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पर्यावरण संरक्षण और महिला शक्तीकरण के लिए अंतिम सांस तक काम करती रहूंगी : चामी मुर्मू

जब तक शरीर में जान है और सांस चलेगी, तब तक पर्यावरण के प्रति प्रेम कम नहीं होगा. पर्यावरण संरक्षण, पौधरोपण, महिला सशक्तीकरण, तालाब व जलस्रोत का निर्माण का काम करती रहेंगी.

जमशेदपुर: सरायकेला-खरसावां जिले के राजनगर प्रखंड के बगराईसाई गांव निवासी पर्यावरणविद् व पद्मश्री चामी मुर्मू (52 वर्ष) ने कहा है कि उन्होंने अपना पूरा जीवन पर्यावरण संरक्षण और समाज सेवा को समर्पित कर दिया है. इसलिए जब तक शरीर में जान है और सांस चलेगी, तब तक पर्यावरण के प्रति प्रेम कम नहीं होगा. पर्यावरण संरक्षण, पौधरोपण, महिला सशक्तीकरण, तालाब व जलस्रोत का निर्माण का काम करती रहेंगी. उन्होंने सामाजिक दायित्व के तहत पर्यावरण संरक्षण और महिला सशक्तीकरण के लिए घर से बाहर कदम रखा था, न कि पुरस्कार पाने के उद्देश्य से. लेकिन भारत सरकार और झारखंड सरकार ने उनके काम को सराहा और सम्मानित किया. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के हाथों सम्मानित होकर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर खुद को काफी गौरान्वित महसूस की.
उन्होंने कहा कि वन पर्यावरण बचेगा, तभी धरती पर जीवन का वजूद रहेगा. इसलिए हरेक व्यक्ति को पौधरोपण और वन संरक्षण को दैनिक जीवन का हिस्सा बनाना चाहिए. वन पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए किसी एक व्यक्ति को जिम्मेदार ठहराया नहीं जा सकता है. इसके लिए पूरा मानव समाज ही दोषी है. इसके संरक्षण के लिए सभी को आगे आना होगा.

शुरुआती दौर में लोगों के काफी ताने सुनने पड़े, लेकिन हिम्मत नहीं हारी
चामी मुर्मू ने बताया कि वर्ष 1990 में उन्होंने ‘सहयोगी महिला’ नामक एनजीओ की स्थापना की. इसके माध्यम से उन्होंने 2300 से भी अधिक महिला स्वयं सहायता समूहों का गठन किया. इन समूहों के माध्यम से महिलाओं को बैंक से ऋण दिलाकर उन्हें स्वावलंबी बनने में मदद की. दलमा के सुदूरवर्ती क्षेत्रों में आदिम जनजाति की महिलाओं और बालिकाओं के उत्थान के लिए भी कई कार्य किये हैं. वह बताती हैं कि 1990 की दौर में जब वह महिलाओं से मिलने के लिए गांव-गांव जाती थीं, तो समाज के लोग उन्हें तरह-तरह के ताने सुनाते थे. दरअसल उस समय किसी महिला का घर से बाहर कदम रखने को गलत माना जाता था. लेकिन वह लोगों के तानों को अनसुना कर दिन-रात पर्यावरण और महिला सशक्तीकरण के लिए कार्य करती रहीं. आज वही लोग अपना कहने से थकते नहीं हैं.

मदर टेरेसा को मानती हैं रोल मॉडल
मदर टेरेसा को अपना रोल मॉडल मानने वाली चामी मुर्मू ने वर्ष 1990 में समाज सेवा की शुरुआत की. वह अविवाहित हैं और अपने जीवन को महिला सशक्तीकरण और पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित कर चुकी हैं. समाज में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए भारत सरकार ने मई 2024 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया. चामी मुर्मू ने बताया कि तकरीबन 34 सालों से वह पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में काम कर रही हैं. अब तक उनके नेतृत्व में 30 लाख से अधिक पौधे लगाये हैं और महिला सशक्तीकरण के क्षेत्र में कई उल्लेखनीय काम की हैं. उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में तालाब और जल स्रोत निर्माण में सहयोग कर लोगों को इसके लिए जागरूक किया है.
नारी शक्ति और इंदिरा प्रियदर्शनी वृक्षमित्र पुरस्कार से हो चुकी हैं सम्मानित
चामी मुर्मू का जन्म 1973 में हुआ था. वर्ष 1996 में उन्होंने पेड़ लगाना शुरू किया. उनके महिला संगठन में 3,000 सदस्य हैं. मार्च 2020 में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर नयी दिल्ली में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया. वर्ष 1996 में उन्हें इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

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