Jamshedpur News : मुंडा समाज की युवतियों ने सुवर्णरेखा नदी घाट से बालू का उठा किया
Jamshedpur News : करम पर्व कृषि से भी जुड़ा है, जहां अच्छी फसल और संपन्नता के लिए करम राजा से प्रार्थना की जाती है. यह कृषि और मानव जीवन के बीच गहरे संबंध को प्रकट करता है.
Jamshedpur News : आदिवासी मुंडा समाज की युवतियों ने गुरूवार को मानगो सुवर्णरेखा नदी घाट से जावारानी माता के लिए बालू का उठाया किया. युवतियों ने उपवास रखकर बांस की डलिया में बालू भरकर ले गयीं. बालू से भरी टोकरी में युवतियों ने सात तरह का बीज धान, गेहूं, उड़द, कुरथी, मकई, सरसो, बिरही आदि मिलाकर बोया. भादो की एकादशी शुक्ल पक्ष यानी करम पूजा के दिन तक युवतियां हर दिन सुबह-शाम जावारानी माता का सेवा करेगी.साथ ही धुप-दीप दिखाकर जावारानी माता को जगायेंगी. इस दौरान युवतियां शुद्ध व सदा भोजन करेंगी. शाम को प्रतिदिन युवतियां जावारानी को जगाने के लिए गीत गायेंगी और नृत्य भी करेंगी. गुरुवार को नदी घाट से बालू का उठाव करने के दौरान आदिवासी मुंडा समाज के लोग पारंपरिक वाद्ययंत्रों के साथ पहुंचे थे. इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए केंद्रीय महासचिव संतोष सामंत, मानगो शाखा अध्यक्ष लखन सांडिल, शंकर शांडिल, रवि कच्छप, विशाल सोलंकी, रीना पातर, लखी मुंडा, प्रदीप जोरा, विनोद शंख आदि उपस्थित रहे थे.
करम देवता को निमंत्रण देंगे आज, कल घर आंगन व अखड़ा में करेंगे स्थापित
करम पूजा आदिवासी और मूलवासी समाज का एक महत्वपूर्ण त्योहार है. इसमें करम राजा की पूजा की जाती है. इस पूजा के लिए समाज के लोग सबसे पहले पास के जंगल में जाकर पूजा अर्चना करते हैं. जंगल में करम राजा व देवता को निमंत्रण देने की परंपरा होती है, जिसके तहत समाज के लोग करम पेड़ की एक डाली को चुनते हैं और उसे पारंपरिक रीति-रिवाज से सुतरी बांधकर चिह्नित करते हैं. यह चिह्नित करम डाली को ही करम राजा माना जाता है. करम पूजा के दिन गांव के युवा मांदर और नगाड़े की थाप पर पारंपरिक नृत्य करते हुए उसी चिह्नित करम डाली को लेने के लिए जंगल में जायेंगे. जब यह जत्था करम डाली को काटकर वापस आता है, तो पूरे गांव में उत्सव का माहौल होता है. करम डाली को गांव के अखड़ा में लाकर स्थापित किया जायेगा. इसके बाद करम देवता की विधिवत पूजा की जायेगी. इस आयोजन के माध्यम से समाज के लोग प्रकृति, विशेषकर पेड़ों और पर्यावरण के प्रति अपनी श्रद्धा और आभार व्यक्त करते हैं. यह पर्व सामूहिकता और प्रकृति के प्रति आदर की भावना को प्रदर्शित करता है.
करम पर्व : एक नजर में
प्रकृति के प्रति श्रद्धा: करम पर्व में करम पेड़ की पूजा की जाती है, जो प्रकृति के प्रति आदिवासी समाज की गहरी आस्था और सम्मान को दर्शाता है.
पर्यावरण संरक्षण: करम पर्व के दौरान पेड़ की पूजा कर मनुष्य पर्यावरण के संरक्षण का संदेश देता है. यह पर्व प्रकृति और मानव के बीच संतुलन बनाए रखने पर बल देता है.
सामूहिकता: करम पर्व सामूहिक उत्सव है, जहां गांव के लोग एक साथ मिलकर करम राजा की पूजा करते हैं. इससे समाज में एकता और सामूहिक सहयोग की भावना प्रबल होती है.
सामाजिक एकजुटता: इस पर्व के दौरान समाज के सभी वर्ग, खासकर युवा, एक साथ मिलकर नृत्य और गीतों के माध्यम से आपसी संबंधों को मजबूत करते हैं.
खेती और आजीविका: करम पर्व कृषि से भी जुड़ा है, जहां अच्छी फसल और संपन्नता के लिए करम राजा से प्रार्थना की जाती है. यह कृषि और मानव जीवन के बीच गहरे संबंध को प्रकट करता है.
संस्कृति और परंपरा: यह पर्व समाज की सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखने का माध्यम है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही परंपराओं को बनाए रखता है.