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किंकर महतो 42 सालों से कर रहे वन पर्यावरण का संरक्षण, उनके प्रयास से लहलहा रहे 10 लाख पौधे

पूर्वी सिंहभूम जिले के किंकर महतो की दृष्टि एक प्रेरणादायक उदाहरण है जो वनों के संरक्षण में सकारात्मक परिवर्तन ला रहे हैं. उनकी पूरी निष्ठा और संकल्प से डालापानी समेत आसपास के गांवों में वनों की रक्षा और विकास का महत्वपूर्ण कार्य किया जा रहा है.

जमशेदपुर:पूर्वी सिंहभूम जिले के किंकर महतो की दृष्टि एक प्रेरणादायक उदाहरण है जो वनों के संरक्षण में सकारात्मक परिवर्तन ला रहे हैं. उनकी पूरी निष्ठा और संकल्प से डालापानी समेत आसपास के गांवों में वनों की रक्षा और विकास का महत्वपूर्ण कार्य किया जा रहा है. किंकर महतो ने सरकारी और वन विभाग की जमीन पर पेड़ों को कटने से रोका है और पौधारोपण को अपना मिशन बनाया है. उनका प्रयास न केवल वनों के संरक्षण में मदद कर रहा है, बल्कि स्थानीय समुदाय को भी जोड़ रहा है.उनकी मेहनत और उत्साह ने पर्यावरण के प्रति जागरूकता को बढ़ाया है और लोगों को पौधारोपण के महत्व के प्रति जागरूक किया है.पिछले 42 वर्षों में किये गए प्रयासों से अब डालापानी पंचायत के क्षेत्र में 550 हेक्टर सरकारी और वन भूमि पर अधिकतम पौधारोपण हुआ है.आज पूर्वी सिंहभूम जिले के जमशेदपुर प्रखंड अंतर्गत के डालापानी पंचायत के सरकारी व वन भूमि पर 10 लाख से अधिक लहलहा रहे साल, महुआ, सागवान, पोटास, जामुन, नीम समेत अन्य पौधे मिसाल दे रहे हैं. किंकर महतो का यह मिशन आदर्श है जो हमें यह दिखाता है कि वन संरक्षण के लिए व्यक्तिगत इच्छाशक्ति और सामाजिक सहयोग कितना महत्वपूर्ण है.
वन अधिकार समिति नाम से चलाने हैं संगठन

पर्यावरण प्रेमी किंकर महतो वनों की सुरक्षा के लिए वन अधिकार समिति नाम से संगठन चलाते हैं. उन्होंने समिति से डालापानी समेत ठोड़कादोह, मेघादोह, झुझका, राजाबासा,बरूबेड़ा, आमदा पहाड़ी, कुदलूंग, झाटी पहाड़ी,सुकलाड़ा आदि गांव के लोगों को भी जोड़कर रखा है. इस समिति से जुड़े सभी सदस्य अपने-अपने क्षेत्र में वन जंगल की देखरेख करते हैं और लोगों को भी वन की महत्व के बारे में बताते हैं. गांव के सभी लोग जंगल को संरक्षण करने के पक्षधर हैं. इसलिए वे पेड़ों की कटाई नहीं करते हैं. वे केवल सूखी लकड़ियों को ही जलावन के लिए लाते हैं.

वन में लकड़ी काटते पकड़े गये थे किंकर महतो

1980 के आसपास वन में हल व बैलगाड़ी बनाने के लिए लकड़ी काटने गये थे. ग्रामीणों ने उन्हें लकड़ी काटते पकड़ लिया. उन्हें पता नहीं था कि वहां लकड़ी काटना प्रतिबंध था. ग्रामीणों ने उन्हें आर्थिक दंड दिया. जुर्माना के रूप में उनसे 25 रुपये देने को कहा गया. उनके पास इतने रुपये नहीं थे तो उन्होंने पंचायत में अपना कुल्हाड़ी जमा करवा दिया. दूसरे दिन घर से 25 रुपये लेकर पंचायत में जमा किये. तब उसे उसका कुल्हाड़ी वापस दिया गया. इस घटना ने उन्हें झकझोर कर रख दिया. फिर क्या था उसने उस घटना के बाद वन जंगल को रक्षा करने बीड़ा स्वयं उठाने का ठान लिया. तब से आज तक वन जंगल को नि:स्वार्थ भाव से सुरक्षा करने में लगे हैं.

समिति में महिला-पुरूष दोनों को जोड़ा

वन जंगल को बचाना कोई आसान काम नहीं है. अकेले 550 हेक्टेर जमीन की देखभाल करना संभव भी नहीं था. ऐसे में उसने डालापानी समेत आसपास के अन्य गांव में वन अधिकार समिति का गठन किया. उसके तहत वन पर्यावरण को बचाने की जिम्मेदारी महिला-पुरूष दोनों को दी गयी. हर दिन कोई न कोई महिला-पुरूष समूह बनाकर सूख जलावन लकड़ी को लाने के लिए वनों में जाते थे. वनों से सूख लकड़ियों को जलावन के लिए लाते थे. इसके साथ ही वे वनों को सुरक्षा भी करते थे. इस तरह एकसाथ दो काम हो जाता था.

अभी भी पेड़ काटने पर है प्रतिबंध

शुरुआती दौर में शहरी क्षेत्र से भी कई लोग जलावन के लिए लकड़ी काटने के लिए डालापानी व आसपास के जंगल में आते थे. लेकिन किंकर महतो व उनकी टीम के द्वारा उन्हें समझा-बुझाकर वापस भेज देते थे. कभी-कभी लकड़ी काटने वालों से विवाद तक हो जाता था. थाना पुलिस करने तक की नौबत आ जाती थी. वर्तमान समय में भी डालापानी समेत आसपास के जंगलों में पेड़-पौधों को नुकसान या काटना पूर्णत: प्रतिबंध है. इस जंगल का चौहद्दी ठोड़कादोह, मेघादोह, झुझका, राजाबासा,बरूबेड़ा, आमदा पहाड़ी, कुदलूंग, झाटी पहाड़ी,सुकलाड़ा गांव तक है.

महिला समूह वन पर्यावरण को बचाने में दे रहे योगदान

किंकर महतो बताते हैं शुरुआती दिनों में विक्रम सोरेन, चंद्र मोहन सोरेन, सनातन बास्के, गाजो सोरेन, नेपाल मार्डी, बंकिम महतो आदि ने उनका भरपूर सहयोग दिया. वे अब इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनका परिवार व कई नये साथी उनके साथ जुड़े हैं. नये साथी आगे बढ़कर वन पर्यावरण को बचाने में महत्ती रोल अदा कर रहे हैं. वर्तमान में महिला समूह काफी सक्रिय होकर वन जंगल को बचाने का काम कर रहे हैं.

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