रांची/जमशेदपुर : क्या आपने रंग बदलनेवाला सांप देखा है? यदि नहीं देखा, तो अब आप इसे रांची जिले को ओरमांझी प्रखंड में स्थित चिरिया घर के स्नेक हाउस में देख पायेंगे. जी हां, झारखंड में विरले पाया जानेवाला इस प्रजाति का एक सांप मिला है. लेकिन, इस सांप के दीदार करने के लिए अभी आपको कुछ दिन और इंतजार करना पड़ सकता है.
दरअसल, ‘कॉपर हेडेड त्रिंकेट’ प्रजाति का यह सांप जमशेदपुर से पकड़ाया है. मंगलवार की रात करीब आठ बजे मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव ने पारडीह काली मंदिर के समीप स्थित एक घर से इस सांप को पकड़ा है. इस सांप को जमशेदपुर से रांची लाया जायेगा और स्नेक हाउस में रखा जायेगा.
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सर्प विशेषज्ञ बताते हैं कि यह सांप झारखंड में बहुत कम पाया जाता है. पूर्वोत्तर के राज्यों में इस प्रजाति के सांप बहुतायत में पाये जाते हैं. बोलुब्रिडाई परिवार के सांप की यह प्रजाति उत्तराखंड तक के हिमालयी क्षेत्र में मिलते हैं. झारखंड, बिहार, ओड़िशा, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और आंध्रप्रदेश में भी ये सांप पाये जाते हैं, लेकिन यहां बहुतायत में नहीं मिलते.
सदाबहार के जंगल इनके प्रिय स्थान हैं. पानी के आसपास रहना पसंद करते हैं. पूर्वोत्तर भारत के इलाके इन्हें बेहद प्रिय हैं. इस प्रजाति के सांप गुफाअों में, मिट्टी के मेड़ों पर और लकड़ी के गट्ठरों के बीच छिप कर रहते हैं.
लालिमा लिये भूरे शरीर पर चार काली धारियां इसकी विशिष्ट पहचान है. इसका सिर तांबे के रंग का होता है. यह सांप कभी भी अपना रंग बदल लेता है. जन्म के समय इसकी लंबाई 25-30 सेंटीमीटर होती है. इसकी औसत लंबाई 150 सेंटीमीटर और अधिकतम लंबाई 230 सेंटीमीटर तक होती है.
सर्प विशेषज्ञ बताते हैं कि कई देशों में इस सांप का इस्तेमाल खाने के लिए किया जाता है. वहीं, कई देशों में औषधि बनाने के लिए इनका शिकार किया जाता है. बड़ी संख्या में लोग इस सांप को पालते भी हैं. इस तरह वे अपने प्राकृतिक आवास से दूर हो जाते हैं.
विशेषज्ञों की मानें, सड़क दुर्घटनाअों में बड़ी संख्या में इन सर्पों की मृत्यु हो जाती है. जंगलों की कटाई से इनका रहवास खतरे में है. ऐसे में इस विशिष्ट प्रजाति के सांप के संरक्षण की जरूरत है. इसलिए इसे रांची के बिरसा जूलॉजिकल पार्क के स्नेक हाउस में रखा जायेगा, ताकि आम लोग भी इस सांप को देख सकें. इसे लाने के लिए वन विभाग की एक टीम रांची से जमशेदपुर जायेगी.