जज्बे को सलाम : कारगिल युद्ध में हाथ-पैर गंवाने वाले सैनिक ने कहा, अब मेरा बेटा चीन-पाकिस्तान से लड़ेगा

जमशेदपुर : कारगिल युद्ध के दौरान अपने दोनों हाथ और पैर गंवाने वाले मानिक वारधा ने कहा कि उनका बेटा जवान हाे गया है. वह कॉलेज में पढ़ रहा है. उन्हें भरोसा है वह अपने दम पर सेना में वरीय अधिकारी के रूप में याेगदान देगा और पाकिस्तान आैर चाइना के खिलाफ हाेनेवाली जंग में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 22, 2017 9:35 AM
जमशेदपुर : कारगिल युद्ध के दौरान अपने दोनों हाथ और पैर गंवाने वाले मानिक वारधा ने कहा कि उनका बेटा जवान हाे गया है. वह कॉलेज में पढ़ रहा है. उन्हें भरोसा है वह अपने दम पर सेना में वरीय अधिकारी के रूप में याेगदान देगा और पाकिस्तान आैर चाइना के खिलाफ हाेनेवाली जंग में शामिल हाेगा. विजय दिवस के पूर्व बातचीत के क्रम में मानिक वारधा ने कहा कि सरकार ने भले ही करगिल लड़ाई काे युद्ध का नाम नहीं दिया हाे, लेकिन वह युद्ध था.

भारतीय फाैज ने अपना पराक्रम दिखाते हुए पाकिस्तानी फाैज आैर उसके किराये के आतंकियों काे मार गिराया था. भारत को उसी युद्ध में पाकिस्तान द्वारा कब्जा किया हुआ भू-भाग कब्जा कर लिया जाना चाहिए था. अगर ऐसा हुआ होता तो कश्मीर में आये दिन हो रही खिच-खिच खत्म हाे जाती. मानिक वारधा ने कहा कि जून-जुलाई महीना आते ही 1999 का गुजरा समय याद आने लगता है. किस तरह सभी साथी आपस में मिलकर भारत माता की जय के नारे लगाते हुए करगिल की जंग में कूद पड़े थे.

हवलदार मानिक वारधा अपनी टुकड़ी के साथ कारगिल युद्ध के लिए निकल पड़े थे. उन्हें कई स्थानों पर रुकते हुए उरी सेक्टर पर तैनात किया गया. वहां लगातार फायरिंग हो रही थी. इस दौरान वे लोग अवलांच में करीब 18 घंटे दबे रह गये थे. जब पूरी टुकड़ी चौकी पर पहुंची तो वे चार साथी कम थे. खोज के दौरान जानकारी मिली की एक साथी की मौत हो गयी और बाकी घायल हो गये.

उन्हें इलाज के लिए पहले श्रीनगर फिर उधमपुर और पुणे के आर्टिफिसियल लिंब फिटिंग सेंटर में भेजा गया. गदरा कॉलेज के पास रहनेवाले मानिक वारधा ने बताया कि वे श्रीलंका भेजी गयी शांति सेना का भी हिस्सा रहे थे. मानिक वारधा ने बताया कि वे खुद काे व्यस्त रखते हैं. 4-5 साल से पुराने साथियाें के फाेन भी आने बंद हाे गये हैं.

3 मई काे पाकिस्तानी मूवमेंट की मिली थी जानकारी
3 मई 1999 : अपने याक को खोजने निकले बटालिक सेक्टर के गारखुन गांव के चरवाहे ताशी नामग्याल ने काले कपड़े पहने छह संदग्धिों को खुदाई करते देखा तो सेना को सूचना दी.
5 मई : सेना ने पेट्रोलिंग पार्टी भेजी जो लापता हो गयी. बाद में पता चला था पांच सदस्यों को पाकिस्तानी फौज ने यातनाएं देकर मौत के घाट उतार दिया.
9 मई : पाकिस्तान ने कारगिल पर गोलाबारी कर दी.
10 मई : द्रास, काकसर और मशकोह सेक्टर में बड़े पैमाने पर घुसपैठ हुई.
15 मई : भारतीय सेना का दल कारगिल सेक्टर की ओर बढ़ गया. 26 मई : वायु सेना ने हवाई बमबारी की.
28 मई : वायु सेना का एमआइ-17 पाकस्तिानी गोलाबारी का शिकार हो गया. चार जवान शहीद हो गये.
1 जून 1999 : पाकिस्तान ने नेशनल हाइवे-1ए पर बम बरसाए.
5 जून : भारत ने दस्तावेज और 11 जून को पकड़े गए इंटरसेप्ट जारी किए, जिसमें परवेज मुशर्रफ सहित अन्य पाकिस्तान के सैन्य अफसरों की कारगिल से जुड़ी बातचीत शामिल थी.
13 जून : द्रास की तोलोलिंग पोस्ट जीती.
29 जून : प्वाइंट 5060 फतह और प्वाइंट 5100 पर भारतीय सेना ने फिर से कब्जा लिया.

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