी समाज के लोगों ने कहा कि वे अपना धर्म सरना को मानते हैं. उनके पूर्वज आदिकाल से सरना धर्म को ही मानते आये हैं. यह अलग बात हैं कि प्रजातांत्रिक व्यवस्था में सरना धर्म को संवैधानिक पहचान नहीं दिया गया है. लेकिन देर सबेरे आज नहीं तो कल सरना धर्म को मान्यता दिया जायेगा. जब भारत की 25 करोड़ जनता आंदोलन के लिए उतर जायेंगे.
आस्था प्रहार किसी भी कीमत पर बरदाश्त नहीं
आदिवासी समाज के लोगों ने पुतला दहन के दौरान कहा कि आदिवासी समाज की आदिकाल से बलि प्रथा है. आदिवासी समाज मांस-मछली का सेवन करते हैं. इनका रहन-सहन, खानपान, पर्व-त्योहार सबसे अलग है. बावजूद इसके कुछ लोग साजिश के तहत अनर्गल बयानबाजी कर आदिवासी को हिंदू बताते हैं. बेवजह आदिवासी को हिंदू कर आस्था के खिलवाड़ करने का प्रयास हो रहा है. इस तरह कोई भी कुछ भी कहेगा और आदिवासी चुप रहेंगे. अब चुप्पी रहने वाला कोई काम नहीं होगा, उसका मुंहतोड़ जवाब दिया जायेगा.
आदिवासी को शांति से आदिवासी ही रहने दें
प्रदर्शनकारियों ने कहा कि आदिवासी समाज प्रकृति पूजक हैं. प्रकृति के सानिध्य में रहकर सदियों से अपना जीवन शांति से गुजर कर रहे हैं. लेकिन कुछ लोगों को आदिवासियों के आदिवासी होने पर भी एतराज है. जिसकी वजह से वे एक बड़ी साजिश के तहत समाज के लोगों को गुमराह करने के लिए आदिवासी को हिंदू बताते हैं. लेकिन अनर्गल बयानबाजी करने वालों से आदिवासी समाज आग्रह करता है आदिवासी को शांतिपूर्वक आदिवासी ही रहने दें. आदिवासी समाज जहां हैं-जैसे हैं, लेकिन खुश हैं.